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सांवली सुषमा

20 नवम्बर 2023

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सांवली सुषमा
सांवली सुषमा कभी भी अपनी इच्छाओं को जगा नहीं पाई ।कितनी बार कितने लड़कों का परिवार लड़की देखने के नाम पर ,पसंद के नाम पर रिजेक्ट का तम्गा ऐसे दे जाते जैसे किसी एसोसिएशन ने इंटरव्यू के नाम पर कुछ योग्यता कम होने के नाम पर रिजेक्ट किया हो ।
एक गोरा रंग ही तो ना था ,और हां छोटे कद ने भी उसकी सभी योग्यताओं को कुचल दिया, जिसका मन अाए पूरा परिवार आ जाए ,और कुछ बाद में बताएंगे और कुछ सामने ही कह देते कि कद छोटा है जी हमारे लड़के के साथ जोड़ी नहीं जंचेंगी ।सुषमा को हर बार यह ड्रामा  सा लगता।
हां भाभी का बर्ताव भी अब उपेक्षित सा लगने लगा सुषमा को ,मां पापा की जिम्मेदारी जिसको वह  बोझ नहीं मानते ,बोझ बन चुकी जिम्मेदारी के लिए भी उतार फेंकना नहीं चाहते थे ।
मां भी लोगों के सवालों के आगे जाने से अच्छा घर में रहना ही पसंद करती, ना चाहते हुए भी बढ़ती उम्र वाली सुषमा का विवाह, किसी का घर बस जाए और सुषमा को भी अच्छा घर मिल जाएगा, ऐसा एक  रिश्तेदार द्वारा कराए गए एक बच्चे के पिता से जिसकी पत्नी ने तलाक लेकर बच्चे को भी अपने पास ही रखा था, दीपक से कर दिया गया ।
अब सांवली सुषमा दीपक की पत्नी बन महानगर में अपनी सोच को पीछे छोड़ बस गई ।दीपक को सुषमा की हर बात पिछड़ी नजर आती ,उसका रहन-सहन, उठना बैठना ,बात करने का तरीका सब कुछ दीपक को कुछ अजीब सा लगता ।हर समय की टोका टाकी सुषमा के निखार को निचोड़ती सी लगती।
कभी सुषमा का मन करता अपने मायके वालों से मिलने का तो दीपक की व्यस्तताओं से भरे दिनों की लंबी लिस्ट सुषमा के हाथ में होती ।मायके वाले आते उससे मिलने आते तो दीपक की मात्र औपचारिकता माहौल को नीरस बना देती ।दीपक के व्यवहार से मायके वालों को भी उलझन होती परिणाम स्वरूप दूरियां लंबी दूरी बनएक छोर से दूसरी छोर वाली पड़ने लगी ।सुषमा भी अब यंत्रवत मशीन बनकर, मौन ही रहती ,और घर के कामों की उधेड़बुन में अपने को उलझाए रहती ।
अभी दो दिन पहले सुषमा के भाई ने फोन पर सुषमा को बताया मां कि तबीयत कुछ ठीक नहीं रहती है तुम्हें याद करती हैं समय निकालकर कुछ दिनों के लिए आ जाओ दीपक से कहा और मां से मिलने जाने के लिए पूछा तो जवाब में सहानुभूति की जगह रूखा सा जवाब तुम कोई डॉक्टर हो जो जाकर मां को ठीक कर दोगी जरा ।
जरा सी बात पर मायके जाने की बात तुम्हारे दिमाग में आती कैसे हैं इस रुखे से उत्तर से सुषमा की आंखें भी अब नम नहीं होती ।
सुषमा की अपेक्षा से यह उत्तर अलग ना था ।
ऑफिस से आने पर दीपक ने पूछा आज कोई फोन आया था, तब सुषमा ने बताया हां बड़ी भाभी का फोन आया था, कह रही थी मां जी की तबीयत ठीक नहीं है आपको मिलने के लिए बुला रही हैं सुनते ही दीपक कि झुंझलाहट बढ गई ,यह तुम्हारे घर के रोज रोज के फोन तो मुझे भी बीमार कर देंगे ,मना नहीं कर सकती थी मुझे क्यों बीच में लाती हो ,
आते ही मूड खराब कर दिया ,एक सांस  में बहुत कुछ बोल गया सुषमा से दीपक ,सुषमा भी आवाज सुन अवाक् हो बोलने की कोशिश करती रही ,।
दीपक के चुप होने पर सुषमा ने कहा ,मेरी मां नहीं आपकी मांजी बीमार है ,और बड़ी भाभी का फोन आया था ,मा जी ने आपको ,अपने बेटे को मिलने बुलाया है ।दीपक सुषमा के द्वारा कहे मां की जगह मांजी शब्द को सुन  अवाक हो हड़बड़ा गया ,और जल्दी से मां के पास पहुंचने के लिए आतुर हो ,सुषमा से अपना बैग लगाने के लिए और रास्ते के लिए खाने को कुछ बनाने के लिए कहने लगा।
दीपक जल्द से जल्द मां के पास पहुंच जाना चाहता है दीपक की अपने मां के प्रति लगाव देख सुषमा अपने होंठ पर बुझी मुस्कान और माथे की फैली लकीरों को छिपाने की कोशिश केसाथ स्वयं के दर्द को छुपाने की कोशिश करने लगी।
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रचनाएँ
कुछ तो कहो प्रियंवदा
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हर चेहरा कुछ ना कुछ कहानियों को संजोता है ,हमारे आसपास बिखरी पड़ी है  कुछ कहानीयों की महक ,हमारी यादो से निकल संवरतीं हैं ,कुछ कहानियां । आसपास कितनी अनकही कहानियां ,उनको शब्दों में पिरोने की छोटी सी कोशिश है मेरी। कहानियों के सफर में मेरे सहयात्री बनकर आप मेरे सफर को यादगार अवश्य बनाएंगे ।
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