आदमी वैसे तो भला हूँ मैं
बस शराबी सा दिख रहा हूँ मैं
प्यास बुझती नहीं है खुद से मेरी
जाम, सागर, नदी हूँ, क्या हूँ मैं
उस किनारे को साथ ले आता
सोचूँ अक्सर जो डूबता हूँ मैं
कोई लौटा नहीं मेरी जानिब
रास्ता सबका देखता हूँ मैं
भाग जाने से क्या मिलेगा, सो
दर्द के सामने खड़ा हूँ मैं
ढूँढना बंद कर मुझे मुझमें
अब तो जितना हूँ बस तेरा हूँ मैं
नाम ‘दीपक’ रखा हुआ है क्यूँ
तू नहीं, देख, जल रहा हूँ मैं
दीपक शर्मा ‘दीपक’