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मेरा ख़्वाब माँगते हैं ...

4 दिसम्बर 2020

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मेरा ख़्वाब माँगते हैं ...

इतने वेवश चेहरे, कि नकाब माँगते हैं,

बंद करूँ आँखें , मेरा ख़्वाब माँगते हैं ।

बचपन की यादें ,जवानी के लुक –छिपे,

ये चोरी –चोरी, मेरी किताब माँगते हैं

छुपा छुई –मुई में, हर –सिंगार में फँसा,

इम्तहान लेते मेरा , ये गुलाब माँगते हैं ।

दर्द की झाइयाँ नर्म, पलकों की सिंहरन,

मज़ाक बनाते हैं मेरा , शबाब माँगते हैं।

सीरत संभाल कर इतनी ,रखी नहीं गई ,

अश्क नज़र क्या आया, शराब माँगते हैं ।

मोहब्बत तो की, इज़हार करना नहीं आया,

सारी उम्र फिसल गयी, ख़िज़ाब माँगते हैं ।

मदन पाण्डेय शिखर

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मेरा ख़्वाब माँगते हैं ...इतने वेवश चेहरे, कि नकाब माँगते हैं,बंद करूँ आँखें , मेरा ख़्वाब माँगते हैं । बचपन की यादें ,जवानी के लुक –छिपे,ये चोरी –चोरी, मेरी किताबमाँगते हैं । छुपा छुई –मुई में, हर –सिंगार में फँसा,इम्तहान लेते मेरा , ये गुलाब माँगते हैं । दर्द की झाइयाँ नर्म, पलकों की सिंहरन,मज़ा

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मेरा ख़्वाब माँगते हैं ...

4 दिसम्बर 2020
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मेरा ख़्वाब माँगतेहैं ...इतने वेवश चेहरे, कि नकाब माँगते हैं,बंद करूँ आँखें , मेरा ख़्वाब माँगते हैं। बचपन की यादें ,जवानी के लुक –छिपे,ये चोरी –चोरी, मेरी किताब माँगते हैं । छुपा छुई –मुई में, हर –सिंगार में फँसा,इम्तहान लेते मेरा , ये गुलाब माँगते हैं । दर्द की झाइयाँ नर्म, पलकों की सिंहरन,मज़ाक

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