यः सदाऽहरहर्जपति स वै ब्रह्मणो भवति स वै ब्रह्मणो भवति। सूर्याभिमुखो जप्त्वा महाव्याधिभयात्प्रमुच्यते। अलक्ष्मीर्नश्यति। अभक्ष्य- भक्षणात्पूतो भवति। अगम्यागमनात्पूतो भवति। पतितसंभाषणात्पूतो भवति। असत्संभाषणात्पूतो भवति। मध्याह्ने सूर्याभिमुखः पठेत्। सद्योत्पन्न्पंचमहापातकात्प्रमुच्यते। सैषां सावित्री विद्यां न किंचिदपि न कस्मैचित्प्रशंसयेत्। य एतां महाभागःप्रातः पठति स भाग्यवांजायते। पशून्विन्दति। वेदार्थं लभते। त्रिकालमेतज्जप्त्वा क्रतुशतफलमवाप्नोति। यो हस्तादित्ये जपति स महामृत्युं तरति स महामृत्युं तरति य एवं वेद इत्युपनिषत्।।8।। इस मन्त्र के नित्य जप करने वाला ही ब्राह्मण कहलाता है। सूर्य भगवान् की ओर मुख करके इस मन्त्र के जाप से बड़ी व्याधियों के भय से मुक्ति मिलती है,
दारिद्रय दूर होता है व वह सभी अखाद्य पदार्थों के भक्षण दोष से मुक्त होता है। अगम्य मार्ग अर्थात् गलत मार्ग पर जाने के दोष, गलत सम्भाषण, असत्य वार्तालाप इन सभी पापों से भी मुक्त हो जाता है। मध्याह्न काल में सूर्याभिमुख होकर इस उपनिषद का पाठ करना चाहिए। जो ऐसा करता है, वह मनुष्य तत्काल उत्पन्न हुए पंचमहापातकों से निवृत्त हो जाता है। इसे सावित्री विद्या कहा गया है, इसकी किसी से कुछ भी प्रशंसोक्ति न करे। जो महाभाग प्रातः काल इसका पाठ करता है, वह भाग्यवान् होता है, उसे गौ आदि पशुधन की प्राप्ति तथा वेदार्थ विद्या की प्राप्ति होती है। त्रिकाल संध्या करने से सैकड़ों यज्ञों
का पुण्यफल मिलता है। सूर्यदेव का हस्तनक्षत्रकाल अर्थात् आश्विन मास में जप करने वाला महामृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेता है, जो इसका ज्ञाता है वह
भी महामृत्यु से पार हो जाता है। यही उपनिषद्(रहस्यमयी विद्या)है।
।।इति सूर्योपनिषत्सामाप्ता।।
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