' तेरे हुस्न की क्या तारीफ़ करूँ', मोहम्मद रफ़ी जी के गाने की ये पंक्ति भले ही किसी हसीना के सन्दर्भ में हों पर ताजमहल को देखते ही मन में सवालों के बादल कुछ इसी तरह से उमड़-घुमड़ करते हैं. शायद ताजमहल की खूबसूरती को बयान करने के लिए अल्फ़ाज़ कम पड़ जाएँ. पर आश्चर्यजनक सच ये है कि दुनिया का सातवां अजूबा और मुहब्बत का प्रतीक माना जाने वाला ताजमहल आज अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए संघर्ष करता दिखाई दे रहा है.
लगभग सत्रहवीं सदी में मुग़ल बादशाह शाहजहां द्वारा इस शानदार इमारत का निर्माण करवाया गया. शाहजहां ने इस इमारत को अपनी बेगम मुमताज महल की याद में बनवाया था, जिसे 20 हज़ार मज़दूरों ने लगभग 22 सालों में इस अद्भुत स्थापत्य कला का निर्माण किया.
आज इस अद्भुत कला के सामने एक चुनौती आ खड़ी है और वो चुनौती प्रदुषण है, जिसके कारण ताज दिन-प्रतिदिन अपनी चमक खोता जा रहा. डब्ल्यू.एच.ओ की एक रिपोर्ट के अनुसार,'सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में आगरा का स्थान २७वां है, जिसका सीधा असर ताज पर पड़ रहा है. ताजमहल के आस पास के इलाकों में कई फैक्टरियां हैं जहाँ से निकल रहे धुंआ और ठोस कचरों को जलाये जाने से धुएं के कण ताज की दीवारों से चिपककर इसकी रंगत को छिनते जा रहे.
ताज का संकट यहीं खत्म नही हो जाता बल्कि यमुना में बढ़ता प्रदुषण भीइसके लिए एक बड़ा ख़तरा है. कहा जाता है कि ताजमहल की नींव आबनूस और महोगनी की लकड़ियों पर रखी गयी है. इन लकड़ियों को मज़बूती के लिए नमी की ज़रुरत होती है, जो यमुना नदी से प्राप्त होती है. पर यमुना नदी भी प्रदूषित होने की वजह से ये लकड़ियां धीरे-धीरे सड़ रही हैं. इसके अलावा वाहनों और पर्यटकों की बढ़ती संख्या भी प्रदुषण का कारण है.
वै ज्ञान िकों और पर्यावरणविदों ने इस बात की ओर बारंबार संकेत किये हैं. सरकार ने भी इस दिशा में कुछ कदम उठाये हैं पर ज़रूरत है तो एक प्रभावी और निर्णायक कदम की जिसमें आम जनता का भी सहयोग हो क्योंकि ताजमहल से जनता के हित भी जुड़े हैं. ये इमारत सैंकड़ो लोगों के आजीविका का जरिया है. इसलिए इस अनमोल और ऐतिहासिक धरोहर को बचाये रखने के लिए सबका योगदान ज़रूरी है.