रश्मि शुक्ला
RASHMISHUKLAPILIBHIT
जानते हैं तुम हमे मानते हो अपना, फिर भी कल रात देखा मैंने एक सपना, हम खड़े थे बीच मजधार में, <p st
RASHMISHUKLAPILIBHIT
<p style="text-align: left;"><strong>जानते हैं तुम हमे मानते हो अपना, </strong></p><p style="text-align: left;"><strong>फिर भी कल रात देखा मैंने एक सपना, </strong></p><p style="text-align: left;"><strong>हम खड़े थे बीच मजधार में, </strong></p><p st
RASHMIVIKAS
बन क्यों नहीं जाता हर कोई गीता कुरान की तरह, क्यों लड़ता है इंसान आज हैवान की तरह, क्यों प्यार में ताकत न रही झगड़ो को मिटाने की, क्यों हर जगह लगने लगी है शमसान की तरह, क्यों सम्मान करना भूल गए हैं सारे, अपनी ही बेटी को फेक देते हैं सामान की तरह,
RASHMIVIKAS
बन क्यों नहीं जाता हर कोई गीता कुरान की तरह, क्यों लड़ता है इंसान आज हैवान की तरह, क्यों प्यार में ताकत न रही झगड़ो को मिटाने की, क्यों हर जगह लगने लगी है शमसान की तरह, क्यों सम्मान करना भूल गए हैं सारे, अपनी ही बेटी को फेक देते हैं सामान की तरह,