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बन्धन (माता पिता और पुत्र पर लिखी कविता)

7 दिसम्बर 2021

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सहसा एक दिन नजर पड़ा 
छत के एक घोंसले पर
लगा सोचने बड़े देर तक
विधि की है कैसी माया 
प्यार कहूं कि स्वार्थ कहूं?
देख मां बच्चे पर छाया
चिड़िया चुग चुग कर जो देती 
स्नेह प्यार का एक-एक दाना 
चुप्पी साधी बड़ी देर तक 
तब समझ में यह आया 
कर्तव्य है मां-बाप का
नन्हे-मुन्ने सींचे  पौधे 
फर्ज के बंधन में बंध पौधा 
अंततः देता है छाया ||


                           रचनाकार-रामबृक्ष, अम्बेडकरनगर
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दु: ख की बदली

3 दिसम्बर 2021
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उड़ते बादल

3 दिसम्बर 2021
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<div>शीर्षक- उड़ते बादल</div><div> </div><div>खींच खी

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दु:ख की बदली

4 दिसम्बर 2021
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बढ़ते कदम प्रेरणादायक कविता

4 दिसम्बर 2021
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<div>शीर्षक- बढ़ते कदम</div><div> मुसाफिर!</div><div> तान

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पुराने नीम की छांव में

4 दिसम्बर 2021
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<div> गिल्ली डंडा बाघा बीता</div><div> छुक छुक इंजन वाला खेल,</div><div>&n

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गुलाब और कांटे

4 दिसम्बर 2021
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<div>कविता-गुलाब और कांटे</div><div><br></div><div>कांटों में पला बढ़ा जीवन</div><div>संग पत्ते बीच

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मर्यादा (नारी सम्मान पर लिखी कविता)

6 दिसम्बर 2021
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<div>नर नारी में भेद रहा है</div><div> कि नर से भारी नारी </d

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विद्यार्थियों की व्यथा (विद्यार्थियों के जीवन पर लिखी कविता)

6 दिसम्बर 2021
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बन्धन (माता पिता और पुत्र पर लिखी कविता)

7 दिसम्बर 2021
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<div>सहसा एक दिन नजर पड़ा </div><div>छत के एक घोंसले पर</div><div>लगा सोचने बड़े देर तक</div><d

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लज्जा (नारी पर लिखी कविता)

15 दिसम्बर 2021
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<div>नयी नवेली खिली गुलाब सी,</div><div> &nbs

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थकान का पसीना

21 दिसम्बर 2021
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<div>मोती सा मस्तक पर झिलमिल</div><div>लुढ़क रहा धीरे धीरे</div><div>झर झर झरता पग तल रज में ,</div>

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भारत भाग्य विधाता

25 दिसम्बर 2021
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<div>भटक रही थी बूढ़ी महिला</div><div>तम तमाती धूप में |</div><div>अधमरी सी झुकी खड़ी थी, </div

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नव वर्ष का सवेरा

30 दिसम्बर 2021
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<div> शीर्षक-नव वर्ष का सवेरा</div><div><br></div><div>नये साल का आया पावन सवेरा</div><div>पावन

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मेरी शान तिरंगा है

10 जनवरी 2022
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शीर्षक-मेरी शान तिरंगा है पिता कौन क्यों है लेटा ?ओढ़े कफ़न तिरंगा,कंधों पर ले चार खड़े हैंआंख से बहती गंगा,बेटा बुला रहा है उनकोकरुणा से रो रोकर,गिरी धरा पर मां शिथिलसिंदूर अश्रु से धोकर,आ

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बेरोज़गारी के हाथ -कविता

22 फरवरी 2022
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-बेरोज़गारी के हाथकविताआदि अंत हो या अनन्त होमिटी कहां है क्षुधा किसी कीसायद इसी लिए ही ईश्वरकर खाने के लिए हाथ दीइन हाथों से मेहनत करनासीखा मैंने इस आशा सेसपनो को साकार करुंगारोजगार

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कविता-होली में हो लें हम एक-दूसरे के|

24 फरवरी 2022
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कविता-होली में हो लें हम एक-दूसरे के|होली के रंगों मेंमन के उमंगों मेंलोगों के संगों मेंझूम झूम जाएं हमघूम घूम गाएं हम होली में हो लें हम एक-दूसरे केऋतु के वसंतों मेंमदमस्त अंगों मेंफूलों के रंगो

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