1 जून 2022
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जो मन में आता है , लिखता हूं । साफ कहना, साफ दिल , साफ लिखना मुझे पसंद है । D
प्रतिलपि सखि, पूरे देश में कोहराम मचा हुआ है । चारों ओर चीख पुकार हो रही है । दरबारी "रूदाली" बनकर जार जार रोये जा रहे हैं । चापलूस और चाटुकार आंखों में ग्लिसरीन डाल डालकर नौ नौ आंसू बहाकर
सखि, मन बहुत उदास है । 1988 से 1990 का काश्मीर का माहौल याद आने लगा है । उस समय हिन्दुओं को चुन चुन कर मारा गया था । उनकी बहन बेटियों से दुष्कर्म, सामूहिक बलात्कार और उनके साथ सरेआम बदसलूकी
सखि, तुम्हें तो पता ही है कि मेरा पौत्र शिवांश 29 मई को 6 माह का हो गया है । अब उसकी काली काली जुल्फें हवा में उड़ने लगी हैं । मुझे तो डर लगने लगा था कि कहीं उसकी उड़ती जुल्फों पर किसी हसीन गुड़ि
सखि, सुना है कि कानपुर में कथित शांति समुदाय ने भयंकर हिंसा कर दी है । हिंसा भी किस दिन और कब शुरू की गई, यह जानना बहुत ही जरूरी है । इस समुदाय के द्वारा सप्ताह में एक दिन अपने धार्मिक
सखि, 28 मई को तेलांगना राज्य की राजधानी हैदराबाद में शाम साढे पांच बजे के बाद एक 17 वर्ष की नाबालिग लड़की के साथ 5 युवकों ने इनोवा कार में सामूहिक बलात्कार कर हैदराबाद और वहां की सरकार का न
सखि, आज तो गजब हो गया । तुम तो जानती ही हो कि आजकल मेरी पोस्टिंग अजमेर चल रही है । इसलिए मैं हर सोमवार को जयपुर से सुबह आठ बजे निकल पड़ता हूं और हर शुक्रवार को शाम तक जयपुर वापस आ जाता हूं । आज भ
सखि, आज गाजियाबाद की एक अदालत ने वर्ष 2006 में वाराणसी में रेल्वे स्टेशन, संकट मोचन मंदिर और दशाश्वमेध घाट पर सिलसिलेवार हुए बम विस्फोट में शामिल आतंकी वलीउल्लाह खान को फांसी की सजा सुनाई ह
सखि, पता है हमारे मौहल्ले में रहने वाले दुखीराम जी को अस्पताल ले जाना पड़ा कल रात को । और उन्हें आई सी यू में भर्ती करवाना पड़ा । डॉक्टर बता रहा था कि हृदय रोग है, रक्तचाप भी कम है । हमने पूछा "ऐ
सखि, आजकल ईमानदारी का प्रमाण पत्र बंट रहा है । सच कहूं तो यह प्रमाण पत्र वर्ष 2012 से बंट रहा है । पहले उसका स्वरूप दूसरा था । तब यह "भ्रष्टाचार प्रमाण पत्र" हुआ करता था । तब ये प्रमाण पत्र
सखि,क्या बताऊं तुम्हें कि आजकल किस कदर दहशत का माहौल है ? जो लोग कहते आये हैं कि उन्हें और उनकी बीवियों को इस देश में डर लग रहा है । दरअसल वे कहना चाह रहे थे कि पूरे देश को और उनकी बीवियों को उन्हीं स
डायरी सखि , आजकल एक जुमला बहुत सुनाई दे रहा है "अंतरात्मा की आवाज" का । लोग कह रहे हैं कि "अंतरात्मा की आवाज सुनो और उसी के अनुसार वोट दो" । अब ना तो अंतरात्मा जिंदा है और ना ही कोई उसकी आवाज सुन
डायरी सखि, तुमने यह कहावत तो सुनी ही होगी कि सौ सुनार की और एक लुहार की । सुनी है ना । मुझे पता था , जरूर सुनी होगी । तो आज "लुहार" ने एक चोट मार ही दी । तुम ये तो जानती ही हो कि "लुहार" जब कोई च
डायरी सखि, बड़ा गजब तमाशा था आज । दिल्ली की सड़कें निहाल हो गई आज तो । एक राजा के कदम चूमने का सौभाग्य आखिर दिल्ली की सड़कों को मिल ही गया । आजकल तो यह सौभाग्य ज्यादातर विदेशी सड़कों को ही नसीब ह
