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"धर्मनिरपेक्षता"

8 अक्टूबर 2015

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धर्मनिरपेक्षता”

 

इसे मात्र संयोग ही कहा जा सकता है कि आज जो विषय "धर्म" भारतवर्ष में सर्वाधिक चर्चा का विषय बन गया है, आज से ठीक एक शताब्दी पूर्व अर्थात् सन् 1893 ईस्वी में स्वामी विवेकानन्द इसी विषय से सम्बन्थित एक महासभा में भाग लेने शिकागो गये एवम् अपनी विचारधारा को सर्वोच्च स्थान दिलाने में भी सफल रहे आइये, हम सर्वप्रथम इसी "धर्म" शब्द को ही समझ लें

 

"धर्म" "धारयेति इति धर्म:" "धारस्णात धर्म : इत्याहु:" अर्थात् जिसे धारण किया जाये वह धर्म कहलाता है ।जो जीवन को आधार देता है, जीवनयापन की दिशा देता है और मनुष्य को परिवार एवम् समाज में उचित ढंग से विचरने में सहायक होता है, वह धर्म है सृष्टि का सर्ग  जिन नियमों से होता है, वही धर्म होता है, उसके अनुसार चलना धर्म  कहलाता है अत: धर्म वह है जो सम्पूर्ण चराचर, जड़चेतन, पर्वत, नदी, वनस्पति, मनुष्य, पशु, पक्षी  आदि  के परस्पर अधिकार एवम् कर्त्तव्यों  को  प्रतिष्ठापित करता है,  जीवन का उदेश्य,  मार्ग निर्धारित करता है मनुस्मृति  में धर्म  के दस  लक्षण बताये गये है - धृति,  क्षमा, दया, इन्द्रिनिग्रह विद्या, सत्य  इत्यादि इन लक्षणों का सम्बन्ध किसी  पूजापद्धति से  नहीं है ये नियम शाश्वत एवम् सनातन है और सभी के लिये समान रूप से आचरण योग्य हैं

 

धर्म की परिभाषा इतनी विशद है कि सारा ब्रह्माण्ड इसकी परिधि में आता है उदाहरणत: दर्शनशास्त्रों

में पृथ्वी  का  धर्म गंध, आकाश  का  धर्म  शब्द,  वायु का  धर्म स्पर्श, अग्नि  का धर्म  तेज  एवम्  जल का धर्म रस बताया गया है

 

वास्तव  में "धर्म" शब्द का अंग्रेजी, फारसी, अरबी आदि भाषाओँ में समानार्थक शब्द नहीं है  इसलिये विदेशी  इस  शब्द का "रिलीजन", "मजहब" नाम से अनुवाद करने लगे उसके  बाद अंग्रेजी के मानसपुत्र भारतीयों  ने भी  इस शब्द  का अनुवाद  अग्रेजी के "रिलीजन" शब्द के रूप में ही किया जबकि  "रिलीजन"शब्द हिंदी के "पंथ" अथवा "संप्रदाय"एवम् उर्दू के "मजहब" शब्द का अंग्रेजी रूपान्तरण है कि शब्द "धर्म" का

 

पंथ, संप्रदाय, मजहब अथवा रिलीजन

 

अंग्रेजी शब्दकोष के अनुसार - "रिलीजन" शब्द का अर्थ है - अलौकिक शक्ति के अस्तित्व में आस्था ।विभिन्न "रिलीजन" उन विभिन्न  समुदायों  तक ही सीमित होकर रह गये हैं "रिलीजन" का सम्बन्ध उस समुदाय से है जो किसी देवदूत से उस समुदाय के आत्मिक विकास हेतु उसके विचारों से प्रभावित हो। उसके  विचार  लिपिबद्ध  हों  और इस  प्रकार  संकलित  पुस्तक को उस रिलीजन के लोगों की पुस्तक माना जाता हो  उसके अनुयायी उसमें बताये  मार्ग का अनुसरण करने के लिये बाध्य हों । पंथ, संप्रदाय, मजहब अथवा रिलीजन की एक निश्चित जन्मतिथि भी होती है (किन्तु  धर्म  की  कोई जन्मतिथि  नहीं होती ) हमारे  देश में भी अनेक  ऐसे  मनीषी  हुए  है जिनकी  वाणी  को  उनके अनुयायियों ने लिपिबद्ध किया और इस प्रकार अनेकानेक संप्रदाय चले उदाहरणत: शैव, वैष्णव, नानक, बौद्ध जैन आदि अनेक संप्रदाय का भारत में जन्म हुआ यहॉ यह उल्लेखनीय है कि भारत में जन्मे इन संप्रदायों के मतानुयायी भी हुए किन्तु जहॉ तक धर्म का प्रश्न है ये संप्रदाय उस सार्वभौमिक धर्म से विलग नहीं हो सकते क्योंकि वह तो इस ब्रहमाण्ड में यत्र तत्र सर्वत्र व्याप्त है

हमारे संविधान में एक शब्द का प्रयोग किया गया है और वह है … "सेक्युलर"

 सैक्युलर”- अंग्रेजी के शब्दकोष के अनुसार – “वह विचार जिसके अनुसार नैतिकता एवम् शिक्षा का आधर रिलीजन नहीं होना चाहिये”।

सैक्यूलर राज्य के तीन सिद्धांत होते हैं।

1.  एक राज्य अथ्वा राजा अपने नागरिकों के बीच उनके मजहब, पंथ अथवा पूजापद्धति के आधार पर भेदभाव न करे।

