2012 से दो वर्ष पूर्व यानी 2017 तक हर साल, मैं किसी न किसी एग्जाम के फाइनल राउंड तक पहुंचता था और फिर बाहर हो जाता था। फाइनल लिस्ट में हमेशा कुछ नंबरों से रह जाता था, हर बार।
जब मैं कोई एग्जाम पास नहीं कर पाया, मुझे लगा मैं हार गया हूं। कुंठित हो गया और कुछ समय पश्चात दुख और अवसाद से घिर गया।
अवसाद चुप चाप दबे पांंव आकर कब मेरे दिल और दिमाग को अपने काबू में कर लिया मुझे पता ही नहीं चला। जब पता चला तब तक मैं हार चुका था। दूर हो चुका था अपनों से, दोस्तों से, समाज से। हंसता था पर मन से नहीं। किसी से कुछ कहना चाहता था पर कहता नहीं।
जिम्मेदारियां, निम्न मध्यम वर्गीय पृष्ठभूमि और अब चारों तरफ से दुनिया के हमले, इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल था अपने व्यक्तित्व और चेतना की रक्षा।
पर मैं अपने विशिष्ट व्यक्तित्व की रक्षा तब भी करना चाहता था।
अपने को अवशिष्ट होने से बचाने के लिए मैंने लिखना शुरू कर दिया।
मैंने सोच लिया जो चीजें मेरे वश में नहीं है, उन पर फ्रस्ट्रेट होने का कोई तुक नहीं है। किस्मत को कोसने का कोई फायदा नहीं है। मैंने खुद को समझा दिया कि जो मैं हूं, मुझे उसके बारे में खुश रहना चाहिए। और ये समझने के बाद मैं सुकून में हूं, पहले से कहीं बेहतर कर रहा हूं।
जितना ज़्यादा मै लिख रहा हूं, मेरे अवसाद रूपी घाव उतने ही जल्दी भर रहे हैं। आज जब मै पीछे मुड़ कर देखता हूंं, तो यह कदम उठाने के लिए अपने आप पर बहुत गर्व होता है।
मैं बहुत भावुक, संवेदनशील और बेचैन तबीयत का आदमी हूं। भीतर जितना महसूस करता हूं, उतना शब्दों में नहीं ला पाता हूं, इसलिये थोड़ा बेचैन आज भी रहता हूं। और मुझे लगता है कि मेरी बेचैनी को एक सर्जक ही समझ सकता है।
:- आलोक कौशिक
संक्षिप्त परिचय:-
नाम- आलोक कौशिक
शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य)
पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन
साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में दर्जनों रचनाएं प्रकाशित
पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101,
अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com