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वेटिंग टिकट

12 नवम्बर 2021

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    नाटक
 का नाम    

वेटिंग
 टिकिट      

लेखक
    

कुंजबिहारी
 श्रीवास्तवा     

पता
 :   

पॉकेट
 बी ,16 बी
 , एल
 I जी
 ,फ्लैट्स
 , जेल
 रोड , हरी
 नगर , नई
 दिल्ली -11064      

ईमेल
    

kunjbihari ॰ tpa @gmail॰ com  

82910395 ,9810954350     

अन्य
 नाटक    

गांधी
 फिर चाहिए [हिन्दी
 अकादमी दिल्ली से नवोदित लेखक पुरस्कार ] 

2।लालमुन्नी :[इस
 नाटक पर लघु फिल्म निर्माण किया जो राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव मे 2015 मे सराही गई ] 

सबक
 :लगभग
 40 बार
 विभिन शहरों मे मंचित हुआ  

अन्य
 लेखन ,संस्मरण
 ,कहानी
 आदि ।  

लेखक
 का [विस्तृत
 परिचय संलग्न है ]   

  

  

  

  

  

  

  

  

वेटिंग टिकिट मेरे अब तक लिखे
नाटकों की शैली से बिलकुल अलग है,लेकिन किसी भी तरह का प्रयोग नहीं है ,इस नाटक को लिखते
हुए मेरा चित और हाँड़ मास का पुतला शांत होता चला गया ,पिछले कई महीनों से हिरद्य
मे समुद्र के अंदर उठने वाले ज़्वार भाटा की तरह की हलचल थी । हिरद्य और मस्तिष्क
दोनों ही आक्रोश मे भरे थे ,रक्त की धारा इतनी तेज़ बह रही थी की मुझे भय ने घेर
लिया की कहीं काल के मुख मे असमय ही न समा जाऊँ । 

अपने ही स्वार्थ के लिए कलम उठा ली और नतीजा
आपके सामने वेटिंग टिकिट के रूप मे है।आज़ादी के बाद से ही देश
विकासशील है विकसित नहीं हो पा रहा है ,लोकतन्त्र है ,आज़ादी भी है पर सकुन नहीं है
! आदमी अपने आप को असहाय ही
महसूस कर रहा है  ,सांस कब उखड़ जाएगी बस यही
उसकी सोच और डर  है ,जीने का अधिकार ईश्वर ने
दिया है लेकिन जीने की शर्ते चंद लोगो ने तय कर दी हैं  ! आजकल समाज में जो भी  जो घटनाएँ हो रही है ,वो
केवल भय ही पैदा करती हैं ,जिन मुद्दों पर मार काट हो रही है
आम आदमी का उससे कोई सरोकार नहीं है उन
मुद्दों में न तो रोटी है और न ही रोजगार सुबह का अख़बार केवल गोली बन्दूक और मरने
वालों की संख्या बताता
है ! वर्तमान मे चल रहे घटनाक्रम इंसान को रोज़ मरने
को मजबूर कर रहें हैं । गरीब ठगा सा महसूस कर रहा है ,किसान आत्महत्या को मजबूर है,अंधविश्वास ,रूढ़िवाद कालिया नाग
की तरह फन फैलाए खड़ा है ,धर्म के नाम पर समाज का बटवारा ,पंचायतों के
मिर्तुदंड के निर्णय ,न्यायपालिका का उपहास खुलेआम उड़ा रहे हैं । सरहद पर रोज़ देश की
रक्षा करने वाले बिना युद्ध के मारे जा रहे हें ।हिंदी अख़बार केवल जेबतराशी और
बलात्कार छापते हैं ,दलित शब्द लिखना अख़बार बेचने की गारंटी है शायद इसलिए ही हिन्दी भाषा की  अन्य तमाम लेखन विधाएँ केवल वेण्टीलेटर पर पड़ी
है । शरीर के सभी अंगो ने काम करना बंद कर दिया है । युवा पीढ़ी जागरूक है ,केबल टीवी और
धारावाहिक केवल भोंडे और अतिकाल्पनिक कार्यकर्मों से समाज के निराश जनमानस का
मनोरंजन कर रहें हैं ,ये कड़वा सच  है ,लेकिन मैं इसे नकार
नहीं सकता की वो सफल है । वेटिंग टिकिट ,समसामयिक घटनाक्रमों पर हास्य और व्यंग के साथ
गंभीर और गहन चिंतन है ।  

