पाण्डेय धर्मेन्द्र शर्मा
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हिन्दी है मेरी माँ .......................
मेरे शब्द
जिन्दगी में जब भी कोई खुशी मिली अथवा जब-जब जीवन में कुछ अलग हुआ,तब-तब यह हृदय मायाजाल में उलझता गया।उलझन से निकलने का हर प्रयास तब विफल हो जाता जब मस्तिष्क में किसी विचार का जन्म होता और होठ उसे शब्द बना देते।
मेरे शब्द
जिन्दगी में जब भी कोई खुशी मिली अथवा जब-जब जीवन में कुछ अलग हुआ,तब-तब यह हृदय मायाजाल में उलझता गया।उलझन से निकलने का हर प्रयास तब विफल हो जाता जब मस्तिष्क में किसी विचार का जन्म होता और होठ उसे शब्द बना देते।