19 अप्रैल 2022
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मैं कृष्ण मेरी माता देवकी मुझसे पहले हुए छः पुत्रों को दुलार करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं कर सकी थी। उसकी अदम्य इच्छा जानकर मैंने देव-साधना की, और इससे देवकी को आठवाँ पुत्र प्राप्त हुआ, जिसका नाम
मैं कृष्ण हूँ। मैं महाभारत के युद्ध का महासूत्रधार था, रामायण के राम की तरह ही उस समय मैंने सबसे सफल योद्धा के रूप में काम किया। परंतु मुझे पता था कि सेना को एक अच्छे योद्धा की नहीं पर अच्छे मार्गदर्श
द्रोणाचार्य की पाठशाला में अलग-अलग राजकुमारों ने युद्धकला आदि अनेक प्रकार की विद्याएँ प्राप्त की थी। अमुक्त और करमुक्त ऐसे शस्त्रों की कला सभी राजकुमारों ने सीखी थी। भीम और दुर्योधन गदा युद्ध में प्रव
महाभारत के पात्रों में नेत्रदीपक पात्रों के रूप में विपुल प्रेरणा देने वाले पात्रों के रूप में पहले श्रीकृष्ण आते हैं, तो लगभग उनकी बराबरी में मेरा नंबर लगता है। बहुत सारी चीजों में मैं अर्जुन से भी ब
मैं युधिष्ठिर पांच पाण्डवों और सौ कौरवों का सबसे ज्येष्ठ भ्राता हूँ। पुत्र के लक्षण पालणे में दिखाई दे जाते हैं। मेरा परिवार पुण्यशाली था और ऐसे परिवार में मेरे जैसे गुणवान का जन्म हुआ, मानो दूध में श
कौरव कुल में पहला गर्भ मेरी माता गान्धारी को रहा, किन्तु मैं इतना पापी था कि तीस माह तक प्रसव नहीं हुआ। मेरी माता ने प्रसव हेतु अनेक प्रयास किए, किन्तु सभी प्रयास निष्फल रहे। इतना ही नहीं, मेरे गर्भका
महाभारत का इतिहास तो भारतवर्ष का चिर-कालीन इतिहास है। अन्य इतिहास तो बदलते रहे हैं, लेकिन यह महाभारत का इतिहास नहीं बदला, इसीलिए रामायण और महाभारत की समीक्षा अन्य काव्य कृतियों की समीक्षा से अलग की जा
यौवन के शिखर तक पहुँचते हुए मेरा रूप, गुण, चातुर्य और सौन्दर्य सोलह कलाओं सा खिल चुका था। मेरे पिता अंधकवृष्णि आदि बड़े मेरे विवाह के लिए चिन्तित थे, कि मेरे योग्य कुमार कौन होगा? पिता ने ज्येष्ठ पुत्र
‘महा’ अर्थात् विशाल और ‘भारत’ अर्थात् भरत के वंशज। इन्हीं भरतवंशीओं के पराक्रम एवं यशो गाथाओं के कारण यह हिन्दवी साम्राज्य भारत के नाम से विख्यात हुआ । महाभारत अर्थात् महान, श्रेष्ठतम, सर्वोत्तम भारत
प्रस्तुत है भीष्म पितामह, कुरुवंश के आदरणीय वरिष्ठ महापुरुष। आइए सुनते हैं, इन्हीं की भाषा में, कि ये क्या कहते हैं: श्री नेमिनाथ भगवान के शासन में हमारा राजवंश फला-फूला। अरे ! उनका ही परिवार
(१) कौरव-पाण्डव कुरुवंश परम्परा— कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर में परम्परागत कुरुवंशियों का राज्य चला आ रहा था। उन्हीं में शान्तनु नाम के राजा हुए। उनकी ‘‘सबकी’’ नाम की रानी से पाराशर नाम का पुत्र
श्री वसुदेव वसुदेव का देशाटन— राजा समुद्रविजय ने अपने आठों भाइयों का विवाह कर दिया था, मात्र वसुदेव अविवाहित थे। कामदेव के रूप से सुन्दर वसुदेव बालक्रीड़ा से युक्त हो शौर्यपुर नगरी में इच्छानुसार