  

कुंजबिहारी श्रीवास्तव  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

पात्र     

राजेश्वर
 [40 वर्ष
 ] [ पुरूष]     

घीसु
 [35-45] पुरूष     

वसीम[20-22] पुरूष     

पुसपा
 दीदी :55-60[महिला
 ]     

संतोषी
 [35][महिला
 ]     

सबीना
 २३[महिला
 ]/स्वरा [छात्रा ]     

भगवती
 ४०-४२[महिला ] 

      

टीटी
 [ पुरूष] 53 वर्ष      

खैनिशंकर/रमाकांत [
 पुरूष]
 [40 से 50 वर्ष ]     

देशबंधू
 [ पुरूष][40 से 50 वर्ष ]     

दिवेदी
 [पुरूष][40 से 50 वर्ष ]     

श्रीकांत
 [ पुरूष]20 से 25 वर्ष      

10 पुरूष व 5 अन्य महिला      

2 रेलवे कर्मचारी [
 पुरूष]     

    

  

  

  

  

वेटिंग टिकिट. 

मंच सज्जा 

  

मंच पर एक रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म को दर्शया जा सकता है ,ये प्लेटफॉर्म केवल तभी मंच पर प्रकाश
परिकल्पना के माध्यम से केवल स्टेशन पर ट्रेन रुकेने वाले दृश्यों मे ही दिखाया
जाना चाहिए ,ये मंच के पिछले भाग मे सजाया जाना चाहिए ,मंच के मध्य मे ट्रेन की बोगी के  रूप मे   सुसज्जित किया
सकता है,यद्यपि निर्देशक प्रतिकात्मक प्रयोग के लिए स्वतंत्र
है [मंच सज्जा निर्देशक अपनी परिकल्पना के आधार पर  भी
कर सकता है,लेकिन रेल का डिब्बा मंच पर नाटक को सही रूप से
परिभाषित करेगा , नेप्थय से मंच पर ट्रेन चलने का संगीत - प्रयोग, नाटक को मंचित करने एवं अभिनय
करने वाले कलाकारौ की अभिव्यक्ति का
स्वाभाविक आभास करा सकता है ,दर्शक खुद को  को वास्तविक रूप से नाटक जुड़ा हुआ  जीवंत   अनुभव करेंगे  ] 

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

दृश्य-1 

 [पृष्ठभूमि
एवं परिवेश] 

[रेल गाड़ी धीरे-धीरे चल
चुकी है, प्लेटफॉर्म पर भीड़ व अफरातफरी मची है,तभी एक 40 वर्ष की उम्र का वयक्ति हैंडबैग व पानी की
बोतल लिए चलती ट्रेन में कूद जाता है।] 

यात्री:[राजेश्वर] [डिब्बे के अन्दर प्रवेश करता है और बिना  ,लगभग शौचालय के पास खड़ा हो जाता है]  

भाई साहब :[ समीप
खड़े दूसरे यात्री से] ,बच गया ,इसके
बाद 10 घंटे के बाद ही  ट्रेन है ,कल घर पहुँचना
जरूरी है, (पानी पीता है)  

दूसरा यात्री: नहीं, मुझे नहीं लगता कि आपका घर पहुँचने का इरादा
है  

,जिस तरह से आपने एंट्री मारी है ,उससे शायद आप भगवान के घर पहुँच जाते। मेरा नाम घीशु है ,दिल्ली जा रहा हूँ; 

पहला यात्री: जी , मै राजेश्वर हूँ । 

घीशु: जाइए
अपनी सीट पर बैठ जाइए ,ये बोगी नंबर s -4 है। 

राजेश्वर: जी,मेरी टिकिट अभी कन्फ़र्म नहीं है ,टी-टी साहब से बात करनी है। वेटिंग टिकिट है। 

[ट्रेन अब गति पकड़ चुकी है,यात्री अपनी सीट पर बैठ चुके हैं घीसू अंदर चला जाता है ] 

[तभी दो महिला टॉइलेट के लिए आती हें] 

  

महिला[पुसपा
दीदी ]: [राजेश्वर से] दिल्ली जा रहें हो बचवा। 

राजेश्वर: जी नहीं ,दिल्ली नहीं, मथुरा तक ही
जाना है। 

[पुसपा दीदी ]:धन्य हो गई आपसे मिलकर। 

राजेश्वर: जी,
मुझसे, मै तो आपसे ....... 

