सैनिक की होली
....
*** तुम रंग रंगी बरसाने की, हम केसरिया टोली रे,
आओ प्रिय दोनों खेलें, रंगों की आँख मिचौली रे।
लाल गुलाबी हरा बसंती , सारे रंग रंगाना जी,
सपनों में आ जाऊँगा, पलकों में हमें छुपाना
जी,
बहुत रिझायेंगी सखियाँ ,मुझको भूल न जाना जी,
मैं डूबूँ कान्हा के रंग, तुम राधे रंग- रँग जाना जी,
चुटकी भर लेकर गुलाल, तश्वीर मेरी सजाना जी,
बनी रंग की रंगवन्ती तुम ,लाज से ना शरमाना जी,
नाम वतन का पीकर के भंग, हुए वतन हम-जोली रे,
आओ प्रिय दोनों खेलें, रंगों की आँख मिचौली रे।
*** रँग पंचमी आई, केसर सरसों भी लहराई है,
महके–महके फूलों पर, नन्ही तितली भरमाई है,
गीत-फाग और ढ़ोल नगाड़े, भ्रमरों की सगाई है,
मिष्ठानों की रौनक ज्यों,परदेशी की अगुवाई है,
कहते है भोले के रँग में , रग –रग में तरुणाई है
रे पिया बसंती छोड़ो, राधा, रँग –रँग रंग आई है,
हमने तो फेरों संग खेली,जनम- जनम की होली रे,
आओ प्रिय
दोनों खेलें,
रंगों की आँख मिचौली रे।
*** तुम प्रेम नगर की बावरिया, मैं सजा शिखर पे केशरिया,
तुम चंदा सी श्रंगार सजी , मैं धूल रंगा, हूँ कांवरिया
,
तुम प्रेम समुंदर की सरिता , मैं बारूद की आटरिया,
तुम तड़प प्यास की मीन प्रिये, मैं हिम घाटी का लांगुरिया,
राग कोकिला,सुर विहाग तुम,हिमगिरि
का गुंजन मैं प्रिया ,
हर रँग तुम्ही, हर- भंग तुम्ही, हर
साँस –साँस साँवरिया।
तुम ही तो मेरे
रंग रंगी , रंगी चुनरिया-चोली रे ।
मैं
रंगा तिरंगे रंग प्रिये, रंगों की आँख मिचौली
रे ।....आओ प्रिय