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औरत के लिए औरत (भाग -1 )

7 जुलाई 2022

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औरत को लेकर पिछले पचास वर्षों में काफी काम हुआ है, मगर समाजशास्त्र की दृष्टि से 'स्त्री-विमर्श' नाम का मुहावरा हिंदी साहित्य में पहुत बाद में बहस का मुद्दा बना। चाहे उस अन्तर्राष्ट्रीय दहाई को इसका श्रेय मिले या फिर उस जागरूकता को जिसका उदय सामूहिक स्तर पर पश्चिमी देशों में हुआ

व्क्तिगत स्तर पर इसका प्रारंभ मैं तबसे मानती हूँ जबसे औरत ने घर की चुनौतियों के बीच रहना स्वीकार किया। आज दुनिया पेचीदा हो गई है, उसी तरह जैसे इंसानी रिश्ते भी, इसलिए उसको सुलझाना किसी एक के बस में नहीं है। आज समस्याएं कुछ इस तरह से जुड़ी हुँ कि उनका हल सामूहिक प्रयास द्वारा ही संभव है। इस सच को विश्व स्तर पर समझा गया और इसी के चलते 1975 में मैक्सिको में पहला संयुक्त राष्ट् महिला सम्मेलन आयोजित हुआ। 1975 महिला वर्ष घोषित हुआ और इसी के साथ पूरे एक दशक तक संसार भर में नारी-चेतना को लेकर काम शुरू हुए।

उत्पीड़ित स्त्री संसार में तो हलचल मची ही, साथ ही वह वर्ग भी जागा जो दुनिया की आधी आबादी के प्रति पूरी तरह उदासीन था।

पुस्तक में औरत के बचपन से लेकर मरण तक, जबान और जज्बात में लगे सेंसरशिप का उल्लेख्य है. उन्होंने बताया है कि इस कारण बचपन से इस दबाव के चलते अधिकतर लडकियां अपना आत्मविश्वास खो बैठती हैं.उसके बाद उन्होंने देश के ऐसी कई शहरों और कस्बों का जिक्र किया हैं जहाँ औरतों को अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है.स्वतंत्रता प्राप्त हुए इतने वर्ष होने के बाद भी रूढ़िवादी परम्परा से लोग बाहर नही आ पा रहे हैं. उन्होंने कुछ ऐसी औरतों से लिए इंटरव्यू का उल्लेख्य किया है जिन्होंने अपने जीवन में मर्दों की कुंठाएं झेली हैं और तेज़ाब जैसे हमलों का शिकार हुयी हैं.

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औरत के लिए औरत
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इन लेखों में जीवन की आंच भी है और आस भी कि स्वयं नारी अपने प्रति होते हुए अत्याचारों और शोषण का रुख बदलेगी.. पुस्तक में सिर्फ महिलाओं पर किये जा रहे अत्याचारों और हिंसा का उल्लेख्य है, उन्होंने कहीं भी कामयाबी की सीढ़िया चढ़ रही महिलाओं का जिक्र नही किया। इस पुस्तक को पढ़कर हर औरत/लड़की अपने आप को "रिलेट" कर पाएगी क्योंकि हर महिला ने अपने जीवन में उन चीज़ों का अनुभव किया होगा।

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