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उसके घर से पहले,

23 जून 2017

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खुद का सब्र आज़माया, उसके दर से पहले,
रास्ते में थे कई मुकाम, उसके घर से पहले,

ऊँचें बेशक़ कर लिए दर-ओ-दिवार अपने,
यक़ीनन झुका था ईमान, खुद नज़र से पहले,

बिना कहे-सुने ही जद्दो-जेहद बयाँ हो गयी,
जी भर के रोया था जो, अपने फ़क़्र से पहले,

शायद कुछ अधूरी सी ही रह गयी वो दुश्मनी,
हमारी ज़िंदगी जो कट गयी, इक सर से पहले,

यूँ घबरा रहे हो जो स्याह रात के अंधेरों से,
जानो ना होगी सहर अभी, चार पहर से पहले,

तबियत शायद नासाज़ थी किसी बेरुखी से,
आ गया आराम जो सलाम के असर से पहले,

'दक्ष' ख़ामोशी अक्सर होती है क़हर से पहले,
मिलता कहाँ है आबे-हयात भी ज़हर से पहले,

विकास शर्मा 'दक्ष'

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23 जून 2017
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खुद का सब्र आज़माया,उसके दर से पहले,रास्ते में थे कई मुकाम, उसके घर से पहले,ऊँचें बेशक़ कर लिए दर-ओ-दिवार अपने,यक़ीनन झुका था ईमान, खुद नज़र से पहले,बिना कहे-सुनेही जद्दो-जेहद बयाँ हो गयी,जी भर के रोया था जो, अपने फ़क़्र से पहले,शायद कुछ अधूरी सी ही रह गयी वो दुश्मनी,हमारी ज़िंदगी जो कट गयी, इक सर से पहले,

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इंसानी हकूक और पत्थरबाजों की वहशी भीड़

25 जून 2017
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अभी हाल में कश्मीर के नौहट्टा से एक दुखद घटना सुनने को मिली ...... शहीद DSP मौहम्मद अयूब की निर्मम हत्या से कुछ सवाल खड़े हुए है जो इन 2 रचनाओं के माध्यम से सामने रख रहा हूँ

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इंसानी हकूक और पत्थरबाजों की वहशी भीड़ 1

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शिक़वा

4 दिसम्बर 2017
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शिक़वा यह नहींकि हम पे ऐतबार नहीं,ज़ालिम, के लहज़े में रहाअब प्यार नहीं, जवाब देते क्याहम सवालिया नज़र का,ढूंढते रहे, पर दिखा उसमेंइंतज़ार नहीं, बातें तो देरतल्क, करतारहा वो मुझसे,खोखले अल्फ़ाज़में मिला अफ़्कार नहीं, साक़ी मेरा क्याबिगाड़ लेगी तेरी शराब,निगाहे-नरगिससे जो हुआ सरशार नहीं, माना नाराज़ हैपर जलील क

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दोस्ती

5 दिसम्बर 2017
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क्या सोचता हूँ मैं

23 अक्टूबर 2018
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पुछा है कि दिन-रात,क्या सोचताहूँ मैं,इश्क इबादत, नूर-ए-खुदा सोचता हूँ मैं, रस्मों-रिवायत की नफरत से मुखाल्फ़त, रिश्तों में इक आयाम नया सोचता हूँ मैं, मसला-ए-मुहब्बत तो ना सुलझेगा कभी,मकसद जिंदगी जीने का सोचता हूँ मैं, इक बार गयी तो लौटी ना खुशियाँ कभी,कैसे भटकी होंगी व

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