नमो मित्राय भानवे मृत्योर्मा पाहि। भ्राजिष्णवे विश्वहेतवे नमः।
सूर्याद्भवनित भूतानि सूर्येण पालितानि तु। सूर्ये लयं प्राप्नुवन्ति यः सूर्यः सोऽहमेव च।
चक्षुर्नो देवः सविता चक्षुर्न उत पर्वतः। चक्षुर्धाता दधातु नः।
आदित्याय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि।
तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्।
सविता पश्चात्तत्सविता पुरस्ता त्सवितोत्तरात्तात्सविताधरात्तात्।
सविता नःसुवतु सर्वतातिं सविता नो रासतां दीर्घमायुः।। 6।।
सूर्यदेव और मित्र देवता को नमस्कार है। हे देव! मृत्यु से हमें सुरक्षित रखें। जगत् के कारण रूप तथा दीप्तिमान् सूर्यदेव को नमस्कार है। सूर्य से सब जड़ चेतन प्राणियों का प्राकट्य, पालन-पोषण हाेता है और अन्त में सब उन्हीं में लय हो जाता है। जो सूर्यदेव हैं, वही मैं भी हूं। सवितादेव हमारे नेत्र हैं। जो पर्वत नाम से प्रख्यात हैं, वे सूर्य ही चक्षुरूप हैं। सबके धारक आदित्यदेव हमारे नेत्रों को देखने की सामर्थ्य प्रदान करें। हम आदित्य को जानते हैं, हम हजारों किरणों के समूह से युक्त सूर्य नारायण का ध्यान करते हैं, वे सूर्यदेव हमें प्रेरणा प्रदान करें। आगे-पीछे, उत्तर-बायें और दक्षिण-दायें भाग में सविता देव हैं। सविता देव हमारे लिए सभी अभीष्ट पदार्थों को उत्पन्न करें। वे हमें दीर्घायु प्रदान करें।
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आदित्याद्वायुर्जायते। आदित्याद्भूमिर्जायते। आदित्यादापो जायन्ते।आदित्याज्ज्योतिर्जायते।आदित्याद्व्योम दिशो जायन्ते।आदित्याद्देवा जायन्ते। आदित्याद्वेदाजायन्ते। आदित्यो वा एष एतन्मंडलं तपति । असावादित्यो ब्रह्म।आदित्योऽन्तःकरणमनोबुद्धिचित्ताहंकाराः।आदित्यो वै व्यानः समा- नोदानोऽपानः प्राणः। आदित्यो व सूर्योपनिषद् ४