[पुसपा दीदी ]:[उसकी बात को काटते हुये ] 

किशन कनहिया , की
नगरी है मथुरा, तुम्हारी छवि मेँ भगवान को देख रही हूँ। 

राजेश्वर: [सहम
जाता है] जी मैं, मथुरा नहीं ,भागलपुर से हूँ। 

महिला :[घूरती है]  कभी
लड़की नहीं देखी ,हटो रास्ता छोड़ो ,टॉइलेट
जाना है , पता नहीं लोग लड़कियों  का रास्ता क्यों  रोकते हैं ,लड़की देखी नहीं
की बस लगते हैं संबंध बनाने ! भागलपुर का हूँ , हम पूछे किया तुमसे ,बतियाने का बहाना चाहिए था ।  

महिला 2:जाओ दीदी ,घुस जाओ  वरना देर हो जाएगी ,इनसे हम नैन मटका
कर लेते हैं ] 

[पुसपा दीदी  टॉइलेट मे घुस जाती है] 

[नेप्थय से मंच पर ट्रेन चलने का संगीत बजता है ] 

  

  

  

  

  

  

द्र्श्य -2 

महिला 2[ संतोषी]:: पता
नहीं कितनी बार पेशाब करने जाती है। हकीम साहब बोले पानी कम पिया करो। 

राजेशवर: जी,शायद इन्हे मधुमेह की बीमारी हो सकती है। उसमे ऐसा ही  होता है। 

महिला 2[ संतोषी]:: मधुमेह
हो ही नहीं सकता, पुसपा दीदी बाबा योगदेव के सारे योगासन करती है ,दीदी को शुगर
की बीमारी है! बाबा जी टेलिविजन पर बहुत देर से योगासन सिखाने
करने ,आश्रम का पता
ही नहीं था, तब बाबा का योगासहन टीवी पर नहीं दिखाते थे।
वरना शुगर की हिम्मत दीदी को छु भी जाती ।  

राजेश्वर:, मधुमेह ही शुगर का हिन्दी मे नाम है। 

महिला-2[ संतोषी]:चुप तुम कोई डॉक्टर हो ? शुगर
नहीं मधुमेह है दीदी को, बिना मशीन लगाए बता दिये मधुमेह है[बड्बड़ाती है ] , बाबा कभी झूठ नहीं बोलते  ,
अबकी बार हम लोग स्वामी जी के आश्रम जा
रहे हैं  , हम बीस औरतें हैं , वो
भी एक ही गाँव से ,कटोरा स्टेडियम दिल्ली  मे
दरबार लगेगा स्वामी जी का अडवांस मे टिकिट बुक  किए हैं वो भी तीन महीने पहले,पूरे तीन हज़ार रुपए में , स्पेशल भक्त कोटा बुक  किए हैं  , अगर किरपा
हो गयी तो ,सारे कष्ट दूर हो जायेंगे। 

[ टॉइलेट के पास जाकर ] सुनों
दीदी निकल जाए तो मुझे बता देना, लगता है पूरा खाना निकाल कर
ही दम लेगी ,टाइम लगेगा ,निर्वत होने
बैठ गई हैं  , जुबान  पर कंट्रोल तनिक भी नहीं हैं , बार बार खाती हैं [नाक़ बंद करती है ] छि :छि  बहुत
महक रहा है ,  अपनी सीट पर जा रही हूं। [टॉइलेट के दरवाजे पर खटकाती है] दीदी एक ही बार निपट
लेना... 

पुसपा दीदी[ संतोषी]: :[टॉइलेट के अंदर से] ॥बस दुई मिनट रूक जा हो गया।
समोसा गड़बड़ किया है। 

महिला 2[ संतोषी]:: पुसपा दीदी ,तुम गड़बड़ और पानी का बहाव कंट्रोल ठीक
करो हम सीट पर जा रहे है। [राजेश्वर को] पहुंचा देना। 

राजेश्वर: जी ,ठीक है। लेकिन आप कौन सी सीट पर हैं। 

महिला 2[ संतोषी]:: नंबर
टिकिट पर लिखा है, पर टिकेट पुसपा दीदी के पास है , आओ जगह दिखा देती हूं। 

[महिला[ संतोषी]:
राजेश्वर को लेकर डिब्बे के अंदर बढ़ती है] 

[ट्रेन के भीतर सीटों पर कुछ लोग बैठे हें,कुछ लेटे हें, तभी महिलाओ का ग्रुप बैठा दिखता है] 

महिला 2[ संतोषी]:: यही
है हमरी सीट , 19 लोग हैं, और एक -
पुसपा दीदी , टोइलेट में, पूरी बीस। झूठ बोले से कोई लाभ नहीं होता । बीस बोले थे ,चाहे तो गिन लो। 

राजेश्वर: जी  

राजेश्वर: क्या मैं ,कुछ देर यही बैठ सकता हूं ? 

