प्रस्तावना
मैं विश्वाश नहीं कर पा रहा हूं कि रोहित अब इस दुनिया में नहीं है__ आंखे बंद करता हूं तो रोहित मुस्कुराता हुआ नज़र आता है। वो सारे पल याद आने लगते हैं जो हमने साथ में गुजारे थे __
यही कुछ दिन पहले मुझे रोहित से कॉल पे बात भी हुई थी __ कितने प्यार से कितनी मीठी मीठी बातें कर रहा था।__मुझे इस बात का जरा सा भी भनक नहीं लगने दिया की वो केंसर से जूझ रहा है__ .........
रोहित का किरदार वास्तव में किसी फरिश्ते से कम नहीं था ___ मैं रोहित को कभी उदास नहीं देखा था _ हरदम मुस्कुराता रहता ___ दूसरो को हंसाता रहता ......... बड़ा मस्तमौला खुशमिजाजी किस्म का लड़का था ...... वो हरपल को खुल कर जीता था ..... उसे कभी कोई गम परेशान नहीं कर पाता था ....मैं रोहित से आज से दो साल पहले मिला था ...12 की कोचिंग के दौरान __
मुझे याद है _मैं कोचिंग में नया हूं __काफ़ी घबराहट के साथ अकेला महसूस कर रहा हूं ....
तब एक लड़का जो मेरे आगे की बेंच पर बैठा हुआ था मेरी और हाथ बढ़ाते हुए मेरा नाम पूछता है __ और अपने बेंच पे बैठने का न्योता देता है ___ और कुछ ही दिनमें मेरा वो सबसे प्यारा और जिगरी दोस्त बन जाता है ____
क्या सच में वो मुस्कुराता हुआ चेहरा खो गया ?????_ मैं जबसे से रोहित की मृत्यु की ख़बर सुना हूं .... मैं तब से ऐसा महसूस कर रहा हूं कि मैंने बहुत बड़ी कुछ अमानत खो दी .....
अपने जन्म दिन के अवसर पर रोहित के द्वारा दिए गए उपहारस्वरूप घड़ी को बार – बार देखता हूं .... चूमता हुं ,एक यही
मेरे पास रोहित की निशानी है __
रोहित एक लेखक बनना चाहता था __ मुझे हरदम जीवन जीने का सलीका सिखलाता रहता ...... रोहित के अंदर सीखने की एक भूख दिखती थी ___ वो जीवन के हर चैप्टर को बड़े बारीकी से पढ़ लेना चाहता था ___वो इस दुनियां की हर हरकत को अपना गुरु मानता था ......... उनदिनों में " मेंरे सामने वाली खिड़की में नाम का "कोई उपन्यास भी लिख रहा था __
मैं जब इसका कहानी पूछता तो वो टाल दिया करता ,कहता “जब किताब आएगी उस वक़्त पढ़ लेना..”... मैं हमेशा से रोहित के इस उपन्यास की कहानी को जानने के लिए उत्सुक रहता किन्तु ...वो
हमेशा टालता आया है .. .....अपने पहले पाठक के रूप में रोहित मुझे देखना चाहता , फिर वक़्त ने करवट ली हम 12 की परीक्षा दे अपने अपने शहर आ गए .............
