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नासिरा शर्मा के बारे में

नासिरा शर्मा हिन्दी की प्रमुख लेखिका हैं। सृजनात्मक लेखन के साथ ही स्वतन्त्र पत्रकारिता में भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया है। वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य कला व सांस्कृतिक विषयों की विशेषज्ञ हैं। वर्ष २०१६ का साहित्य अकादमी पुरस्कार उनके उपन्यास पारिजात के लिए प्रदान किया गया। वर्ष 2019 का व्यास सम्मान इनके उपन्यास कागज की नाव के लिए दिया गया। नासिरा शर्मा का जन्म १९४८ में इलाहाबाद शहर में हुआ। उन्होंने फारसी भाषा और साहित्य में एम. ए. किया। हिन्दी उर्दू, अंग्रेज़ी , फारसी एवं पश्तो भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ है। वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य कला व संस्कृति विषयों की विशेषज्ञ हैं। इरा़क, अ़फ़गानिस्तान, सीरिया, पाकिस्तान व भारत के राजनीतिज्ञों तथा प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों के साथ उन्होंने साक्षात्कार किये, जो बहुचर्चित हुए। इनके साक्षात्कार से समाज के विषय में अच्छी जानकारी प्राप्त होती है l युद्धबन्दियों पर जर्मन और फ्रेंच दूरदर्शन के लिए बनी फिल्म में महत्त्वपूर्ण योगदान। अब तक दस उपन्यास, छह कहानी संकलन, तीन लेख-संकलन, सात पुस्तकों के फ़ारसी से अनुवाद, 'सारिका', 'पुनश्च' का ईरानी क्रांति विशेषांक, 'वर्तमान साहित्य' के महिला लेखन अंक तथा 'क्षितिजपार' के नाम से राजस्थानी लेखकों की कहानियों का सम्पादन। 'जहाँ फव्वारे लहू रोते हैं' के नाम से रिपोर्ताजों का एक संग्रह प्रकाशित। इनकी कहानियों पर अब तक 'वापसी', 'सरज़मीन' और 'शाल्मली' के नाम से तीन टीवी सीरियल और 'माँ', 'तडप', 'आया बसंत सखि','काली मोहिनी', 'सेमल का दरख्त' तथा 'बावली' नामक दूरदर्शन के लिए छह फ़िल्मों का निर्माण।

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नासिरा शर्मा की पुस्तकें

अल्फ़ा-बीटा-गामा

अल्फ़ा-बीटा-गामा

‘अल्फ़ा-बीटा-गामा’ एक ऐसे विषय को लेकर सभ्य, महानगरीय समाज की निर्दयताओं और अक्षम्य अमानवीयताओं को उजागर करता है जिसकी तरफ़ लिखित शब्दों का ध्यान अकसर नहीं जाता, वह भी इतने बड़े पैमाने पर कि उपन्यास हो जाए। यह उपन्यास मनुष्य की आत्मग्रस्तता को कभी कुत

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अल्फ़ा-बीटा-गामा

अल्फ़ा-बीटा-गामा

‘अल्फ़ा-बीटा-गामा’ एक ऐसे विषय को लेकर सभ्य, महानगरीय समाज की निर्दयताओं और अक्षम्य अमानवीयताओं को उजागर करता है जिसकी तरफ़ लिखित शब्दों का ध्यान अकसर नहीं जाता, वह भी इतने बड़े पैमाने पर कि उपन्यास हो जाए। यह उपन्यास मनुष्य की आत्मग्रस्तता को कभी कुत

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पारिजात’

पारिजात’

साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत नासिरा शर्मा जी का पुरस्कृत उपन्यास "पारिजात" ‘पारिजात’ केवल एक वृक्ष, कथा और विश्वास मात्र नहीं है, बल्कि यथार्थ की धरती पर लिखी एक ऐसी तमन्ना है, जो रोहन के ख़ून में रेशा-रेशा बनकर उतरी है और रूही के श्वासों में ख़

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पारिजात’

पारिजात’

साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत नासिरा शर्मा जी का पुरस्कृत उपन्यास "पारिजात" ‘पारिजात’ केवल एक वृक्ष, कथा और विश्वास मात्र नहीं है, बल्कि यथार्थ की धरती पर लिखी एक ऐसी तमन्ना है, जो रोहन के ख़ून में रेशा-रेशा बनकर उतरी है और रूही के श्वासों में ख़

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अजनबी जज़ीरा

अजनबी जज़ीरा

हिन्दी की वरिष्ठ कथाकार नासिरा शर्मा के लेखन की सर्वोपरि विशेषता है सभ्यता, संस्कृति और मानवीय नियति के आत्मबल व अन्तःसंघर्ष का संवेदना-सम्पन्न चित्रण। उनके कथा साहित्य के सरोकार ग्लोबल हैं। उनका कथाकार सन्तप्त और उत्पीड़ित मनुष्यता के पक्ष में पूरी श

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अजनबी जज़ीरा

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हिन्दी की वरिष्ठ कथाकार नासिरा शर्मा के लेखन की सर्वोपरि विशेषता है सभ्यता, संस्कृति और मानवीय नियति के आत्मबल व अन्तःसंघर्ष का संवेदना-सम्पन्न चित्रण। उनके कथा साहित्य के सरोकार ग्लोबल हैं। उनका कथाकार सन्तप्त और उत्पीड़ित मनुष्यता के पक्ष में पूरी श