महिला2[ संतोषी]: तुम्हें ,हम कहे की
पुसपा दीदी  , टोइलेट
से निकलेगी तो मुझे बताना ।  

राजेश्वर: जी,
थक गया था, काफी देर से ...... खड़ा हूं। 

महिला2[ संतोषी]: अपनी सीट पर क्यों नहीं बैठे। 

राजेश्वर: सीट
नहीं मिली, अचानक जाना पड़ रहा है। मेरे पास वेटिंग टिकिट है। 

महिला2[ संतोषी]:: निकलो यहाँ से , ई  डिब्बा रिजर्व का है। पुसपा दीदी अपने आप आ
जायेगी।पुसपा दीदी तुमको देखते ही पहचान ली थी ई आदमी  नैन
मटका कर रहा था ,टॉइलेट के पास  । [बाकी महिलाएं खुसर फुसर करने लगती हैं ] 

राजेश्वर: जी ,अभी तो आप कह रही थी कि... 

महिला 2[ संतोषी]:: देखो
अख़बार मे रोज़ आता है , बिना टिकिट ओर अजनबी  लोग ,
लूट पाट करते हैं ,खासतौर पर हम जैसी  जवान और खूबसूरत लड़कियों को देखकर  ।  

राजेश्वर : पर मैं बिना टिकिट नहीं हूँ , मेरे पास वेटिंग टिकिट है -और.... 

महिला2[ संतोषी]:  : पहली बार बाबा जी के समागम मे नहीं जा
रहे , टी ॰ टी अगले स्टेशन पर उतार देगा , चलो भजन करो दीदी ! 

[ महिलाएं गीत गाने लगती हैं, ढोलक बजने लगता है] 

चलो बुलावा आया है , बाबा ने बुला आया है, 

गुलगप्पा भी खाया है ,भर्ता  भी बनाया है, 

लाल, पीली ,
हरी,चटनी और खोया भी बनाया है , 

दर्शन देना बाबा अबकी ,किरपा कर देना सबकी , 

आयेंगे बार बार , तेरे दर्शन को दरबार। 

  

[राजेश्वर कुछ सोचे बिना वापस टोइलेट कि तरफ
बढ़ने लगता है ,तभी टी. टी का परवेश होता है, राजेश्वर अपना टिकेट निकालता है] 

  

  

राजेश्वर : टी ॰टी साहब , टी ॰टी
साहब... 

टी॰टी॰ (कुछ नहीं बोलता) दूसरे यात्री से टिकिट मांगता है... [आई कार्ड
दिखाईए] 

राजेश्वर:टी ॰टी साहब , टी ॰टी
साहब... 

टी॰ टी: अभी कोई सीट नहीं है .... मुझे तभी लोग टी ॰टी साहेब बोलते हैं जब
टिकेट वेटिंग मेँ होता है। मैं तुम्हें ट्रेन से उतार सकता हूं , रेलवे का नियम है ,25 साल की नौकरी है सारे रुल
कंठस्थ  हैं इसलिए नो आर्गूमेंट।  

राजेश्वर: जी , मैं  आपसे बाद
मैं मिलता हूं । 

टी॰ टी : गेट
के पास खडे हो जाओ । बोगी की चेकिंग करनी अभी बाकी है ,उससे
पहले तुम्हे  उतार नहीं सकता ,ऑनलाइन टिकिट कराई होती तो पैसे  अब तक आपके खाते मे पहुँच चुके होते और टिकिट
कैंसिल ,लेटैस्ट रुल बना है  ।नो ट्वीट प्लीज ... 