मुझे रोहित के किताब का हमेशा से इंतजार रहा है...... ये महज किताब नहीं मेरे दोस्त का एक ख़्वाब था ........ मैं रोहित के इस सपने को बिखरते नहीं देख सकता था _ रोहित तो अब नहीं रहा किन्तु मैं अपने दोस्त के जज्बात को पूरी दुनिया तक पहुंचाना चाहता था, .. एक रोज़ बिना कुछ सोचे समझे रोहित के घर की और रवाना हो गया ..... इससे पहले मैं कभी रोहित का घर नहीं आया था रोहित का घर बोकारो जिले के चमनपुर गांव में स्थित हैं, मैं लोगो से पूछते – पूछते सही पते पर पहुंच गया__
मैंने अपना परिचय दिया तो रोहित की मां ने मुझे सीने से लगा ली और रोने लगी .....“ रोहित हमेशा तेरी बाते करता था”
मेरी आंखे भी नहीं रुकी ..... आंसुओ की सैलाब गिर पड़ी ..... मैंने मां से पूछा" मां मै
रोहित का कमरा देखना चाहता हूं मां मुझे रोहित के कमरे तक ले गई........मैंने जैसे दरवाज़ा खोला एक पल तो ऎसा लगा जैसे रोहित अपने बिस्तर पर लेटे कुछ लिख रहा हो ... ये मेरा भ्रम था ...... मेरी आंखे रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी ..... मैं जी भरकर रोना चाहता था...... कमरे के दीवार पे मेरा और रोहित के साथ की एक तस्वीर लगी हुई थी.. मुझे याद है ये तस्वीर हमने एक पार्क में खींचवाई थी... रोहित मुझे भाई से बढ़कर चाहता था ..... मैं रोहित के कमरे की सारी चीजों को बड़े प्यार से देखने लगा ... मैं अपने आंसू को नहीं रोक पा रहा था......., मैं रोहित के उपन्यास लिखी डायरी ढूंढ़ रहा था कुछ छण के तलाश के बाद वो डायरी मेरे हाथ लग गई....., मेरा ये सफ़र अब मुक्कमल हो चुका था....मैं इस डायरी को लेकर अब घर लौट आना चाहता था इसलिए मैंने रोहित कि मम्मी से वापस लौटने की आज्ञा मांगी .... उसकी मम्मी बड़ी बेबस और लाचार नजर आ रही थी.... वो मुझे अभी जाने नहीं देना चाहती थी ... मुझे एकटुक निहारते हुए मम्मी बोली ...” बेटा तुममें मेरा रोहित नज़र आता है, तुम्हें देखकर ऐसा लगता है मानो मेरा रोहित लौट आया है......, कुछ दिन अगर हमारे साथ ठहर जाते तो हमें बड़ा अच्छा लगता.... रोहित की मां की बेबसी देखकर मेरा दिल रो रहा था... मैंने मां को सांत्वना देते हुए कहा मां मुझे अपना बेटा ही समझो रोहित मेरे लिए भाई से बढ़कर था....
मां बता रही थी कि किस प्रकार रोहित घर को हरदम अपनी कलरव से चहकाए रखता था,
मैं आज एक ऐसी मां का सामना कर रहा था... जिसने अपना इकलौता बेटा खो दिया था...... "अब रोहित नहीं है तो पूरा घर वीराना लगता है_"_...... मां अपनी एक भी बात को बिना आशुं बहाए ख़तम नहीं कर पा रही थी.....मैं इनके दुख को समझ सकता था
काश नियती भी इस मां की पीड़ा समझती और इनके जिगर के टुकड़े को नहीं छिनती ...
मेरी और मां की बातें चल ही रही थी की एक मुलायम मधुर आवाज़ ने हमें अपनी ओर आकर्षित किया........ ये आवाज़ कल्पना की थी...... मुझे समझने में देर ना लगी कि ये लड़की रोहित की बहन है..... वैसे भी एकबार मैंने रोहित के फोन में इनका तस्वीर देखा था.... तभी से ये चेहरा मेरे जेहन में था......
कल्पना हकीकत में तस्वीर से ज्यादा खूबसूरत थी......
वो अभी नींद से जागी हो ऐसा मालूम हो रही थी ....मां ने कल्पना का परिचय मुझसे कराते हुए जैसे बोली कि ये रोहित का दोस्त...... तभी झट से कल्पना बोल पड़ी रंजन है ना... रोहित तो इनके बारे में कहते कभी थकता ही नहीं था..... रोहित के गुज़रे आज पूरे 2 महीने 3 दिन हो गए थे.... कल्पना से कुछ देर बातें कर मां को फिर आने का आश्वासन देकर मैं अपने घर की और प्रस्थान कर गया... मुझे घर पहुंचते – पहुंचते रात के 8:30 बज गए थे... मैं अब जल्दी से अपने दोस्त द्वारा लिखा उपन्यास पढ़ लेना चाहता था ... मेरा मानना था कि रोहित जरूर अपने निजी जीवन उथल- पुथल इस उपन्यास में दर्ज किया होगा........ मैंने जल्दी से रात्रि भोजन करके अपने स्टडी टेबल पे रोहित के इस डायरी को लेकर बड़े उत्सुकता के साथ पढ़ना आरंभ किया..... आज मैं अपने दोस्त को इसके उपन्यास के माध्यम से जीने वाला था..........
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