सखि, आज तो बहुत गजब की बात पता चली है । अब तुम्हारे पेट में भी खलबली मचने लगी होगी ना कि वह गजब की बात क्या है ? सब्र रखो , अभी बताते हैं । आज पता चला है सखि कि कोरोना से याददाश्त भी चली जात
डायरी सखि, आजकल सरकार की हर नई योजना का विरोध करना जैसे कुछ लोगों का "धर्म" बन गया है । चाहे CAA का विरोध हो, किसान बिलों का विरोध हो या अब ये "अग्निपथ" योजना का विरोध हो । विपक्षी दलों ने तो कमर
सखि , आज तो पितृ दिवस है । आज के जमाने में जब अपनी संतानें अपने "जनक" का सार्वजनिक अपमान करने से नहीं चूकती हैं तब ये "पितृ दिवस" का दिखावा करना आवश्यक हो जाता है । लेकिन सखि, एक बात है । जब
डायरी सखि , "क्या भूलूं क्या याद करूं" की तरह किस किस घर को याद करूं ? एक घर हो तो बताऊं , यहां तो दर्जन भर से भी अधिक घरों ने मुझे संभाला है । चलिए, आज सबको याद करते हैं । पहला घर था
डायरी सखि , आज तो खुद ही खुद पर लिखवा रही हो हमसे । क्यों , और कोई विषय नहीं मिला क्या ? तुम भी तो "ओट" में ही रहती हो सखि । जैसे एक स्त्री रहती है ओट में । पहले अपने पिता की ओट में । फिर पति की
सखि, एक कहावत तो सुनी होगी कि जो जैसा बोता है वह वैसा ही काटता है । यह बात सब लोग जानते हैं मगर मानते नहीं हैं । लोग इतने मतलबी हैं कि जब मौका मिलता है तो गधे की तरह दुलत्ती झाड़कर वे अपने ही माल
डायरी सखि, देश में इस समय बड़ी उथल पुथल मच रही है । ऐसा लग रहा जैसे एक बार फिर से समुद्र मंथन हो रहा है । सत्ता रूपी अमृत पाने के लिए फिर से "देवता" और "दानवों" में युद्ध हो रहा है । अब मुझसे यह
डायरी सखि, क्या कभी तुमने यह कहावत सुनी है कि "तू कौन ? मैं खामख्वाह" ? बहुत प्रचलित कहावत है ये सखि । अब तुम ये पूछोगी कि आज अचानक इस कहावत की याद कैसे आ गई ? तो अचानक कुछ नहीं होता है सखि , कोई
डायरी सखि, "ये क्या हो रहा है देश में ? 2002 के दंगों का फैसला 20 साल बाद 2022 में आ रहा है । क्या यह महज एक संयोग है या कोई साजिश" ? जिन्होंने "साहेब" को फंसाने की साजिश रची थी , पुलिस उन्हें क्
सखि, जब आदमी का गुरूर सातवें आसमान पर पहुंच जाता है तो आम आदमी ही इस गुरूर को तोड़कर ऐसे आदमी को सबक सिखाता है । लोकसभा उपचुनाव के परिणाम यही बता रहे हैं सखि । अभी हाल ही में तीन लोकसभा क्षे
डायरी सखि, कोरोना के बाद कहीं आना जाना नहीं हुआ था । बच्चों का मन था कि कहीं घूमकर आयें । तो अचानक प्रोग्राम बन गया और शनिवार की शाम को हम लोग यहां माउंट आबू आ गये । सोचा था कि यहां गर्मी से
सखि, इस तरह हम लोग माउंट आबू की सैर कर रहे थे । रास्ते में बहुत से सैलानी विभिन्न मुद्राओं में फोटोशूट कर रहे थे और वीडियो भी बना रहे थे । आजकल फोटोशूट करने और वीडियो बनाने का प्रचलन बहुत ज्यादा
डायरी सखि, अब तो स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है कि मेरा देश बदल रहा है । समाज के दलित, वंचित, आदिवासी, वनवासी लोगों को उचित मान सम्मान मिल रहा है और उन्हें मुख्य धारा में लाया जा रहा है । पहले