राजेश्वर :[घबराकर]॥जी ,टोइलेट के पास खड़ा
हूं । पुसपा दी , बाहर आ गई होगी। 

टी।टी। ॥[आगे टिकिट चैक  करने लगता है  

 ...[नेप्थय से
ट्रेन चलने का संगीत बजता है ]]  

  

  

द्र्श्य:3 

  

[ट्रेन के डिब्बे के अंदर संगीत की आवाज आती है,[जैसे रेडियो मे गाना ....बज रहा हो,राजेश्वर चुपचाप टॉइलेट के पास खड़ा हो जाता है,तभी
टीटी आकर रुकता है ] 

  

टी॰टी : {राजेश्वर से}॥टिकेट है किया। 

राजेश्वर:जी ,वो आपसे बात की थी ,जब में ट्रेन में ,पुसपा दीदी का इंतजार कर रहा था। 

टीटी: मैंने नहीं पहचाना और मैं समझा भी  नहीं ,कौन पुसपा ,वैसे भी ट्रेन मे इंतजार कोई करता है ,कौन से स्टेशन से चड़ेगी, अगला स्टेशन ,भीलगढ़   आयेगा  न तो वहाँ ये ट्रेन रुकेगी और  उससे अगले स्टेशन से मेरी लिस्ट मे कोई
रिज़र्वेशन नहीं है। उल्लू समझते हो। 

राजेश्वर :जी आप को याद नहीं है...पुसपा
जी टॉइलेट मे थी ओर में वंही खड़ा था। 

टीटी: कोई मान मार्यदा नहीं
है , अब इश्क  के लिए ट्रेन का टॉइलेट भी
इस्तेमाल करने लगे हैं, पुष्पा से मिलने का मौका मिला किया ? 

राजेश्वर: जी आप गलत समझ रहे हैं
मुझे भी ओर पुसपा दीदी को भी ,हम
दोनों में कोई रिश्ता नहीं है। मै उन्हे जानता तक नही । 

  

टीटी:तो फिर नाम कैसे पता चला ? अच्छा तो
फेसबूक  से जान पहचान हुई थी ओर अब ट्रेन में मुलाक़ात, वो भी टॉइलेट में ,बड़ी
लंबी छ्लांग लगा दी। हमारी ज़िंदगी तो टिकिट देखने में ही निकल गई। तुम अपनी टिकिट दिखाओ। 

राजेश्वर: जी हाँ । [जेब से टिकिट निकालता है ] ये लीजिये! 

टीटी: ये तो
वैध नहीं है ,वेटिंग लिस्ट नंबर 181 ...यह रिजर्व डिब्बा है,बोगी नंबर s-4 । 

राजेश्वर: जी ,टिकिट वेटिंग ज़रूर है ,पर
अवैध नहीं ,मैं यही आपसे कहने की कोशिश  कर रहा
हूँ। 

टीटी:क़ानून
के सभी कॉलेज सरकार को बंद कर देने चाहिए, हर आदमी पैदाइश से
ही वकील होता है इस देश मे पकड़े जाने पर गलती  कोई नहीं मानता, बहस करना शुरू देता है  साथ मे
पूरा भाषण , हमे इस देश के क़ानून मे पूरा विश्वास है
न्यायपालिका जो भी  सज़ा देगी हमे मंजूर
है  , आज तक करोड़ो मुकदमे फैसले के इंतज़ार मे पड़े हैं ,[राजेश्वर से] कैसे वैध है, बता दे ,कर पैरवी अपनी सफाई मे ...  

राजेश्वर: [जैसे ही बोलने को होता
है तभी पुसपा दीदी ज़ोर से टॉइलेट के दरवाजे को खोलती है,पसीने
मे लथपथ] 

पुसपा दीदी:अरे पाप हो गया  

राजेश्वर:[टीटी
से] :जी ये ...पुसपा जी 

टीटी: तभी ये कह रही है पाप
हो गया । 

टीटी: क्या
किया इसने । पाप कई तरह के होते हें । 

पुसपा: पाप
इसने नहीं तूने किया है । 

टीटी:जी पर
मैं तो टॉइलेट मैं घुसा ही नहीं तो पाप कैसे ?. 

पुसपा:  पाप तूने किया है तुझे सज़ा मिलेगी ,मै करूंगी तेरी शिकायत
!  