2. समी नागरिकों पर समान कानून लागू हो

3.  कानून एवम् न्यायालयों के सामने सभी नागरिक बराबर हों

संसार के सभी सेक्यूलर राज्यो में इसे पूरा किया जाना है इंग्लैण्ड, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी (आदि समी देश इन सिद्धान्तों को पूर्ण रूप से मानते हैं ।यहॉ यह विचारणीय है कि "सेक्युलर" शब्द स्वयं "रिलीजन" शब्द के रूप में परिभाषित है परिभाषा से स्पष्ट है कि रिलीजन एक से अधिक भी हो सकते हैं किन्तु जब धर्म की परिभाषा में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ही समाहित है तो क्या हम "रिलीजन" को धर्म का समानार्थी शब्द मान सकते हैं? क्या धर्म की किसी के साथ भी तुलना संभव है? इस प्रकार जब हम धर्म की तुलना किसी संप्रदाय विशेष से करते हैं तो यह उसी के समान होगा जैसे ब्रह्माण्ड की तुलना हम सूर्य या सौर मंडल के किसी ग्रह से करें कहने का तात्पर्य यह है कि धर्म के मर्म को भलीभांति समझने के पश्चात् क्या हम "धर्म के सापेक्ष" अथवा "धर्म के निरपेक्ष" जैसे शब्दों का कहीं अस्तित्व खोज सकते है अत: "धर्मनिरपेक्षता" शब्द सर्वथा अस्तित्वहीँन, अर्थहीन है।

 

वास्तविकता तो यह है कि भारतवर्ष में प्रचलित हिन्दी, संस्कृत, एवम् अन्य प्रान्तीय भाषाओँ के ऐसे अनगिनत शब्द हैं जिनके लिये अग्रेंजी भाषा में कोई शब्द नहीं है "धर्म" शब्द भी उनमें से एक है इस प्रकार "सेक्युलरिज्म" शब्द वास्तव में हिन्दी में “पंथ निरपेक्षता" "सम्प्रदाय निरपेक्षता" "मजहब निरपेक्षता" का पर्याय है कि तथाकथित "धर्म निरपेक्षता" का इसप्रकार "सेक्युलरिज्म" शब्द को हिन्दी में "धर्म निरपेक्षता" कहना, उसका अर्थ नहीं बल्कि अनर्थ करना है

 

इसे विडम्बना ही कहा जा सकता है कि हमारे संविधान में "सेक्यूलर" शब्द का हिन्दी रूपान्तरण "धर्म निरपेक्ष" किया गया यह बात जितनी हास्यास्पद एवम् आश्चर्यजनक है कि अपना संविधान ही नहीं अपितु वेद, उपनिषद और योग इत्यादि जो भारतीय संस्कृति की धरोहर माने जाते हैं, जिन्हें हमारे मनीषियों ने अपने अथक परिश्रम से संस्कृत में लिपिबद्ध किया था उन्हें भी हम अंग्रेजी में पढ़ने और सीखने को बाध्य हैं पता नहीं, भारतीय जनमानस को अभी "धर्मनिरपेक्षता” जैसे कितने शब्दों, वाक्यों विषयों पर आयोजित बाद विवादों, गोष्ठियों इत्यादि की श्रृंखला से गुजरना पड़ेगा

-    आशा  क्षमा”

 
आशा  “क्षमा”

आशा “क्षमा”

अवश्य अनुराग जी !

13 अक्टूबर 2015

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया 'अनुराग'

बहुत ही सुन्दर आलेख है ,अति चिंतनशील विषय 'धर्म'पर आपका चिंतन प्रशंशा योग्य है ,आशा जी आशा करता हूँ की जीवन में इस बिषय पर अवश्य चर्चा होगी !

12 अक्टूबर 2015

आशा  “क्षमा”

आशा “क्षमा”

धन्यवाद ! आभारी हूँ, आपने लेख को गंभीरता से समझा . ओम प्रकाशजी !

10 अक्टूबर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

"धर्म की परिभाषा इतनी विशद है कि सारा ब्रह्माण्ड इसकी परिधि में आता है", धर्मनिरपेक्षता विषय पर उत्कृष्ट लेख और साथ ही इसमें सामयिक कई ज्वलंत प्रश्नों के हल निहित हैं ! अत्यंत आवश्यकता है इसे समझने की और जीवन में ढालने की !

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 बस इतना हीनकहो कि इनसानियत अब जीवित नहीं,नकहो कि जीवन मूल्यों की अब कीमत नहीं।नकहो कि है कल्पना सब, यह हकीकत नहीं।हाँकभी, कहीं इनसानियत सोयी है,तुम्हेंहै बस जगाना ही ।***हाँ कभी, कहीं जीवन-मूल्यों का मूल्य,तुम्हेंहै बस याद दिलाना ही ।यहसब कल्पना नहीं, यथार्थ भी,तुम्हेंबस इतना है पहचानना ही ।

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कश्मीर से कन्याकुमारी तककच्छ से बंगाल की खाड़ी तक । डोगरी से मलयालम तक,गुजराती से बंगाली तक। क्या,कहीं कुछ फर्क है दिखता ?भाषा,पहनावा ही अलग दिखता ।इनसानतो एक-जैसा मिलता,वहीपुष्प यहाँ-वहाँ खिलता ।विशेषतातो यही है हिन्दुस्तान की,बाजीलगा देंगे हम जान की।दुश्मनकी नजर न पड़ने देंगे,हमएक थे, एक हैं, एक रहे

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