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औरत के लिए औरत

औरत के लिए औरत

इन लेखों में जीवन की आंच भी है और आस भी कि स्वयं नारी अपने प्रति होते हुए अत्याचारों और शोषण का रुख बदलेगी.. पुस्तक में सिर्फ महिलाओं पर किये जा रहे अत्याचारों और हिंसा का उल्लेख्य है, उन्होंने कहीं भी कामयाबी की सीढ़िया चढ़ रही महिलाओं का जिक्र नही क

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इन लेखों में जीवन की आंच भी है और आस भी कि स्वयं नारी अपने प्रति होते हुए अत्याचारों और शोषण का रुख बदलेगी.. पुस्तक में सिर्फ महिलाओं पर किये जा रहे अत्याचारों और हिंसा का उल्लेख्य है, उन्होंने कहीं भी कामयाबी की सीढ़िया चढ़ रही महिलाओं का जिक्र नही क

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 पत्थर गली

पत्थर गली

‘मुस्लिम समाज सिर्फ़ ‘ग़ज़ल’ नहीं है, बल्कि एक ऐसा ‘मर्सिया’ है जो वह अपनी रूढ़िवादिता की क़ब्र के सिरहाने पढ़ता है। पर उसके साज़ और आवाज़ को कितने लोग सुन पाते हैं, और उसका सही दर्द समझते हैं?’’ लेखिका द्वारा की गई यह टिप्पणी इन कहानियों की पृष्ठभूम

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 पत्थर गली

पत्थर गली

‘मुस्लिम समाज सिर्फ़ ‘ग़ज़ल’ नहीं है, बल्कि एक ऐसा ‘मर्सिया’ है जो वह अपनी रूढ़िवादिता की क़ब्र के सिरहाने पढ़ता है। पर उसके साज़ और आवाज़ को कितने लोग सुन पाते हैं, और उसका सही दर्द समझते हैं?’’ लेखिका द्वारा की गई यह टिप्पणी इन कहानियों की पृष्ठभूम

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गूँगा आसमान

गूँगा आसमान

गूंगा आसमान प्रख्यात लेखिका नासिरा शर्मा का चर्चित कथा संचयन है । जिसमें उनकी 12 कहानियां संकलित की गई है । जिसमें खुशबू का रंग, सरहद के इस पार, गूंगा आसमान, यहूदी सरगर्दान, जड़ें, काला सूरज, तीसरा मोर्चा, इमाम साहब, ततैया, मेरा घर कहां? नई हुकूमत औ

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गूंगा आसमान प्रख्यात लेखिका नासिरा शर्मा का चर्चित कथा संचयन है । जिसमें उनकी 12 कहानियां संकलित की गई है । जिसमें खुशबू का रंग, सरहद के इस पार, गूंगा आसमान, यहूदी सरगर्दान, जड़ें, काला सूरज, तीसरा मोर्चा, इमाम साहब, ततैया, मेरा घर कहां? नई हुकूमत औ

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कुइयाँजान

कुइयाँजान

दुनिया की एक सबसे बड़ी जरूरत और एक सबसे गर्म मुद्दा , पानी । वो पानी जो जब बहुतायत में मिलता है तो हम उसकी कद्र नहीं करते और हम अपनों के खिलाफ भी लठ उठा लेते हैं। पानी चीज ही ऐसी है। इसी पानी के इर्द-गिर्द ताना -बाना बुनती हैं नासिरा शर्मा , अपने उपन्

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कुइयाँजान

कुइयाँजान

दुनिया की एक सबसे बड़ी जरूरत और एक सबसे गर्म मुद्दा , पानी । वो पानी जो जब बहुतायत में मिलता है तो हम उसकी कद्र नहीं करते और हम अपनों के खिलाफ भी लठ उठा लेते हैं। पानी चीज ही ऐसी है। इसी पानी के इर्द-गिर्द ताना -बाना बुनती हैं नासिरा शर्मा , अपने उपन्

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कागज़ की नाव

कागज़ की नाव

नासिरा शर्मा हिंदी कथा साहित्य में अपनी अनूठी रचनाओं के लिए सुप्रसिद्ध हैं। उनकी कथा रचनाएं समय और समाज की भीतरी तहों में छिपी सच्चाइयां प्रकट करने के लिए पढ़ी व सराही जाती हैं। ‘काग़ज़ की नाव’ नासिरा शर्मा का नया और विशिष्ट उपन्यास है। यह उपन्यास बिहार

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कागज़ की नाव

कागज़ की नाव

नासिरा शर्मा हिंदी कथा साहित्य में अपनी अनूठी रचनाओं के लिए सुप्रसिद्ध हैं। उनकी कथा रचनाएं समय और समाज की भीतरी तहों में छिपी सच्चाइयां प्रकट करने के लिए पढ़ी व सराही जाती हैं। ‘काग़ज़ की नाव’ नासिरा शर्मा का नया और विशिष्ट उपन्यास है। यह उपन्यास बिहार

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