14 साल की प्रतीक्षाओं का अंत हो रहा था। किसी को कुछ सूझ न रहा। भरत जी ने कहा सब लोग नंदिग्राम चलें। लोग दौड़ पड़े। गोस्वामी जी कहते हैं किसी को वृद्धों की भी परवाह न हुई। राम अयोध्या आ रहे थे। मर्यादा के ज्योति पुंज। विश्व विजेता को पराजित कर। सप्तनीक। पिता के वचन का पालन कर लौट रहे। हर कोई अगवानी को उत्सुक। हर कोई प्रथम दर्शन को ललालियत।
प्रभु ने कहा इस नगरी से प्रिय कोई नगरी नहीं है। यहां के लोगों से प्रिय कोई लोग नहीं हैं। प्रभु महात्मा भरत से मिले। शत्रुघ्न से मिले। यह मिलन ऐसा था कि हर किसी को लग गया कि मुझसे ही मिल रहे हैं। पूरी अयोध्या 14 वर्षों में भरतमय थी। भरत राज्य के बाहर निवास करते थे और लोगों के हृदय के भीतर। जटाजूट रखाये एक महर्षि को देखकर जगत विजेता श्री राम ने किष्किंधा नरेश सुग्रीव और लंकाधिपति विभीषण से कहा
गुरु वशिष्ठ कुल पूज्य हमारे।
इनकी कृपा दनुज रन मारे।
अहा! इतना आदर। यह गुरु तत्व को आदर देने का, समर्पण का आदर्श है। इतना सुनते ही अखिल ब्रह्मांड के महानतम शूरवीर वशिष्ठ जी के चरणों में थे। सफलता के बाद अपनों का, बड़ों का मान कैसे रखा जाता है। प्रभु से सीखिए।
गलियों में कमल पुष्प था। केंवडा था। रातरानी थी। गलियां चमक रही थी। घरों के बाहर चौके पूरी गई थी। अवध में रंगोली नहीं बनती। यहां चौक पूरी जाती है। जो वहां न जा सके अपने अपने घर पर चौक पूरे थे। ढोलक बज रही थी। मंगल गीत गाए जा रहे थे। गलियों में महक थी। नहछू डाले जा रहे थे। अयोध्या का पुनर्जन्म हो रहा था। यह पहली जगह थी जहां से एक बार जाने के बाद परमात्मा पुन: लौटे।
दिवाली परमात्मा को पुन: प्राप्त करने का पर्व है। दिवाली अपने आदर्शों को पुन: प्राप्त करने का पर्व है। दिवाली दिव्यता को प्राप्त करने का पर्व है। दिवाली सिया के, मां लक्ष्मी के आगमन का पर्व है। दिवाली मर्यादा पुरुषोत्तम के आगमन का पर्व है। दिवाली बताती है प्रतीक्षाओ का सुखद अंत। दिवाली उपहार है भरत के विश्वास का। दिवाली प्रतिफल है अवधवासियों के उस इंतजार का जिसके आगे प्रभु ने सोने की लंका जीतने के बाद भी त्याग दी।
अवध के राम पूरे ब्रह्मांड के देव हैं। लेकिन हमारे अपने हैं। राम लला। राम कुंवर। हमारे बारे। राजा रामचंद्र। राम हमारी रग रग में हैं। हमारे सखा। पिता। राजा। अभिभावक। अभिवादन। सांत्वना। संवेदना। खुशी। पीड़ा का आर्तनाद और खुशी की चरम अभिव्यक्ति।
जब तक अवध के गांवों में राम धे की किरिया चलेगी। राम राम और जय राम जी का अभिवादन चलेगा। हे राम की पुकार चलेगी। अरे राम हो का विस्मय चलेगा। राम के साथ जुड़े तमाम विशेषण नाम होते रहेंगे। रामदीन, राम आसरे, राम सहारे, राम चंद्र, राम जी, राम दास, राम वीर जैसे नाम रखे जाते रहेंगे। तब तक पृथ्वी पर अमंगल नहीं होगा। जिस दिन अवध से यह समाप्त होगा उस दिन सृष्टि समाप्त हो जायेगी।
आज फिर हमारे राम हम सबके घर आ रहे हैं। हमें जागृत करने। मर्यादा सिखाने। सुख देने। स्वागत है प्रभु। स्वागत है।