बस इतना ही
न
कहो कि इनसानियत अब जीवित नहीं,
न
कहो कि जीवन मूल्यों की अब कीमत नहीं।
न
कहो कि है कल्पना सब, यह हकीकत नहीं।
हाँ
कभी, कहीं इनसानियत सोयी है,
तुम्हें
है बस जगाना ही ।
***हाँ कभी, कहीं जीवन-मूल्यों का मूल्य,
तुम्हें
है बस याद दिलाना ही ।
यह
सब कल्पना नहीं, यथार्थ भी,
तुम्हें
बस इतना है पहचानना ही ।