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प्रकृति

19 दिसम्बर 2015

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21 दिसम्बर 2015

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“ भारतीय संस्कृति, हिन्दी और भारत का बाल एवम् युवा वर्ग “

22 सितम्बर 2015
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“ भारतीय संस्कृति, हिन्दी और भारत का बाल एवम् युवा वर्ग “राष्ट्र का बाल एवम् युवा वर्ग राष्ट्र का भावी निर्माता है । वे भावी शासक, वैज्ञानिक, प्रबन्धक, चिकित्सक हैं । किन्तु आज के युवा वर्ग के अपराधों में लिप्त होने के समाचार “युवा एवम् अपराध” नामक शीर्षक से जब हम समाचार यदा – कदा पढ़ते हैं तो यह स

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"मेरी आशा"

29 सितम्बर 2015
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"आदमी के बिना"

29 सितम्बर 2015
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अपने नन्हें-नन्हें हाथों से कागज पर पर्वत, पेड़, नदी, फूल चिड़िया, बादल, पौधे, सूर्यउकेर कर रंगों से सजाकर बेटी ने मुझे कागज दिखाया मम्मा, देखो मैंने क्या बनाया ? मैंने पूछा - तुमने इसमें एक भी न आदमी बनाया ? बेटी ने पूरी मासूमियत से बताया -“उसकी जरूरत ही नहीं, यह तो ऐसे ही लग रहा सुंदर” मैंने उसकी ह

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कृष्ण स्तोत्र 1

2 अक्टूबर 2015
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"आह्वान"

2 अक्टूबर 2015
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क्या यह धरा वही हैजहाँ था गार्गी नेकिया शास्त्रार्थ?राजगुरु की समझ केबाहर,थे विद्योत्तमा केभावार्थ।विद्या, वाणी, बुद्धि,विवेक,ज्ञान करेगाअनुसंधान।शक्ति की देवीदुर्गा तो,करती है रिपु का सर–संधान।वाणी चाहती सदैवसम्मान, वरना शक्ति के लिएखुलता है द्वार।किरण शक्ति की वेदीपरकरती वार, प्रहार,संहार।”ज्ञान व

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"ईश्वर की दृष्टि"

2 अक्टूबर 2015
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माँबच्चे को जन्म देकरजान पायीईश्वर को !क्योंकि-वह देख पायीबच्चे में अपना विश्वऔर विश्व कोईश्वर की दृष्टि से । --x--

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"जो इनसान होते हैं जीवट वाले"

5 अक्टूबर 2015
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"धर्मनिरपेक्षता"

8 अक्टूबर 2015
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“धर्मनिरपेक्षता” इसे मात्र संयोग ही कहा जा सकता है कि आज जो विषय "धर्म" भारतवर्ष में सर्वाधिक चर्चा का विषय बन गया है, आज से ठीक एक शताब्दी पूर्व अर्थात् सन् 1893 ईस्वी में स्वामी विवेकानन्द इसी विषय से सम्बन्थित एक महासभा में भाग लेने शिकागो गये एवम् अपनी विचारधारा को सर्वोच्च स्थान दिलाने में भी स

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"बस इतना ही"

10 अक्टूबर 2015
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 बस इतना हीनकहो कि इनसानियत अब जीवित नहीं,नकहो कि जीवन मूल्यों की अब कीमत नहीं।नकहो कि है कल्पना सब, यह हकीकत नहीं।हाँकभी, कहीं इनसानियत सोयी है,तुम्हेंहै बस जगाना ही ।***हाँ कभी, कहीं जीवन-मूल्यों का मूल्य,तुम्हेंहै बस याद दिलाना ही ।यहसब कल्पना नहीं, यथार्थ भी,तुम्हेंबस इतना है पहचानना ही ।

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"हम एक हैं"

13 अक्टूबर 2015
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कश्मीर से कन्याकुमारी तककच्छ से बंगाल की खाड़ी तक । डोगरी से मलयालम तक,गुजराती से बंगाली तक। क्या,कहीं कुछ फर्क है दिखता ?भाषा,पहनावा ही अलग दिखता ।इनसानतो एक-जैसा मिलता,वहीपुष्प यहाँ-वहाँ खिलता ।विशेषतातो यही है हिन्दुस्तान की,बाजीलगा देंगे हम जान की।दुश्मनकी नजर न पड़ने देंगे,हमएक थे, एक हैं, एक रहे

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लोदी गार्डन

14 अक्टूबर 2015
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@ "दृष्टिकोण"

14 अक्टूबर 2015
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सूर्यआधा उदित है,याफिर आधा ढला ?घटहै आधा खाली,याफिर आधा भरा?नैनथे अर्द्धरात्रि में,अधजगेया अधसोये?अंतर‘दृष्टिकोण’ का सिर्फबताइये,हम क्यों मुसकराये?  

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प्रकृति

19 दिसम्बर 2015
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बचपन की दुनिया

19 दिसम्बर 2015
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प्रकृति के रूप

19 दिसम्बर 2015
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प्रतिबिम्ब

19 दिसम्बर 2015
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वक़्त का लम्हा

26 दिसम्बर 2015
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मेने  रोका पर  वो  निकल  गया ..  वो  वक़्त का लम्हा था  और  पानी  सा  फिसल  गया.... 

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मनुष्य

20 अप्रैल 2016
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