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नैतिकमूल्य

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कभी मैं भी था अकेला, गुमसुम उदास सा... रहा था कभी आखिर मैं भी,कभी बिंदास सा... क्या पता और क्यों,लोग दूर होते जा रहें थे... रिश्तें भी अब तो दोस्तों, हाथों से खोते जा रहें थे... जज्बातों में भी मु

मां के साथ बिताया हर लम्हा, दोस्तों मेरे लिए खास था... मां की ममता का ये सुनहरा, मेरे लिए अहसास था... स्कूल के फटें कपड़ों को, मां लड़-लड़कर सी देती थी... मेरे मना करने पर भी मां,रोटी में भरकर घी

इक दिन मैं स्कूल में, बैठा-बैठा कुछ सोच रहा था... मां का ख्याल कर खुद को, बार-बार नोंच रहा था... कि क्यों खुद का ख्याल मां नहीं रख पाती हैं ... लेता हूं उपहार मैं जब,दिवाली दोस्तों आती हैं...

देख गरीबी अपने लाल की, आखिर मां क्यों रोती हैं... सब रिश्तों से बढ़कर भैया, मां तो आखिर मां होती हैं... दोस्तों अपनों के खातिर मां, जाने क्या -क्या खोती हैं... खुन के अश्रु बहाकर भैया, मां तो आखि

श्राद्ध मास आया अब, करते पूर्वजों को याद। दुआ बड़ो की रहे , करते सदा  हम  फरियाद। हम उनके वंशज हैं, तस्वीरों में उन्हें सजाते, देख तस्वीर पूर्वजों की, याद आए बुनियाद।। श्रद्धा सुमन अर्पित कर

पुस्तकों का भंडारण जहां, होता है यह पुस्तकालय।नित विद्यार्थी ज्ञानार्जन जहां, प्रातः जाते विद्यालय।हर विषय पर क्षेत्र  दिखे, भिन्न भिन्न होते हैं विषय,हिन्दी अंग्रेज़ी विज्ञान जहां, होता है अपना

जीवन के सुर ताल बिठाना, होता नहीं है आसान। कभी सतरंगी इंद्रधनुष सा, जैसा होता आसमान।। उड़ते नील गगन में  पंछी,  कितने ही पंख पसारे। जीवन के सतरंगी बादल, उड़ते रहते हों बहुसारे।। जीवन के सुर

मुठ्ठी भर रेत हाथ भर लिए।चाह प्रबल इच्छा भाव किए।वक्त का दरिया बहता चला।रेत प्रतिक्षण फिसलता चला।।मुठ्ठी भर रेत हाथ  भर  बांधी।सोच ऐसी वक्त रोकेगा आंधी।।जानें कब रेत हाथ फिसली यहीं।उद्वेलित

अनकही फरियाद खुदा से, लौट आजा बीता समय तू, किंतु कालचक्र ऐसा चलता, समय ऐसा चलता ही रहता। कभी न एक पल को ठहरता। चलती घड़ी की टिक टिक, कहती अपनी जुबानी कहानी। अनकही फरियाद खुदा से बीते समय में पहुंच ज

सरिता एक घरेलू महिला थी ,सरीता के चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान होती थी। एक ऐसी मुस्कान, जिसे देखकर कोई भी कह सकता था कि वह दुनिया की सबसे खुशहाल महिला है। लेकिन उसकी मुस्कान का सच सिर्फ वही जानती थी। सरी

नज़र समय पे रखना दोस्त, सुइयां घूमना शुरू हो चुकी है! 

अनोखा भी है, निराला भी है, तकरार भी है तो प्रेम भी है, बचपन की यादों का पिटारा है, भाई-बहन का यह प्यारा रिश्ता है। 

एहसास प्रेम का,भी कभी करोगें, या बिन पानी के मछली सा तड़पाओगे। यह तुम्हारे इंकार की बाते अच्छी नही,(2)अच्छा बताओ, इंतजार ही करवाओगें, या कभी गले भी लगाओगे।।सफ़र को पाने को बस चलता ही रहा,(2)

आलू ,मटर ,टमाटर  में थी दोस्ती सच्ची और प्यारी  साथ निभाते थे उनका  धनिया और हरी मिर्च न्यारी  धूमधाम से खेला करते  गोभी - गाजर और फली भी  प्याज भी साथ में आती थी  दोस्त तो थी वो भी न्यारी  कभ

लिखना भी तो, क्या लिखना है? कहना भी तो, क्या कहना है? खलिश है रहती,  हर पल मन में, मिल भी ले तो, क्या कहना है? खत लिखता हूँ,  लिख लेता हूँ, और उसे फिर,  मोड़ माडकर, बक्शे में कहीं, रख दे

चल चार कदम  हर बार यूँ ही, डगमगाया लौट आया। कभी कोशिश नहीं की, कभी थोड़ा चला, कभी बीच रस्ते से लौट आया। ठोकरों का डर कभी, कभी उनसे गिर जाने का, हर बार डरा,  और डर के वापस आया। कभी मंजिल

एक दिन वह भी आएगा,  जब सपनों का आकार होगा।   वह सुख-शांति का सागर होगा,  जो हमें अंतर्मन से आवाज़ देगा।   एक दिन वह भी आएगा,  जब समृद्धि की मिठास बिखरेगी।   सभी दरियाओं को लहराएगा,  अपने प्या

किसान है वो  मेहनत की खाता है किसान है वो  मेहनत की कठिनाई का  सामना करता है, धूप, बर्फ, बारिश में भी  अपने काम को निभाता है। खेतों में जो  उनकी किल्लत है,  वो कोई नहीं समझ सकता, हर दिन की

ढूंढा तुमको मैंने, यहाँ वहां न जाने कहाँ, कुछ लोगों से पूंछा, तेरे मिलने का ठिकाना, कुछ ठिकाने भी ढूंढे, जहाँ तुम मिला करते थे, जहाँ तुम मिला करते थे, वहां तुम मिले नहीं अरसो से, नए ठिकानों पर

कुछ अंदर है, कुछ बाहर है, कुछ मेरे भी, कुछ तेरे भी, कुछ यहाँ वहां, है बिखरा हुआ, कुछ कांच सा, टुटा हुआ कहीं, कुछ ताश सा, बिखरा हुआ कहीं, कुछ मातम सा, है छाया हुआ, कहीं हर्ष बिगुल, सा बजा

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