तो और इक बार फिर मेरा सेलेक्शन हो नहीं पाया . मेरी हर एक नाकामी पे रस्सी मुस्कुराती है, ख़ुशी से ऐंठती है और नये बल उसमें पड़ते हैं . मुझे अपना गला घुटता हुआ महसूस होता है........ मैं अपनी छत से जब नीचे गली में झांकता हूँ तो ये लगता है सड़क मुझको उछलकर खींच ले जाएगी . अपने साथ डरा देता है ये एहसास और मुझको पसीने से लहू की गंध आती है .... अगर मैं दूर से भी रेल की आवाज़ सुनता हूँ तो कोई अजनबी हैबत मुझे झकझोर देती है, अज़ीयत ख़ून के कतरों में यूँ करवट बदलती है कि मैं टुकड़ों में बंटते रूह को महसूस करता हूँ......
मेरे कमरे का सीलिंग फैन हँसता है, मेरी जानिब लपकता है, मैं डर से काँप जाता हूँ, सिमट कर बैठ जाता हूँ किसी कोने में कमरे के, यूँ लगता है कई सदियों का लंबा फासला तय कर के मैंने सुबह पाई है..... मगर मैं सोचता हूँ कब तलक आख़िर मैं अपने आप को खुद से बचाऊंगा, महज़ इक और नाकामी मैं अब के टूट जाऊँगा बदन से छूट जाऊँगा............!!
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