23 फरवरी 2015
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अपनी तक़दीर में तो कुछ ऐसा ही सिलसिला लिखा है, किसी ने वक़्त गुजारने के लिए अपना बनाया, तो किसी ने अपना बना कर वक़्त गुज़ार लिया…….. छू ले आसमान ज़मीन की तलाश ना कर, जी ले ज़िंदगी खुशी की तलाश ना कर, तकदीर बदल जाएगी खुद ही मेरे दोस्त, मुस्कुराना सीख ले वजह की तलाश ना कर. कोन किसका रकीब (enemy) होता है, कोन किसका हबीब (friend) होता है बन जाते रिश्ते -नाते जहा जिसका नसीब होता है|D
अच्छा लिखा है लिखते रहिये
1 अप्रैल 2015