इतने वेवश चेहरे, कि नकाब माँगते हैं,
बंद करूँ आँखें , मेरा ख़्वाब माँगते हैं ।
बचपन की यादें ,जवानी के लुक –छिपे,
ये चोरी –चोरी, मेरी किताब
माँगते हैं ।
छुपा छुई –मुई में, हर –सिंगार में फँसा,
इम्तहान लेते मेरा , ये गुलाब माँगते हैं ।
दर्द की झाइयाँ नर्म, पलकों की सिंहरन,
मज़ाक बनाते हैं मेरा , शबाब माँगते हैं।
सीरत संभाल कर इतनी ,रखी नहीं गई ,
अश्क नज़र क्या आया, शराब माँगते हैं ।
मोहब्बत तो की, इज़हार करना नहीं आया,
सारी उम्र फिसल गयी, ख़िज़ाब माँगते हैं ।
मदन
पाण्डेय ‘शिखर’