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16 जुलाई 2016 कर्क संक्रांति के शिव-पार्वती विवाहोत्सव पर

13 जुलाई 2016

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16 जुलाई 2016 कर्क संक्रांति के शिव-पार्वती विवाहोत्सव पर 


भवानी-शंकर,प्रथम प्रकृति पुरुष हैं सकल सृष्टि में 

करुणानिधान मात-पिता सबके ही सम्बन्ध में। 

सौम्य दिनकर प्रवेश करते जब कर्क राशिचक्र में 

शिव बंधते शिवानी संग लीला हेतु परिणय सूत्र में। 

आषाढ़ माह के मेघ करते नृत्य प्रबल उल्लास में 

दामिनी दमकती वेग से नूपुर बन उनके पग में। 

मोर,पिंगल,दादुर सभी होते हर्ष अतिरेक में 

ताल-पोखर,नदी,जलाकर सब उमगते उफान में। 

श्रद्धा-विश्वास होता जब विवाह हृदयांगन में 

सृष्टि के रहस्य गूढ़ खुलते सभी प्रत्यक्ष में। 

शिवोहम का भाव लिए विचरते फिर संसार में 

माय के नागपाश से छूटते  तत्काल हम सहज में। 

भूत,प्रेत,पिशाच दुर्गुण सभी होते अपने वश में 

तारकेश दिव्य मन्त्र राम पाकर झूमते कैवल्य में। 



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नूर निगाहों से जो छलकता है तेरी

27 जून 2016
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नूर निगाहों से जो छलकता है तेरी काश,खुश्क लबों को तर करता मेरी। इनायत,करम जिनका बहुत चर्चा है तेरी काश,कुछ सजाओं को धो डालता मेरी। दुनिया जहाँ में सब तरफ है अमन तेरी काश,आरजू ए दिल कभी पूरी करता मेरी। अँगुलियों को पकड़ कर तो सब चले हैं तेरी काश,अंगुली पकड़ कर तू चलाता मेरी। न उम्मीदी जो रह गयी मिलने क

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नाम तुम्हारा लेता तो हूँ मैं कई बार

28 जून 2016
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नाम तुम्हारा लेता तो हूँ मैं कई बार पर फिर भी व्यथा सताती बारम्बार। हाँ ये तो है,नाम तुम्हारा अक्सर भाव-विहीन रट्टू तोते सा रहता है। क्या इस कारण से साईं मुझको यूँ ही ये दर्द बन रहता है ?वैसे तो ये दर्द रहे भी तो क्या है ?सुख-दुःख तो बस एक खेल जरा है। पर ये अनुभूति जो दुर्लभ है दिल में गहरे उतरे तो

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साईं तेरे रूप की कैसे चर्चा करूँ

28 जून 2016
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साईं तेरे रूप की कैसे चर्चा करूँ कुछ पल्ले पड़े तो भला मैं कहूं। कभी तू इस रूप में तो कभी इस रूप में उलझन में हूँ देख सब तेरे रूप में। मेरी दृष्टि संकुचित देख पाती नहीं वर्ना तू तो उपलब्ध है हर कहीं। अब भिखारी हो या अरबपतिसाधक कोई या हो फिर व्याभिचारी। मैं तो भेद बुद्धि से सभी को तौलता पतित,पूज्य खान

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जय गजानन रूप साईं

29 जून 2016
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जय गजानन रूप साईं तुम आदिदेव,प्रथम पूज्य हो। हाथ में मोदक लिए भक्त हेतु तत्पर खड़े हो। विघ्नहर्ता,जगत्कर्ता तुम मंगल स्वरुप हो। ऋद्धि-सिद्धि चंवर डुलातीं तुम आत्मभू सर्वेश हो। विद्या,विनय,शीलदाता तुम गुणों की खान हो। मन,इंद्री बना मूषक बैठ विचरते सर्वत्र हो। कान सूपाकार,भक्त पुकार सुन हरते त्वरित दुः

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‘पंचमहापुरुष योग’

29 जून 2016
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ज्योतिष शास्त्र में ऐसे अनेक योगों का उल्लेख है जो व्यक्ति की कुंडली में यदि उपस्थित हों तो उसे सम्पन्नता,प्रतिष्ठा,उच्च-पद आदि देते हैं, किंतु एक तो ऐसे योगों की संख्या बहुत अधिक है दूसरे उनको कुंडली में ढूंढ़ पाना बिना किसी विज्ञ ज्योतिष की सहायता के टेढ़ी खीर है। अतः यहाँ पर हम एक ऐसे योग की चर्चा

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16 जुलाई 2016 कर्क संक्रांति के शिव-पार्वती विवाहोत्सव पर

13 जुलाई 2016
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16 जुलाई 2016 कर्क संक्रांति के शिव-पार्वती विवाहोत्सव पर भवानी-शंकर,प्रथम प्रकृति पुरुष हैं सकल सृष्टि में करुणानिधान मात-पिता सबके ही सम्बन्ध में। सौम्य दिनकर प्रवेश करते जब कर्क राशिचक्र में शिव बंधते शिवानी संग लीला हेतु परिणय सूत्र में। आषाढ़ माह के मेघ करते नृत्य प्रबल उल्लास में दामिनी दमकती व

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बलिहारी गुरु के चरणारविन्द की

20 जुलाई 2016
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बलिहारी गुरु के चरणारविन्द की 

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मोर दास कहाइ नर आसा। करइ तौ कहहु काह बिस्वासा।।७/४५/३

8 अगस्त 2016
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मोर दास कहाइ नर आसा। करइ तौ कहहु काह बिस्वासा।।७/४५/३---------------------------------------------------------------श्रीरामचरितमानस के उत्तरकांड में श्रीरामजी अपनी प्रजा के सम्मुख जो अपने विचार रख रहे हैं उनमें यह एक चौपाई बड़ी मार्मिक और गूढ़ है। प्रायः हम अपने आप को रामभक्त मान इतराते हैं और यह भी म

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राम नाम महिमा अमित,अपार तूने ही फैलायी। शिव रूप छोड़,हनुमान बन भक्ति सबको सिखायी।।

13 अगस्त 2016
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बजरंगबली भला तेरी महिमा कहो किसने न जग गायी।शरण आया जो तेरी हर मुश्किलों से निजात पायी।।राम नाम महिमा अमित,अपार तूने ही फैलायी।शिव रूप छोड़,हनुमान बन भक्ति सबको सिखायी।।अष्ट-सिद्धि,नव-निधि प्राप्त कर  जग हित लगायी।हर घडी राम-राम बस यही एक अलख जगायी।।समस्त कामना से दूर तूने बस राम उर लौ लगायी।याद दिला

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