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शब्दों मे कहाँ समाती है तेरी याद ?

9 अप्रैल 2015

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शब्दों मे कहाँ समाती है तेरी याद ? मैं एक झरोखे मे निहारता हूँ , तू दूसरी खिड़की में खिलखिलाती है !! इस शहर के हर कोने मे बिखरा है तुम्हारा अक्स , वेदना से थरथराते लबों की वो तुम्हारी दास्तान फिर रुबरू हुई इस नदी की कल कल मे !! हाँ सच है यह .... नहीं पहुंची थी मुझतक कोई आवाज , मेरे कान भी बंद थे औरों की तरह !! रंजन कुमार

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