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सफलता ख़ुशी और सकारात्मक अभिवृत्ति

23 जनवरी 2017

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सफलता और ख़ुशी मानव जीवन के दो ऐसे सकारात्मक आयाम हैं, जिनके लिये वह जीवनपर्यन्त प्रयासरत रहता है I हर छोटी-बड़ी सफलता पर खुश होना जितनी सहज प्रवृत्ति है, उतना ही स्वाभाविक है एक सफलता के पश्चात् किसी अन्य उद्देश्य की ओर उन्मुख हो जाना I बदलते लक्ष्य के साथ प्राप्त सफलता की ख़ुशी का महत्व कमतर होने लगता है I आजकल हम सफलता के अंधी दौड़ में संभवतः खुश होना भूलते जा रहे हैं I ऐसे मे एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि क्या कोई भी ऐसी सफलता है जो दीर्घकालिक ख़ुशी का आधार बन सकती है? यदि हाँ तो वह कौन सी या कैसी सफलता होगी? यदि नहीं तो फिर ख़ुशी का क्या आधार है? सामान्यतः हम देखते है कि सफलता चाहे जितनी भी बड़ी या महत्वपूर्ण हो, प्राप्त होते ही ख़ुशी तो देती है, परन्तु अप्राप्त के आकर्षण खो देती है और वह सफलता भी एक सामान्य दिनचर्या की बात हो जाती है I सफलता मिलने के जिस ख़ुशी की परिकल्पना में इन्सान प्रयासरत होता है वह धीरे-धीरे गुम सी होने लगती है I विशेषकर यदि सफलता भौतिक यानि पद, प्रतिष्ठा और धन प्राप्ति से जुडी हो तो I हम देख सकते है कि ऐसी सफलताये क्षणिक ख़ुशी की वजह तो बनती है, परन्तु शीघ्र ही ऐसी सफलता सामान्य घटनक्रम बन जाती है I इस प्रकार सफलता ख़ुशी और वह भी क्षणिक ख़ुशी का आधार तो हो सकती है परन्तु वास्तविक और दीर्घकालिक ख़ुशी के लिए कुछ और आयामों तथा आधारों को समझना चाहिये I ख़ुशी वस्तुतः एक मानसिक अभिवृत्ति है, एक सकारात्मक सोच है, जो छोटी छोटी चीजो मे घटनाओ मे ख़ुशी खोज लेती है I यह सफलता के प्रयास से लेकर सफलता प्राप्त होने के कदम मे ख़ुशी प्राप्त कर लेती है I यह प्रकृति के सौंदर्य यथा पुष्प के सौन्दर्य, चिडियों की चहचहाहट, बारिश की बूंदों, सूरज की रोशनी, चाँद की चांदनी, बच्चो की खिलखिलाहट, अच्छे खाने और संगीत आदि मे ख़ुशी खोज लेती है I खुश रहने की सकारात्मक अभिवृत्ति सफलता मिलने पर ख़ुशी अवश्य देती है, परन्तु ख़ुश होने के लिए किसी सफलता का इन्तजार नहीं करते I सकारात्मक अभिवृत्ति वाले इन्सान प्रयास में साधनों की शुचिता, सही निर्णय और सद्गुणों के अनुपालन से भी असीम ख़ुशी प्राप्त कर लेता है I वारेन बफेट जैसा व्यक्ति अथाह धन कमाने से अधिक खुश उसे सदुपयोग और दान करके होता है I संभवतः इसी सकारात्मक अभिवृत्ति की ओर संकेत करते हुए अरस्तू का कहना है कि वास्तविक ख़ुशी सफलता प्राप्त करने मे नीहित न होकर स्वयं को सफलता के योग्य बनाने में हैI उनके अनुसार विवेक, न्याय, धैर्य और साहस के अनुकरण से इन्सान ख़ुशी प्राप्त करने योग्य बन पाता है I सकारात्मक सोच इन्सान को आधे खाली गिलास को आधा भरा मानने की, गुलाब मे कांटे नहीं, काँटों मे गुलाब देखने की दृष्टि देती है I यही सकारात्मक अभिवृत्ति अत्यंत विपरीत परिस्थितियो मे भी सफलता की प्रेरित करती है I यही सकारात्मक अभिवृत्ति मानव को प्रतिस्पर्धा के दौर में भी स्वार्थ और परार्थ के बीच संतुलन बनाकर असीम ख़ुशी का मार्ग दिखाता है I स्वार्थ के दुष्चक्र से बाहर निकाल अन्य से जोड़ता है और एक सार्थकता बोध से भरता है I अन्य और स्व के बीच सुंदर सम्बन्ध का बोध स्वस्थ मानवीय सुख का आधार बनता है I सकारात्मक सोच और अभिवृत्ति एक ओर अस्तित्त्वगत यथा रोग, बुढ़ापा और मृत्यु विद्रूपताओं की अपरिहार्यता को स्वीकार करने का साहस देता है तो दूसरी ओर मानवीय संवेदना और भौतिक सफलता के बीच विवेकपूर्ण समन्वय की खुशी भी आमंत्रित करता है I यही सकारात्मक अभिवृत्ति हमें दुर्गुणयुक्त कुमार्ग से प्राप्त सफलता प्राप्त करके स्वार्थपरक सुख से विरत कर नैतिक गुणों से युक्त सुमार्ग पर चलकर सफलता और सार्थकता दोनों की खुशी प्रदान करता है I इसीलिए कहा गया है कि ख़ुशी बाहरी दुनियां की भौतिक उपलब्धियों और सफलताओं में अल्पकालिक होती है, दीर्घकालिक और वास्तविक ख़ुशी तो हमारे अंदर की हमारी सकारात्मक सोच व अभिवृत्ति में है I वास्तविक ख़ुशी विवेकपूर्ण रचनात्मक क्षमता के विकास मे, सार्थकता की अनुभूति में है I इस प्रकार कोई भी सफलता क्षणिक ख़ुशी के लिए सकारात्मक तो है परन्तु वास्तविक एवम् दीर्घकालिक ख़ुशी तो सकारात्मक अभिवृत्ति में ही है I

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