टीटी :जी मै टॉइलेट मे सुबह
से अंदर नहीं गया , मै तो आपसे पहली बार मिला हूँ , इंतज़ार ये कर रहा था ।   

[पुसपा दीदी ]: तू टी.टी है ! टॉइलेट मे पानी है की नहीं ,ये चेक करना ,तेरी ड्यूटि बनती है । कितनी देर से पिछवाड़ा धोने की कोशिश  कर रही थी  टॉयलेट  धोने  के
नल में  पानी नहीं है , उपर मंजन करने वाले नल
मैं पानी था ,टांग उपर किये पर और  चुलु भर पानी हाथ में लिए [जस्ट विजूवालाइज  ]वैरी डिफिकल्ट पोजीशन ऑफ़ बॉडी ,पानी से संपर्क
पिछवाड़े का होई ही नहीं पा रहा था  !
ऊपर से नीचे पानी आते आते नीचे गिर पाते जाता था चुलु से[अभिनय करती है ] , पूरी कलाबाजी खाई टॉइलेट मे तब जा
कर शुद्ध हो पाई  , यही कारण बाहर नहीं निकले अंदर ही
सारे योगासन करने पड़ गए ,   ऊपर से गर्मी, पूरे आसन टॉइलेट मे ही हो गया अब समागम में बाबा जी करवाएँगे तब किया "घंटा"  करेंगे।
दो महीने पहिले से रिजर्व टिकिट कटवाए थे की कौनों तखलीफ़ नहीं होगी । ई रेल
डिपार्टमेन्ट कभी नहीं सुधरेगा ,कन्फ़र्म टिकिट के बाद भी
परेशानी ।[तभी ट्रेन में रेलवे कर्मचारी खाने -पीने का समान बेचने आता है] 

रेलवे स्टाफ : कटलेट कटलेट॰॰ समोसा .. 

पुसपा:[उसका
कालर पकड़ लेती है] समोसा फेक
,इसी के चलते टॉइलेट मे सारा योगा करना पड़ा ।
तुम लोग खराब- सराब तेल इस्तेमाल करते हो । बाबा जी का तेल
लिया करो ,उसमे हानिकारक तत्व नहीं होते ।देशी समान बनाकर
स्वदेशी जागरण चला रहे हैं स्वदेशी चीज़ों की जांच भी सतर्कता की वजह से विदेशी
लबरोटरी मे कराते  हैं , नहीं मालूम  तो, टेलिविजन देखा करो । कहीं इस तेल मे कैंसर फेलने  वाले तत्व न हो ,
वैसे जब से पैदा हुए तब से बाज़ार मे मिलने वाला तेल  खा भी रहे हैं और लगा भी रहे हैं , किस्मत ही थी जो जवानी  तक ले आई
वरना तो बचपन में ही  तेरहवीं हो जाती ,{राजेश्वर से कहती है}अरे बेटा जरा सीट तक छोड़ दो
।टॉइलेट मे योगा करके ,शरीर दुख रहा है ,जगह कम थी अंदर ! 

राजेश्वर : टीटी साहब मैं जरा पुसपा जी को छोड़ कर आता हूँ ... 

टीटी: भैया
अच्छे से बैठा आना , तब तक मैं बोगी के टॉइलेट का पानी चेक
कर लेता हूँ । 

राजेश्वर : मेरी
टिकिट... के बारे मे...बात... 

टीटी: जो
अत्यंत ज़रूरी हो ,वही कार्य पहले करना चाहिए  {टीटी बोगी से  दूसरी बोगी मे जाने का अभिनय करता है...[
रेलवे समान बेचने वाला स्टाफ समोसा फेक देता है 

 ] पानी –केवल ----पानी----
बोलता जाता है ...मंच पर अंधेरा होता है ॥ 

[नेप्थय सेमंच पर ट्रेन चलने का संगीत बजता है ]]
 

  

  

[दृश्य-4]  

[एक लड़का जिसकी उम्र  लगभग 20 से 21 साल है ट्रेन के गेट के पास खड़ा है लड़का आते जाते मुसाफिरों को ध्यान से
देख रहा है वह लड़का ऐसा आभास दिखाता है जैसे किसी चीज की चोरी करना चाहता है ,इस लड़के का नाम वसीम है…. अपनी जेब से मोबाइल फोन
निकालता है और बातचीत करना शुरु कर देता है] 

