1 मार्च 2017
इतना भी उजला- उन्नत ना बनाये शहर को,
की हक़ीक़त के जुगनू भी टीम-टीमा ना सके.....
~ डॉ. प्रकाश चौधरी
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खुवाइशे तो देख मेरी तू ....अंजाम तय है फिर भी खिलने की तमन्ना रखता हूँ। खिलता हु कांटो के दामन में...फिर भी दिलो को जोड़ने की आरज़ू रखता हूँ। छोटी है सांसो की गिनती...लेकिन डोली से जनाजे तक अहमियत में खास रखता हु। तोड़ लेता है हर कोई बेगाना कलियो से,फिर भी उसके मुकमल को
कहाँ बेच पायेगा वो अपनी क़िस्मत,शहर तो महँगाई का ढोंग लिए बेठा है....कैसे मिल पायेगी उसको रोटी,गली में हर कोई रमज़ान किए बेठा है....~डॉ. प्रकाश चौधरी
इतना भी उजला- उन्नत ना बनाये शहर को,की हक़ीक़त के जुगनू भी टीम-टीमा ना सके.....~ डॉ. प्रकाश चौधरी