कुछ तो है तेरे मेरे दरमियांँ जो करता है मुझे बेक़रार,
बेचैन दिल को चैन न मिले जब तक ना हो तेरा दीदार।
थे अनजाने से,न जाने साथी कब बस गए तुम दिल में,
बावरी हुई,सुनूँ तुम्हारी ही बातें,करूंँ तुम्हारा ही एतबार।
ख़्वाबों ख़यालों में क़ाबिज तुम,तसव्वुर में भी तुम ही हो,
फ़क़त तुम्हें ही सोचा करें,इश्क़ में दिल पर न है इख़्तियार।
दिल की बस्ती पर छाया है मौसम-ए-बहार तेरी चाहत से,
तेरी मौजूदगी ने ज़ीस्त का कोना कोना किया है गुलज़ार।
है ये तेरे मेरे दरमियांँ जो,मोहब्बत इसे ही कहते हैं शायद,
न छुपाएंँगे अब,हाँ इश्क़ है हमें तुमसे करते हैं हम इक़रार।