बन क्यों नहीं जाता हर कोई गीता कुरान की तरह, क्यों लड़ता है इंसान आज हैवान की तरह, क्यों प्यार में ताकत न रही झगड़ो को मिटाने की, क्यों हर जगह लगने लगी है शमसान की तरह, क्यों सम्मान करना भूल गए हैं सारे, अपनी ही बेटी को फेक देते हैं सामान की तरह, खुशियो में शरीक होते हैं अपने और बेगाने सब, मगर गमो में अपना भी लगता है अंजान की तरह, ऐतबार नही होता ज़माने जो सच्चे इंसान पर, झूठ आज भी खड़ा है सीना ताने