वसीम : हैलो
– हैलो , मज़ा नही आ रहा है, तुम कहां
हो भाई .. तलब लगी है. भेन्चो ..
नहीं, वैसे तो कोई डर नहीं है पर ,रेलवे पुलिस वाले डिब्बे में आते-जाते रहते हैं
पकड़े गए तो ₹200 देने पड़ेंगे ध्रुमपान वर्जित  लिखा है...
हैलो. हैलो ..नेटवर्क की
प्रोब्ल्म है ...  हां कोशिश तो की थी , लेकिन बात बनी नहीं 1 मिनट कॉल होल्ड पर रख कोई
कबूतर है आ  रहा है…भाई ये तो वर्दी वाले हैं ,बात बाद
मे करता हूँ  

[ तभी तो 2 पुलिस के जवान
और उनके पीछे राजेश्वर आ जाता है.. जहां वसीम खड़ा है टॉयलेट
के पास राजेश्वर भी खड़ा हो जाता है, लेकिन कुछ बोलता नहीं
है] 

  

वसीम: [राजेश्वर से] यहां खड़े रहने से खतरा है, ,110 की रफ्तार से दौड़
रही है, सिगरेट विगरेट पीनी है तो अंदर होकर आ जाओ आप.मै
बाहर खड़ा रहूँगा कोई टेंशन नहीं है , यारो के यार हें अप्पन ,
मिला ले हाथ वसीम नाम है ।   

  

राजेश्वर: जी नहीं, कुछ करना नहीं है, बस
स्टेशन आने तक यही खड़ा रहना पड़ेगा.  

वसीम: हाँ भाई [फोन पर], लगता है बात बन
सकती है , बंदा है पास मे ,कह रहा है ,
वो खड़ा रहेगा लेकिन क्रॉस चेक करता हूँ ,चलो
रखता हूँ , सकुन मिला तो बात करूंगा । [राजेश्वर से ]अरे भाई जाकर अपनी सीट पर बैठ जाओ,
किसी ने कोई सजा दी है जो यहां खड़े रहोगे. 

राजेश्वर: सीट
अभी मिली नहीं है, वेटिंग टिकट है 

वसीम: जुगाड़ नहीं बैठा क्या? 

राजेश्वर: जुगाड़ क्या होता है ? 

वसीम:[ जोर
से हंसता है]...लगता तो हिंदुस्तान का ही है  , जुगाड़ का मतलब नहीं
जानते ? 

राजेश्वर: जी हिंदुस्तान का ही
हूँ ,और जुगाड़ ... एक गाड़ी
होती है जिसको जनरेटर लगाकर चलाते है, अगर आप कभी गाजियाबाद
या उत्तर प्रदेश में गए हैं तो आपको जुगाड़ वाली गाड़ी मिल जाती है 5रु सवारी लेता है एक -दो बार उस पर बैठा हूं,
लेकिन कमर मे मोच आ गई थी... 

वसीम:[ फिर हंसता है] 

राजेश्वर: मैंने गलत नहीं कहा जो
आप इस तरह हंस रहे हैं . 

वसीम: हंसने पर भी टैक्स है
क्या ?  मैंने यह नहीं कहा कि आप गलत बोल
रहे हो लेकिन आप पक्का  मेरा चुतिया काट रहे हो  ऐसी कोई गाड़ी नहीं बनी जो जनरेटर से चलती हो, यह सिर्फ जुगाड़ है , और ये हिंदुस्तान में ही पॉसिबल है  समझा  !!!
, पर ये  कोई गुमनाम
वैज्ञानिक है जिसने जुगाड़ फिट किया ,नाम पता चल जाये तो  नोबेल प्राइज दिलवा देता  उसको,भाईजान  मेरा टिकट कंफर्म है , सीट
नंबर 36 लेकिन मैं भी यहां जुगाड़ के चक्कर में हूं, दिमाग बहुत सटका हुआ है बस एक बार अठन्नी की सीटी बज गई तो सफ़र आराम से कट
जाएगा.  

[राजेश्वर से ] टी.टी से बात नही की , रेलवे मे कोई रिश्तेदार नही है ,
तत्काल टिकिट तो एजेंट आराम से दिला देता  है।मेरे  फुफू
की टिकिट बेचने के  की एजेंसी  है ,जब बोलो ,तब ले लो टिकिट ।नंबर लिख ले मेरा ! 

