अस्पताल के कमरे में हल्का अंधेरा था। मशीनों की बीप-बीप की आवाज़ें वातावरण को और भी गंभीर बना रही थीं। रामेश्वर, जो 75 वर्ष के थे, अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रहे थे। परिवारजन बाहर बैठे थे, लेकिन राम
शब्दों में दिल की ये दस्तक बोली,अहसासों ने चुप्पी की गांठें खोलीं,वो साक्षात्कार था कुछ अलौकिक, आत्मा से आत्मा बोलीं हो दैविक।न सवाल सरल,न जवाब आसान,दिल से छलके ,जज्बाती दास्तान। कभी हंसी म
राजधानी देहरादून की हृदयांगिनी रिस्पना नदी से साक्षात्कार शाम का समय था, मैं रिस्पना पुल से अपने घर से जा रहा था, रिस्पना पुल के हरिद्वार जाते समय बायीं तरफ दे