shabd-logo

ऊहापोह

26 सितम्बर 2021

21 बार देखा गया 21
एक हलचल एक आक्रोश उबल रहा है मन में
जाने वह कितने प्रश्न कर रहा है मेरे अंतर में
हर प्रश्न से बेजार हुई जाती हूं
बहुत लाचार बहुत कमजोर खुद को पाती हूं
आखिर मैं भी तो बेटी हूं
मेरे लिए भी मन रहा है यह बेटियां दिवस
पता नहीं मैं खुद को खुद के दिवस के दिन दुखी पाती हूं
क्योंकि मेरा अंतर /अंतस मुझे झिंझोड़ रहा है
मेरे ऊपर वह अट्टहास कर रहा है
मुझसे वह कह रहा है बहुत कमजोर है तू
हमेशा से थी हमेशा ही रहेगी
आखिर कमजोरों का ही तो दिवस मनाया जाता है
मातृ दिवस पहले मनाने की शुरुआत हुई क्योंकि मां कमजोर थी
जब पिता कमजोर पड़ने लगें
पितृ दिवस मनाया जाने लगा
हद तो तब हो गई जब मित्र दिवस भी मनाया जाने लगा
और 14 दिन के लगातार प्यार भरे प्रॉमिसेस और गिफ्ट ने यह जतला दिया अब हर रिश्ता कमजोर हो गया है
बेटियां तो हमेशा से कमजोर थी, तभी तो भ्रूण बेटियां बेटियां हत्या की पहचान बन गई थी
अभी मुझे कोई चिंता नहीं जल्दी ही संतान दिवस भी मनाया जाने लगेगा
उस दिन बेटियां या तो मजबूत होंगी या फिर संतानों से सिर्फ स्वार्थ का रिश्ता रह जाएगा
पर इतना तो जरूर होगा जब संतान दिवस मनाया जाएगा तब बेटे और बेटी का फर्क मिट जाएगा

Kumari Anshu की अन्य किताबें

आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

सराहनीय रचना ।शुभ कामनाएं ।

27 सितम्बर 2021

आकाश रजक

आकाश रजक

बहुत सुंदर रचना

27 सितम्बर 2021

ममता

ममता

अच्छी अभिव्यक्ति

27 सितम्बर 2021

Sanjay Ni_ra_la

Sanjay Ni_ra_la

लाजवाब बहुत उम्दा लिखा आपने

26 सितम्बर 2021

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए