शाम को
विद्यालय से घर वापिस आते ही श्रीमती जी का आदेश हुआ की कुछ जरुरी सामान लाना
है...भागते हुए बाजार गया...वापिस आते-आते रात्रि के आठ बज चुके थे...आते ही भोजन
पर टूट पड़ा....अभी प्रथम निवाला ही मुंह को गया था की फोन घनघना उठा...निवाला
गटकते-गटकते जेब में हाथ डाला और मोबाइल निकालकर बात करना शुरू ही किया था की
पत्नी ने कहा कम-से-कम खा कर बात करोगे तो कौन-सा तूफान आ जायेगा...फोन पर बात
समाप्त होते ही मैंने जोर से पत्नी को सुनते हुए कहा की कपड़ा और जरुरी सामान जल्दी
से दे दो..पटना जाना है...थोड़ी देर में ही पटना निकलना होगा....मूल्यांकन
प्रशिक्षण हेतु जाना है...और यह कहते हुए हाथ धोकर दबे पांव अपने कमरे की ओर चला
ही था की सच में तूफान आ चूका था....पत्नी बड़बड़ाऐ जा रही थी....विद्यालय,कार्यालय,प्रशिक्षण,संघीय-राजनीती
सब कुछ जरुरी है....जरुरी नहीं तो परिवार....आजकल नौकरी तो जैसे आफत ही हो चुकी
है...हालाँकि दस-पन्द्रह मिनट बाद मेरे जरुरी सामान मेरे सामने थे..जो मुझे यात्रा
के लियर चाहिए थे....बड़बड़ अभी भी चल रही थी....उसी बड़बड़ के बीच मैं पटना के लिए
निकल पड़ा....
रेलवे स्टेशन पहूँचने पर पता चला की एक
मैं नहीं बल्कि सात मूल्यांकन केंद्र के लिए कुल चौदह शिक्षक जिला से मूल्यांकन
प्रशिक्षण हेतु पटना जाने के लिए नामित किये गए हैं....चौदह शिक्षकों में से
मैं,कुमार साहब,झा जी,तिवारी बाबा,दादा और सिंह भैया पूर्व से एक-दूसरे से
थोड़े-बहुत परिचित थे...इन सबमे सिंह भैया(सुबोध सिंह) सबसे सीनियर थे...उसके बाद
दादा(ओम बर्मन)....मैं (स्वयं लेखक) झा जी(रविन्द्र झा),कुमार साहब(विकास कुमार)और तिवारी बाबा(सन्नी
तिवारी) सभी लगभग हमउम्र ही थे ...और सबकी उम्र तीस से बत्तीस-चौंतीस वर्ष के बीच
की ही होगी...तय समय पर हम सभी अगले दिन पटना पहुंचे ....प्रशिक्षण-सत्र में काफी
नई-नई जानकारियों से अवगत होने का मौका मिला...साथ ही यह भी लगा की इस वर्ष
माध्यमिक परीक्षाओं के मूल्यांकन में समिति कुछ नये तैयारियों के साथ मूल्यांकन
कार्य कराएगी....वापसी के पूर्व हम सबने खाना खाया और रेलवे स्टेशन की तरफ रवाना हो
चले...ट्रेन तय समय पर ही खुली...ट्रेन में बैठते ही कुमार साहब की पत्नी का फोन
आया...फोन पर बात करते हुए कुमार साहब ने लगभग घिघियाते हुए अंदाज में कहा – अरे
नहीं जी...तुम्हारी कसम मैंने घर से निकलने के बाद एक भी मिठाई नहीं खाई है और
साबुत के तौर पर कहा विश्वास नहीं हो तो कवि जी से पूछ लीजिए और मेरी तरफ
मुस्कुराते हुए देखने लगे...बातों-बातों में यह पता चला की कुमार साहब की उम्र अभी
मात्र बत्तीस ही है फिर भी पिछले दो वर्षों से डायबिटीज से परेशान हैं...कमबख्त
जीना मुहाल हो गया है...खाना-पीना सब बंद हो गया है .....ये मत खाओ...ये नहीं खाना
है....सुन-सुनकर दिमाग सुन्न हो जाता है...और इस प्रकार कुमार साहब ने लगभग एक
घंटे का भाषण सबको पिला दिया...तभी अचानक से एक जोरदार आवाज गूंजी-ऐ महाराज चुप
रहिये ....ये झा जी थे जो किसी कार्य में अपने लैपटॉप में लगे हुए थे और कार्य समाप्ति
के बाद उनके ये पहले वाक्य थे...सबने उनकी तरफ अचानक ही नजर घुमा दी और उन्हें
एकटक से देखने लगे की आखिर हुआ क्या है और झा जी कुमार साहब पर इतना भड़के क्यूँ
....तिवारी बाबा ने इशारों ही इशारों में उनसे पूछा और कहा की अरे महाराज एक तो
कुमार साहब परेशान हैं और आप उनकी बेइज्जती कर रहे हैं...दादा ने लगभग गुस्साते
हुए अंदाज में झा जी को शांत रहने का आदेश तक दे दिया...सिंह भैया ने तो यहाँ तक
कह दिया की-झा बाबु आपकी इस उदण्डता पर आपको एक थप्पड़ मारने की भरपूर इच्छा हो रही
है..तब तक शायद झा जी मौके की नजाकत को समझ चुके थे....और हम सब की तरफ हाथ जोड़कर
नेताओं के समान मुद्रा बनाते हुए देखने लगे....हम सब आश्चर्यचकित थे की ये व्यक्ति
इतना बेशर्म कैसे हो सकता है...हम सबने उनकी इस दोहरी उदण्डता पर आपन-अपना सर झुका
लिया ..कुमार साहब तो मारे गुस्से के चेहरा झुकाए खून का घूंट पिते नजर आ रहे
थे....तभी फिर झा जी की बुलंद और हौंसले से लबालब आवाज आई और उन्होंने कहा...कुमार
साहब बुरा ना मानिये तो एक बात पूछूं...कुमार साहब ने अनमने ढंग से हाँ की मुद्रा
में सर हिलाते हुए स्वीकृति दे दी.....झा जी ने कहा की –आपको डायबिटीज हुए कितना
साल हुआ है.....जवाब में कुमार साहब ने अंगुली के इशारे से दो वर्ष बताया और....सर
झुका लिया.....प्रसन्न मुद्रा में ठहाका लगाते हुए झा जी ने कहा.....भक् महाराज आप
क्या बतियाईयेगा हमसे ...हम तो मात्र चौतीस वर्ष के हैं और हमको आठ साल से डायबिटीज
है .....हम तो आपसे डायबिटीज में भी सीनियर हैं...उनकी बात इतनी अचानक से आई की हम
सब उनकी बातों का अर्थ समझ ही नहीं पाए लेकिन जब उनकी बातों की गहराई समझ में आई
तो सभी वाह-वाह कहते हुए उनके हौंसले की दाद देने लगे.... आस-पास के कुछ यात्रियों
ने भी उनके हौसले को सलाम करते हुए हमारी वाह-वाह में अपनी सहमति दे डाली...बेचारे
कुमार साहब तो खुशी से उछलते हुए झा जी के गले जा लगे और कहा सच में महाराज हम
आपसे डायबिटीज में भी जूनियर हैं तभी तो इतना परेशान रहते हैं और एक आप हैं की
........फिर अंतहीन बातों का सिलसिला ट्रेन से उतरने तक चलता रहा.....
बीमारी में
भी झा जी मस्ती निकाल चुके थे