एक हलचल एक आक्रोश उबल रहा है मन में
जाने वह कितने प्रश्न कर रहा है मेरे अंतर में
हर प्रश्न से बेजार हुई जाती हूं
बहुत लाचार बहुत कमजोर खुद को पाती हूं
आखिर मैं भी तो बेटी हूं
मेरे लिए भी मन रहा है यह बेटियां दिवस
पता नहीं मैं खुद को खुद के दिवस के दिन दुखी पाती हूं
क्योंकि मेरा अंतर /अंतस मुझे झिंझोड़ रहा है
मेरे ऊपर वह अट्टहास कर रहा है
मुझसे वह कह रहा है बहुत कमजोर है तू
हमेशा से थी हमेशा ही रहेगी
आखिर कमजोरों का ही तो दिवस मनाया जाता है
मातृ दिवस पहले मनाने की शुरुआत हुई क्योंकि मां कमजोर थी
जब पिता कमजोर पड़ने लगें
पितृ दिवस मनाया जाने लगा
हद तो तब हो गई जब मित्र दिवस भी मनाया जाने लगा
और 14 दिन के लगातार प्यार भरे प्रॉमिसेस और गिफ्ट ने यह जतला दिया अब हर रिश्ता कमजोर हो गया है
बेटियां तो हमेशा से कमजोर थी, तभी तो भ्रूण बेटियां बेटियां हत्या की पहचान बन गई थी
अभी मुझे कोई चिंता नहीं जल्दी ही संतान दिवस भी मनाया जाने लगेगा
उस दिन बेटियां या तो मजबूत होंगी या फिर संतानों से सिर्फ स्वार्थ का रिश्ता रह जाएगा
पर इतना तो जरूर होगा जब संतान दिवस मनाया जाएगा तब बेटे और बेटी का फर्क मिट जाएगा