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‘पंचमहापुरुष योग’

29 जून 2016

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ज्योतिष शास्त्र में ऐसे अनेक योगों का उल्लेख है जो व्यक्ति की कुंडली में यदि उपस्थित हों तो उसे सम्पन्नता,प्रतिष्ठा,उच्च-पद आदि देते हैं, किंतु एक तो ऐसे योगों की संख्या बहुत अधिक है दूसरे उनको कुंडली में ढूंढ़ पाना बिना किसी विज्ञ ज्योतिष की सहायता के टेढ़ी खीर है। अतः यहाँ पर हम एक ऐसे योग की चर्चा करना उचित समझते हैं जिसको पाठकगण अपनी कुंडली में सरलता से पहचान सकते हैं। इस योग को ‘पंचमहापुरुष योग’ के नाम से जाना जाता है। इस योग की उपस्थिति  जातक को उसके लक्ष्य को प्राप्त करने में अत्यंत सहायता देती है। वह धनी-मानी,समाज में प्रतिष्ठित,संस्कारवान,महापुरूष के समान ही होता है,उसकी यशकीर्ति दूर तक फैली होती है।

कुडंली के चार केंद्र:निम्न कुंडली में गुलाबी रंग के खाने केंद्र स्थानों के सूचक हैं।अर्थात यहाँ पर लिखित 4,7,10,1 अंक लिखे खाने केंद्र स्थान हैं।अन्य कुंडली में इन स्थानों पर अंक दूसरे हो सकते हैं।  

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इस योग में ‘पंच’ शब्द का उपयोग इसलिए हुआ है क्योंकि पांच ग्रहों शुक्र, बुध, मंगल,बृहस्पति व शनि में से किसी एक ग्रह या एकाधिक ग्रहों के एक विशिष्ट स्थिति में उपस्थिति से यह योग उत्पन्न हो सकता है।जैसे उपरोक्त चक्र/कुंडली में बृहस्पति लग्न में,शनि चतुर्थ में व मंगल सप्तम स्थान में उच्च हो कर स्थित हैं। जहाँ 4 का का अंक है वह लग्न स्थान कहलाता है।जन्म कुंडली में बारह भाव (खाने) होते हैं, जिनमें से चार भाव (खाने) ‘केंद्र स्थान’ कहे जाते हैं।इसे निम्न द्वारा सहजता से समझा जा सकता है:

प्रथम भाव (जो एक केंद्र स्थान है) को ‘लग्न स्थान’ भी कहते हैं। यहां जो भी राशि या अंक पड़ा होता है वह उस जातक का ‘जन्म लग्न’ होता है। जैसे 1 का अंक तो मेष लग्न, 2 का अंक तो वृष लग्न आदि आदि। यदि उपरोक्त वर्णित पांच ग्रह केंद्र स्थान में एक साथ या अलग-अलग अपनी राशियों या उच्च राशियों में स्थित हों तो वह पंचमहापुरूष योग का निर्माण करते हैं,यह पांच ग्रह किन-किन राशियों में पंचमहापुरुष  योग की स्थिति उत्पन्न करते हैं, यह निम्न प्रकार स्पष्ट है:

क्र. सं.         योग        ग्रह           राशि                         राशि अंक

1.              रूचक     मंगल       मेष        स्वराशि                 (1)

                                            वृश्चिक     स्वराशि                 (8)

                                             मकर     उच्चराशि               (10)

2.               मालव्य     शुक्र       तुला      स्वराशि                     (7 )

                                               वृष     स्वराशि                       (2)

                                               मीन     उच्चराशि                 (12)

3.               शश           शनि         मकर  स्वराशि                   (10)

                                                 कुम्भ  स्वराशि                 (11 )

                                                 तुला    उच्चराशि                 (7)

4 .               भद्र            बुध         मिथुन स्वराशि                    (3)

                                                  कन्या  स्वराशि                  (6)

                                                  कन्या  उच्चराशि               (6)

नोट :बुध की उच्च व स्वराशि एक ही है। 

5 .                  हंस        बृहस्पति     धनु     स्वराशि                  (9)

                                                  मीन    स्वराशि                 (12)

                                                  कर्क    उच्चराशि               (4)

नोट:उच्च ग्रहों का परस्पर एक दूसरे को देखना उच्च भंग कर देता है अतः इस स्थिति में उच्च ग्रहों के फल नष्ट हो जाते हैं। जैसे उपरोक्त चक्र में बृहस्पति और मंगल तथा सूर्य और शनि में यह योग बन रहा है। 

अब हम इन पांच ग्रहों से बनने वाले योगों के संक्षिप्त फल वर्णित करते  हैं :------------

रूचक योग :मंगल यदि लग्न से केंद्र में बैठा है और अपने घर में अर्थात स्वग्रही हो या उच्च स्थान पर हो तो "रूचक योग"होता है। ऐसा जातक अत्यंत साहसी,शूरवीर,शत्रुओं पर विजय पाने वाला,कीर्तिवान,शीलवान व धनवान होता है।वह मिलेट्री,पुलिस,शक्ति प्रदर्शन व अन्य खेलों,प्रशासन जैसे विभागोँ में या चिकित्सा,कंप्यूटर इंजीनियरिंग जैसे विभागों में महत्वपूर्ण पद प्राप्त कर सकता है।  

भद्रक योग : बुध यदि लग्न से केंद्र में बैठा है और अपने घर में अर्थात स्वग्रही हो या उच्च स्थान पर हो तो "भद्रक योग"होता है।ऐसा जातक अत्यंत मधुर भाषी,विद्वान,बुद्धिमान,सत्कारी,धर्मात्मा,परोपकारी,स्वतंत्र विचारों वाला होता है। वह दक्ष व्यापारी,उद्योगपति,शिल्पकला का मर्मज्ञ,नृत्य का जानकार,लेखाकार,हास्य/व्यंगकार,ज्योतिष,दिमागी खेलों,कॉमर्स,शेयर मार्किट -जैसे छेत्रों में व वाक शक्ति द्वारा भी आजीविका चल सकने में समर्थ होता है तथा जग-प्रसिद्द हो सकता है। 

हंस योग :बृहस्पति यदि लग्न से केंद्र में बैठा है और अपने घर में अर्थात स्वग्रही हो या उच्च स्थानपर हो तो "हंस योग"होता है।ऐसा जातक विद्या में निपुण,विविध शास्त्रों का ज्ञाता,साधु प्रकृति,आचारवान,अपने व्यवहार,अपनी छवि से सभी के ह्रदय में विराजमान होने वाला,आदरणीय होता है। वह शिक्षा के छेत्र में उच्च पद पर शोभायमान होता है। राज्य सरकार/केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण पदों,राजदूत,संत,धार्मिक नेता या जननायक के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। ईश्वरीय  प्रेरणा/कृपा उस पर सदेव रहती है ,सात्विक तेज भी मुख पर दीखता है। 

मालव्य योग : शुक्र यदि लग्न से केंद्र में बैठा है और अपने घर में अर्थात स्वग्रही हो या उच्च स्थान पर हो तो "मालव्य योग"होता है।ऐसा सुन्दर,सुडौल गुणवान,शास्त्र ज्ञाता,तेजस्वी,मोहिनी छविवाला,धनी,विविध भोग सामग्रियों से भरा-पूरा होता है। वह ब्यूटी पार्लर,मॉडलिंग,विज्ञापन,संगीत,कला के छेत्रो में देश-विदेश में सम्मानित होता है। फ़िल्म स्टारों या मीडिया में बने रहने वालों के चक्र में यह योग सहज पाया जा सकता है। 

शश योग :शनि यदि लग्न से केंद्र में बैठा है और अपने घर में अर्थात स्वग्रही हो या उच्च स्थान पर हो तो "शश योग"होता है।यह लोग तेज प्रति के,अपना काम निकलने में निपुण,राजा,सचिव,मंत्री,निम्न वर्ग के नेता,सामजिक कार्यों से जमीनी स्तर पर जुड़े ,इंडस्ट्रलिस्ट,तानाशाह,धातुकर्म में सिद्धहस्त,नामी वकील,सूक्ष्म/पैनी बुद्धि वाले,अड़ियल,कठोर श्रम करने वाले,और अपने सिद्धांतों से पीछे न हटने वाले होते हैं। 

यदि यह योग एक से अधिक ग्रहों द्वारा निर्मित हो तो यह जातक की शक्तियों को बढ़ाता है। उसी क्रम में धन,वैभव देता है। पुनः चन्द्र कुंडली में भी इसकी पुनरावृत्ति इसके फल को स्वाभिक ही दुगना कर देगी। वह निम्न स्थितियों,कुल,आदि से ऊपर उठकर जगत में विशेष प्रसिद्धि पाता है इसमें संशय नहीं।

नोट:पंच महापुरुष योग का निर्माण करने वाले ग्रह पर यदि पाप ग्रहों की दृष्टि आदि प्रभाव होंगे तो फल में कमी के साथ ही उसके चरित्र में निम्नता भी आयेगी।   

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