रात भर वो मुझे याद
आते रहे
इक विरह वेदना में
जलाते रहे
मेरी आँखों में मस्ती भरी नींद थी
करवटों करवटों वो
जगाते रहे
चाँद भी देख कर हम पे हँसता
रहा
उनके फोटो का घूँघट हटाते रहे
साथ उनके बिताये थे जो सुनहरे पल
सोचकर उनको बस मुस्कुराते रहे
उनकी खुशबू से तन मन महकता
रहा
धीमे धीमे से हम गुनगुनाते रहे
हमने चाहा था वो अब चले आयेंगे
धडकनों में मेरी वो बस जायेंगे
जब से रूठे है वो मेरी आवाज़
से
इशारों - इशारों हम मनाते रहे
अब तो दूरी हुई अपनी मजबूरियां
भाव तन्हाई के पास आते रहे
बर्फ की मानिंद मैं पिघलता रहा
जब से दिल की शमां वो जलाते
रहे
भीम
भारत भूषण