औरत को लेकर पिछले पचास वर्षों में काफी काम हुआ है, मगर समाजशास्त्र की दृष्टि से 'स्त्री-विमर्श' नाम का मुहावरा हिंदी साहित्य में पहुत बाद में बहस का मुद्दा बना। चाहे उस अन्तर्राष्ट्रीय दहाई को इसका श्रेय मिले या फिर उस जागरूकता को जिसका उदय सामूहिक स्तर पर पश्चिमी देशों में हुआ
व्क्तिगत स्तर पर इसका प्रारंभ मैं तबसे मानती हूँ जबसे औरत ने घर की चुनौतियों के बीच रहना स्वीकार किया। आज दुनिया पेचीदा हो गई है, उसी तरह जैसे इंसानी रिश्ते भी, इसलिए उसको सुलझाना किसी एक के बस में नहीं है। आज समस्याएं कुछ इस तरह से जुड़ी हुँ कि उनका हल सामूहिक प्रयास द्वारा ही संभव है। इस सच को विश्व स्तर पर समझा गया और इसी के चलते 1975 में मैक्सिको में पहला संयुक्त राष्ट् महिला सम्मेलन आयोजित हुआ। 1975 महिला वर्ष घोषित हुआ और इसी के साथ पूरे एक दशक तक संसार भर में नारी-चेतना को लेकर काम शुरू हुए।
उत्पीड़ित स्त्री संसार में तो हलचल मची ही, साथ ही वह वर्ग भी जागा जो दुनिया की आधी आबादी के प्रति पूरी तरह उदासीन था।
पुस्तक में औरत के बचपन से लेकर मरण तक, जबान और जज्बात में लगे सेंसरशिप का उल्लेख्य है. उन्होंने बताया है कि इस कारण बचपन से इस दबाव के चलते अधिकतर लडकियां अपना आत्मविश्वास खो बैठती हैं.उसके बाद उन्होंने देश के ऐसी कई शहरों और कस्बों का जिक्र किया हैं जहाँ औरतों को अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है.स्वतंत्रता प्राप्त हुए इतने वर्ष होने के बाद भी रूढ़िवादी परम्परा से लोग बाहर नही आ पा रहे हैं. उन्होंने कुछ ऐसी औरतों से लिए इंटरव्यू का उल्लेख्य किया है जिन्होंने अपने जीवन में मर्दों की कुंठाएं झेली हैं और तेज़ाब जैसे हमलों का शिकार हुयी हैं.
नासिरा शर्मा की अन्य किताबें
अन्य स्त्री विमर्श की किताबें
नासिरा शर्मा हिन्दी की प्रमुख लेखिका हैं। सृजनात्मक लेखन के साथ ही स्वतन्त्र पत्रकारिता में भी उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया है। वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य कला व सांस्कृतिक विषयों की विशेषज्ञ हैं। वर्ष २०१६ का साहित्य अकादमी पुरस्कार उनके उपन्यास पारिजात के लिए प्रदान किया गया। वर्ष 2019 का व्यास सम्मान इनके उपन्यास कागज की नाव के लिए दिया गया।
नासिरा शर्मा का जन्म १९४८ में इलाहाबाद शहर में हुआ। उन्होंने फारसी भाषा और साहित्य में एम. ए. किया। हिन्दी उर्दू, अंग्रेज़ी , फारसी एवं पश्तो भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ है। वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य कला व संस्कृति विषयों की विशेषज्ञ हैं। इरा़क, अ़फ़गानिस्तान, सीरिया, पाकिस्तान व भारत के राजनीतिज्ञों तथा प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों के साथ उन्होंने साक्षात्कार किये, जो बहुचर्चित हुए। इनके साक्षात्कार से समाज के विषय में अच्छी जानकारी प्राप्त होती है l युद्धबन्दियों पर जर्मन और फ्रेंच दूरदर्शन के लिए बनी फिल्म में महत्त्वपूर्ण योगदान।
अब तक दस उपन्यास, छह कहानी संकलन, तीन लेख-संकलन, सात पुस्तकों के फ़ारसी से अनुवाद, 'सारिका', 'पुनश्च' का ईरानी क्रांति विशेषांक, 'वर्तमान साहित्य' के महिला लेखन अंक तथा 'क्षितिजपार' के नाम से राजस्थानी लेखकों की कहानियों का सम्पादन। 'जहाँ फव्वारे लहू रोते हैं' के नाम से रिपोर्ताजों का एक संग्रह प्रकाशित। इनकी कहानियों पर अब तक 'वापसी', 'सरज़मीन' और 'शाल्मली' के नाम से तीन टीवी सीरियल और 'माँ', 'तडप', 'आया बसंत सखि','काली मोहिनी', 'सेमल का दरख्त' तथा 'बावली' नामक दूरदर्शन के लिए छह फ़िल्मों का निर्माण।D