(तरनपुर की अवनति की कहानी) अंतिम क़िश्त
अब तो तरनपुर के संविधान के तहत वहां के मंत्रीमंडल में सारे लोग मूल गोटावाले ही रह गए , यानी तरनपुर की राजगद्दी को छोड़कर बाक़ी हर जगह कोटा वालों का ही आधिपत्य हो गया । तरनपुर के मूल निवासी या तो मर खप गये थे या तरनपुर छोड़कर कहीं और चले गए थे । उधर अंतराष्ट्रीय पटल पर तरनपुर राज्य की आर्थिक सफ़लता का डंका बजने लगा । विदेशियों को लगता था कि चूंकि तरनपुर का राजा सुमेर सिंग एक अर्थशास्त्री है अत: उन्होंने केवल अपने राज्य के पशुधन को ही मैनेज करके तरनपुर को आर्थिक रुप से विश्व के अन्य राज्यों से भी उपर ले आए ।
राजा सुमेर सिंग अपने यश्गान से बेहद ख़ुश नज़र आ रहे थे ।
अब तो इंगलैंड की सरकार ने और वहां के उद्योगपतियों ने राजा सुमेर का लंदन में ही सम्मान करने का कार्यक्रम बना लिया । और तारीख मुकम्मल की गई 15 अगस्त । राजा सुमेर सिंग जी 2 दिनों पहले ही लंदन पहुंच गए थे । वहां उन्हें अपने राज्य की आर्थिक सफ़लता की नीति का उल्लेख करना था । मंच पर इंगलैन्ड के राजा के अलावा फ़्रान्स और जर्मनी के राजा भी बैठे थे ।
राजा सुमेर सिंग ने कहना प्रारंभ किया कि हमारी सफ़लता का मुख़्य राज़ यह है कि हमने वहां के लोगों पर दूध पीने और खोवा खाने पर प्रतिबंध लगा दिया । और दूध संबंधित सारे खाद्य पदार्थों को अपने बाजू के स्टेट गोटा में एक्सपोर्ट करने लगे । इस एक ही योजना से ही हमारे राज्य में इतना पैसा आने लगा कि लोगों ने तरनपुर में कारखाने स्थापित करने प्रारंभ कर दिये । राजा सुमेर सिंग जी इतना ही बोल पाए थे कि सभागार में उपस्थित एक युवक ने उठकर राजा सुमेर सिंग पर कई गोलियां दाग दी । राजा को चार गोलियां लगीं और वे धड़ाम से ज़मीन पर गिर गए । उनके प्राण पखेरू उड़ गए ।
यह सब देख वहां सुरक्षा पर लगे लोगों ने उस युवक को पकड़कर बाहर ले जाने लगे तब उस युवक ने कहा कि मैं 2 मिन्टों के लिए मंच के माध्यम से कुछ कहना चाहता हूं । फिर आप मुझे अपने कानून के तहत जो भी सज़ा देंगे मुझे ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार होगा, युवक को अनुमति मिल गई ।
तब उस व्यक्ति जिसका नाम भागवत था कहना प्रारंभ किया कि जबसे राजा ने तरनपुर में खोवा व दूध पीने पर प्रतिबंध लगाया तो हमारे देश के लोग कमज़ोर पड़ने लगे । हमारा नया जनरेशन तो 15/16 साल की ही उम्र में स्वर्ग गमन करने लगा । कुछ लोग तो रतनपुर में ही मर गए और कुछ लोग तो बाहर जाकर मेहनत का काम करते करते मौत की आग़ोश में समाते गए। आज तरनपुर में बाहरी लोगों का आधिपत्य है और वहां ढूंढने से भी तरनपुर के मूल निवासी शायद ही मिलेंगे । आज की तारीख में तरनपुर के 2 ही मूल निवासी बचे थे एक राजा सुमेर सिंग और एक मैं ख़ुद । मैं कुछ साल पहले ही लंदन आ गया था । मुझे कुछ समय से लग रहा था कि मेरे वतन के लोगों को ज़मीन्दोज़ करने वाले राजा सुमेर सिंग को जीने का कोई अधिकार नहीं है । अत: मैंने आज अपनी कौम को मिटाने का बदला राजा सुमेर को मार कर ले लिया । अब मैं ही अकेला उस राज्य का ज़िंदा बचा हूं अत: मैं सोचता हूं कि पूरी कौम के जाने के बाद अकेला रहकर मैं कैसे खुशी खुशी अपना जीवन यापन कर पाऊंगा अता: मैं भी आप लोगों से और इस दुनिया से विदा लेता हूं । यह कह कर उस भागवत नाम के व्यक्ति ने जय भैरव बाबा कहते हुए अपनी छाती पर ही गोली दाग दी और देखते ही देखते वह स्वर्ग सिधार गया ।
उधर कुछ समय बाद तरनपुर देश के सारे संस्थानों के बोर्ड पर नाम बदलकर गोटा किया जाने लगा । और तरनपुर कस्बे को गोटा देश की राजधानी घोषित कर दी गई । साथ ही तरनपुर से दूध और दूध संबंधित सारे पदार्थों का एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया गया । पिछले 20 वर्षों से रतनपुर के लोगों की इकानामी में दूध व दूध संबंधित पदार्थों की भूमिका नगण्य है फिर भी गोटा देश का तरनपुर शहर आज भी संपन्नता और वैभवता के दायरे में दुनिया भर में अग्रणी है ।
कभी कभी तरनपुर के बुजुर्ग अपने बच्चों को यह किस्सा सुनाते हुए कहते हैं कि कैसे एक राजा सुमेर सिंग के एक निर्णय ने रतनपुर शहर का भविष्य ही बदल कर रख दिया था ।
( समाप्त )