शब्दों मे कहाँ समाती है तेरी याद ?
मैं एक झरोखे मे निहारता हूँ ,
तू दूसरी खिड़की में खिलखिलाती है !!
इस शहर के हर कोने मे बिखरा है
तुम्हारा अक्स ,
वेदना से थरथराते लबों की वो तुम्हारी दास्तान
फिर रुबरू हुई इस नदी की कल कल मे !!
हाँ सच है यह ....
नहीं पहुंची थी मुझतक कोई आवाज ,
मेरे कान भी बंद थे औरों की तरह !!
रंजन कुमार