समय एक मुक्तक का आप सादर आमंत्रित हैं......
चला है जो हयात-ए-सफ़र इस तरह,आता नही कुछ नज़र इस तरह,रफ़्तार की समझ तो नहीं ! ऐ अलीम,हो सा गया हूँ शज़र इस तरह,बना हूँ जो हमसफ़र खुद का इस तरह,छोड़ता नही अब कोई कसर इस तरह,हर रोज़ मुलाकात करता हूँ तूफानों से,अब कर लिया इनमे बसर इस तरह,क्या मुकम्मल होगा हशर इस तरह,बना रहेगा क्या जूनून-ओ-असर इस तरह,अब तो हो