नाम तुम्हारा लेता तो हूँ मैं कई बार
पर फिर भी व्यथा सताती बारम्बार।
हाँ ये तो है,नाम तुम्हारा अक्सर
भाव-विहीन रट्टू तोते सा रहता है।
क्या इस कारण से साईं मुझको
यूँ ही ये दर्द बन रहता है ?
वैसे तो ये दर्द रहे भी तो क्या है ?
सुख-दुःख तो बस एक खेल जरा है।
पर ये अनुभूति जो दुर्लभ है
दिल में गहरे उतरे तो ही सही मजा है।
(और) ये सब देने वाला भी तो साईं
तू ही एक सरकार बड़ा है।
लेकिन फिर भी मैं वंचित हूँ इससे
समझ बात न ये आती है।
तो ऐसे में मेरी विनती ये तुमसे है
या तो तू दुःख ये सब हर ले।
या कि फिर मैं इससे उबर सकूँ
ऐसी शक्ति मुझको दे दे।