घर की सारी खरीदारी कर शिवानी ने जैसे ही सड़क पर आकर रिक्शा ढूढना शुरू किया , तो ये क्या कोई भी रिक्शा उसे खाली दिख ही नहीं रहा ।
कड़ी धूप में शिवानी पसीने से भींगी जा रही थी , तभी उसे एक रिक्शा दिखा , मन में एक आस जगी ओह चलो अब तो एक मिला ।
शिवानी ने आवाज लगाई "भईया अशोकनगर चलोगे"?
रिक्शेवाले ने कहा दीदी अभी तो मैं खाना खाने जा रहा हूं । फिर एक मिनट सोच कर बोला " कोई बात नहीं दीदी चलिए मैं आपको पहले आपके घर पहुंचा दे रहा हूं , आज बहुत तेज धूप है ।
मैं उससे बहुत प्रभावित हुई कि जिसने अपने खाना खाने के समय में से मेरे लिए समय निकाला , ये वाकई में इंसान है।
घर पहुंची और घर जाकर अपने सामान से भरे बैग को ज्यों हीं उतारने चली , झट से उसने मेरे दोनों बैग उठा लिए और घर के अंदर दरवाज़े पर रखकर अपने कंधे पर रखे हुए गमछे से पसीने पोछता हुआ कहने लगा , दीदी पैसे जल्द दे दो , खाकर मुझे तुरंत फिर कुछ कमाने निकलना है ।
शिवानी जल्दी से उसके लिए एक जग ठंडा पानी और सुबह के नास्ते में बनी हुई खीर , सब्जी और रोटी लेकर हाजिर हो गई ।
वो इसे लेने से मना करने लगा और बोलने लगा दीदी मेरा भाड़ा बस दे दो ।
शिवानी ने कहा भईया ये देखो मैं आपका भाड़ा भी हाथ में लेकर निकली हूं , पर आप कृपा कर के हाथ मूंह धोकर पहले थोड़ा नास्ता कर के पानी तो पी लो , फिर घर जाना , बाहर बहुत गर्मी है ।
शिवानी के आग्रह पर रिक्शेवाले भईया की आंखों में आसूं आ गए और शिवानी को कृतज्ञता भरी नजरों से देखते हुए उसने नास्ता और पानी दोनों स्वीकार किया ।
चलते समय शिवानी ने उसे उसका भाड़ा भी दिया ।
रिक्शा वाला अपनी खुशी जाहिर करते हुए शिवानी को हाथ जोड़े बोलने लगा दीदी आज के इस संसार में लोग उचित भाड़ा भी नहीं देते और आपने तो आज मुझ भूखे की भूख भी शांत करा दी।
शिवानी ने कहा भईया मैने ऐसा कुछ खास नहीं किया , ये तो इंसानियत के नाते मेरा फर्ज था।
देनेवाला तो ऊपरवाला है , हमसब तो बस एक जरिया हैं ।