shabd-logo

शरद ऋतु

10 अक्टूबर 2022

172 बार देखा गया 172
तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में शरद ऋतु का गुणगान करते हुए लिखा है-

बरषा बिगत सरद ऋतु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई॥
फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥

अर्थात हे लक्ष्मण! देखो वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने कास रूपी सफेद बालों के रूप में अपना वृद्घापकाल प्रकट किया है। वृद्घा वर्षा की ओट में आती शरद नायिका ने तुलसीदास के साथ कवि कुल गुरु कालिदास को भी इसी अदा में बाँधा था। ऋतु संहारम के अनुसार 'लो आ गई यह नव वधू-सी शोभती, शरद नायिका! कास के सफेद पुष्पों से ढँकी इस श्वेत वस्त्रा का मुख कमल पुष्पों से ही निर्मित है और मस्त राजहंसी की मधुर आवाज ही इसकी नुपूर ध्वनि है। पकी बालियों से नत, धान के पौधों की तरह तरंगायित इसकी तन-यष्टि किसका मन नहीं मोहती।

जानि सरद ऋतु खंजन आए।
पाइ समय जिमि सुकृत सुहाए॥

अर्थात शरद ऋतु जानकर खंजन पक्षी आ गए। जैसे समय पाकर सुंदर सुकृत आ जाते हैं अर्थात पुण्य प्रकट हो जाते हैं। बसंत के अपने झूमते-महकते सुमन, इठलाती-खिलती कलियाँ हो सकती हैं। गंधवाही मंद बयार, भौंरों की गुंजरित-उल्लासित पंक्तियाँ हो सकती हैं, पर शरद का नील धवल, स्फटिक-सा आकाश, अमृतवर्षिणी चाँदनी और कमल-कुमुदिनियों भरे ताल-तड़ाग उसके पास कहाँ? संपूर्ण धरती को श्वेत चादर में ढँकने को आकुल ये कास-जवास के सफेद-सफेद ऊर्ध्वमुखी फूल तो शरद संपदा है। पावस मेघों के अथक प्रयासों से धुले साफ आसमान में विरहता चाँद और उससे फूटती, धरती की ओर भागती निर्बाध, निष्कलंक चाँदनी शरद के ही एकाधिकार हैं। शरद में वृष्टि थम जाती है। मौसम सुहावना हो जाता हैं। दिन सामान्य तो रात्रि में ठंडक रहती है। शरद को मनोहारी और स्वस्थ ऋतु मानते हैं। प्रायः अश्विन मास में शरद पूर्णिमा के आसपास शरद ऋतु का सौंदर्य दिखाई देता है।
article-image

दिनेश कुमार सरशीहा की अन्य किताबें

1

गुरु के समान कोई उपकारी नहीं...

11 अगस्त 2022
0
0
0

सम्पूर्ण ब्रह्मांड में गुरु के समान कोई कृपालु और दयालु नहीं है।गुरु का दर्जा भगवान के समकक्ष है,गुरु ही जीवन की नैया पार करा सकते हैं।गुरु का बखान करना संभव ही नहीं है,गुरु सर्वोपरि है।उनकी कृपा हो ज

2

गीता ज्ञान कितना जरूरी..

23 सितम्बर 2022
1
1
0

आज हम जिस आपाधापी की जिंदगी जी रहे हैं,आज हमारा जीवन तुच्छ सा हो गया है।पश्चिमी सभ्यता ने हमारी संस्कृति और सभ्यता का नाश कर दिया है।हमेंअपने वर्तमान को बेहतर करने की आवश्यकता है,नही तो कल का जीवन नरक

3

शरद ऋतु

10 अक्टूबर 2022
1
1
0

तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में शरद ऋतु का गुणगान करते हुए लिखा है-बरषा बिगत सरद ऋतु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई॥फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥अर्थात हे लक्ष्मण! देखो वर्षा बीत गई और प

4

बोहरही धाम छत्तीसगढ़

16 अक्टूबर 2022
0
0
0

बोहरही धाम : जहाँ महाशिवरात्रि पर भरता है विशाल मेला...राजधानी रायपुर स्थित छत्तीसगढ़ विधान सभा भवन से उत्तर दिशा में करीब 10 कि.मी. की दूरी पर एक प्राकृतिक और मनोरम स्थल है, जिसे हम बोहरही दाई के नाम

5

जीवन कैसे जिएँ..

19 अक्टूबर 2022
1
1
0

*जीवन कैसे जियें* जीवन को अर्थपूर्ण मायने में जीना ही इसकी सार्थकता है। मक्खियों की तरह पापों की विष्ठा के ऊपर भिनभिनाने वाले और कुत्ते की तरह विषय भोगों की जूठन चाटने में व्यतीत होने वाले ज

6

आज फिर हमारे राम हम सबके घर आ रहे हैं...

26 अक्टूबर 2022
0
0
0

14 साल की प्रतीक्षाओं का अंत हो रहा था। किसी को कुछ सूझ न रहा। भरत जी ने कहा सब लोग नंदिग्राम चलें। लोग दौड़ पड़े। गोस्वामी जी कहते हैं किसी को वृद्धों की भी परवाह न हुई। राम अयोध्या आ रहे थे। मर्यादा

7

श्रद्धा

3 नवम्बर 2022
0
0
0

👉 *श्रद्धा*हमारा व्यक्तित्व ही हमारी पहचान है।आप अपने व्यक्तित्व को विकसित कीजिए ताकि आप निहाल हो सकें। श्रद्धा से ही हमारे विचार यथार्थ में परिवर्तित होते हैं। दैवी कृपा मात्र इसी आधार पर मिल सकती ह

8

खेलों का जीवन में महत्व...

4 नवम्बर 2022
0
0
0

खेलों का जीवन में बहुत महत्व है।आज खेल को हमारे शारीरिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है|आज विद्यालयों,महाविद्यालयों,विश्वविद्यालयों जैसे सभी शैक्षणिक निकायों में शारीरिक शिक्षा,हॉट खेल विभाग

9

सिद्धांतों से कभी समझौता न करें....

11 नवम्बर 2022
0
0
0

सिद्धान्तों से हमें कभी भी समझौता नहीं करना चाहिए।जीवन में हमारे कुछ सिद्धांत होते हैं,उनका पालन करना चाहिए।सिद्धान्तों के कारण ही प्रत्येक चीज चाहे वो मानव हो या पदार्थ,सबकी मौलिकता होती है,और इसी से

10

टेलीविजन का सतरंगी सफर...

22 नवम्बर 2022
0
0
0

टेलीविजन शब्द की उत्पत्ति ग्रीक प्रिफिक्स 'टेले' तथा लैटिन वर्ड' विजिओ' से मिलकर हुई है।इसके आविष्कारक जॉन लॉगी बेयर्ड हैं,जिन्होंने वर्ष 1925,लंदन में इसका आविष्कार किया था।दिसम्बर 1996, यूनाइटेड नेश

11

पर्यावरण और हमारी संस्कृति

22 नवम्बर 2022
0
0
0

भारतीय संस्कृति वन या अरण्य संस्कृति कहलाती है।हमारे पूर्वज ने पृथ्वी को माता माना है।यही कारण था कि हमारी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति ने प्रकृति के किसी भी क्रियाकलाप में अधिक हस्तक्षेप नहीं किया।पर्

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए