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प्यासा सागर

3 फरवरी 2022

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खोलकर तुम गेसुओं को जब भी निकले 
जाफ़रानी सी महक उठ्ठी हवाएं ।
टूट बैठे डालियों से फूल सारे 
भूल बैठे रास्ते अपनी दिशाएं ।।

बेल पावस में सुभाषित हो रही है 
चांदनी भी आ गई पथ में बिखरने ।
ले रही अंगड़ाइयां वो मेघ बूंदें 
रूप राशि की स्वंय ऋतु में निखरने ।

प्रेम का प्रेमी मधुर रस खोलते हैं 
पीत सरसों पे जो भौरे गुनगुनाएं।।

उड़ चला सुधियों में अपनी मन पखेरू 
ढूंढने अनुराग के गीतों की नगरी ।
लिख रहा अनुबंध की जल पर कहानी 
फुनगी फुनगी हो गई रंगीन सगरी ।

नेह रस घुलने लगा कानों में जैसे 
आ रही हों दूर से फगवी सदाएं।।

भावना ने प्रेम रूपी बीज बोकर 
कर दिया फिर से हरा बंजर जमीं को ।
खिल गया है पुष्प वो जो बिन तुम्हारे 
भूल बैठा था कभी अपनी हंसी को ।

भर गई झंकार रग रग में ह्रदय के
खुल गई है बंद प्रश्नों की ऋचाऐं।।

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