रेपुरा कश्मीर में अंगुर की खेती
रेपुरा नामक गांव के बारे में शायद आजकल के लोग नही जानते होगें। लालचौक कश्मीर से मात्र 25 किलोमीटर दुर बसा है यह खुबसुरत गांव। कभी इस गांव के चर्चे चीन, अफगानीस्तान और ईरान तक थे। इस गांव की मिट्टी में पैदा होने वाले अंगूर की मिठास और आकार का कोई मुकाबला नहीं था। समय बीतने के साथ अंगूर की पैदावार यहां कम हो गई जिससे निर्यात भी घट गया।
लेकिन अब यह गांव एक बार फिरसे अपनी मिट्टी में पैदा अंगुर से लोगो के मुह का स्वाद बदलने वाला है।
एक खास बात ओर जब पूरी दुनिया में कहीं ताजा अंगूर उपलब्ध नहीं होता, उस समय सिर्फ इटली के अलावा कश्मीर में ही अंगुर तैयार होता है।
सदियों पुराना है यहां अंगुर की खेती का इतिहास
कश्मीर में अंगूर की खेती सदियों से होती जा रही है। नीलमत पुराण और राजतरंगनी में भी कश्मीर में अंगूर, केसर की खेती का जिक्र है। चीनी यात्री ह्यूनसेंग ने भी अपने यात्रा वृतांत मे यह बात लिखी है। कश्मीरी अंगुर से बनाई जाने वाली शराब को मस्स कहते थे। रिकार्ड के मुताबिक फ्रांसिसी इतिहासकार और यात्री मोनस्यूर एच डेनवरुआ ने 1876 में जंगली अंगूरों से शराब तैयार की थी। तत्कालीन महाराजा रणबीर सिंह उस यात्री से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे कश्मीर में शराब बनाने का कार्य सौप दिया।
कबाइली हमले से पहले विदेशों मे जाता था यहां का अंगूर
एक स्थानीय ग्रामीण ने बताया कि हमारे गांव में पैदा होने वाले अंगूर बहुत रसीले और मीठे होते हैं। कश्मीर पर कबाइली हमले से पहले यहां पैदा होने वाला अंगुर पाकिस्तान , इरान, अफगानिस्तान और चीन तक जाता था। बाद में यह काम ठप हो गया। लोगों ने अंगूर की खेती छोड़कर सेब की खेती शुरू करदी।
इस मिठास की वजह हैं सूफी संत मीर सैयद शाह कलंदर
इलाके के लोग अंगुर की मिठास को सुफी संत मीर सैयद शाह सदीक कलंदर की देन मानते हैं। वह बहुत बड़े सूफी संत थे। संत मीर सैयद शाह इसी इलाके में रहते थे।