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<p>कुछ तो ख़लिश का शौक़ हमें बेशुमार था </p> <p>कुछ तीर भी जिगर में बहुत आर पार था
<p>तेरे ख़याल मेरी खलवतों को भाते हैं</p> <p>फ़रिश्ते जैस
<p>बात नई तो कुछ भी नहीं है बेशक इस अफ़साने में</p> <p>नाम मगर तेरा लिख डाला ग़ज़ल का शे’र बनाने मे
<p>आदमी वैसे तो भला हूँ मैं</p> <p>बस शराबी &
<p>तेरा ख़्याल दिल से गुज़ारा</p> <p>तो दिलकश हुआ हर नज़ारा</p> <p>कोई और चेहरा न भाये</p> <p>दिख