राजेश्वर: जी   जिस तरीक़े
को आप जुगाड़ कह रहे हो मैंने प्रयास किया था लेकिन टी .टी साहब टॉयलेट के पानी चेक करने गए हैं
पुष्पा दीदी को शुगर की बीमारी है बार बार  टॉइलेट मे आती हैं , 

वसीम :और तू मज़े ले रहा है ,टॉइलेट के पास आँख सेक रहा है , कैसी है ।  

राजेश्वर :आप भी
गलत बोल और समझ रहे हैं , मेरी माँ से बड़ी हैं , 

वसीम :छोटी होती तो फिर है
तेरा ताड़ना ,गुनाह नहीं होता , वाह भाई
,खिलाड़ी है ,आगे बोल क्यों आती है बार
बार ... 

राजेश्वर :जी ऊपर
से समोसे की वजह से पेट में गड़बड़ हो गया  है पुष्पा ज़ी का पानी को लेकर झगड़ा
हुआ था टीटी साहब से, इसीलिए चले गए बेचारे… पता नहीं कहाँ ,शायद टेंशन हो गई होगी! मुझे उन पर भरोसा है जैसे ही
कोई सीट मिलेगी वो मेरी टिकिट कन्फ़र्म कर देंगे । 

  

वसीम: कसम से बहुत दिनों बाद आप जैसे आदमी से मुलाकात
हुई है सबका ख्याल रखा हुआ है, चल छोड़ ,लगता है  मेरा जुगाड़ हो गया, यही
बाहर खड़ा रहिओ  मैं अंदर जा रहा हूं टॉयलेट में! 

राजेश्वर: शायद पानी नहीं है
उसमें, 

वसीम: पानी नहीं चाहिए.. बस खींच के आता हूं दो-चार
मिनट लगेंगे.. 

राजेश्वर: जी ठीक है जाइए मैं यही
खड़ा हूं , किसी को अंदर नहीं
आने दूंगा लेकिन फिर भी सुरक्षा के लिए आप अंदर से चिटकनी लगा लीजिएगा 

वसीम: अरे वाह लगता है अब  सिटी बज  जाएगी, सुकून पड़ जाएगा [ टॉयलेट
के अंदर घुस जाता है] 

राजेश्वर:[ चुपचाप
खड़ा है.. ट्रेन चल रही है.. लगभग
हल्का हल्का अंधेरा होने लगा है] 

राजेश्वर:[ वसीम जो टॉयलेट के अंदर है, उससे पूछता पूछता है]... जी क्या अंदर पानी है..? 

वसीम: बस एक  मिनट और
रुक जा, बाहर आकर सब बताता
हू… 

राजेश्वर: जी हां, आप आराम से आ सकते हैं.. 

वसीम[ बाहर निकलता है] 

राजेश्वर: जी
आपके मुंह से सिगरेट की बदबू आ रही है 

वसीम: सही पहचाना है, बस चवन्नी का घसीटी है, 7 -8 घंटे का सुकून मिलेगा ,कुछ देर तेरे पास खड़ा हो जाता हूँ डिब्बे मे अभी गया तो बदबू आएगी ,
बाकी लोग चिल्लम - चिली करने लगेंगे,,मुझे खुद पर शरम आयेगी ,पर ज़माना  उल्टा चल रहा
है , चोरी भी करो और सीनाज़ोरी भी करो। वही कामयाब है  

राजेश्वर: मुझे कोई एतराज नहीं
है,आप तो वैसे भी कन्फ़र्म टिकिट पर यात्रा कर रहे
हैं ।  

वसीम: हवा मस्त है, सिर
सही घूम रहा है ट्रेन ऐसी लग रही है जैसे हवाई जहाज चल रहा है.. कभी सीटी बजाई है जिंदगी में, चिलम पी है,
...या ऐसे ही  जिंदगी... निकाल देगा ,यहीं पर खड़ा हुआ.. देख मेरी बातों का बुरा मत मानिओ,
चवन्नी का असर है कुछ देर तो बोलूंगा उसके बाद सपाट,[ धीरे से बोलता है]..गांजा खींचा है ! 

राजेश्वर: जी, कॉलेज के दिनों में ,मेरे
हॉस्टल में लड़के पिया करते थे , देखा है उन्हें, नशे की आदत बुरी होती है बहुत लोग बर्बाद होते हैं तुम्हारी उम्र अभी बहुत
छोटी है कैसे पड़ी आदत..[वसीम थोड़ा डगमता है, राजेश्वर अरे संभल के [उसे पकड़ता है  ] 

वसीम: क्या करोगे ,जान कर , मेरी सीट पर जा
के सो जा ,36 नंबर...बगल मे एक टकला सा
मोटा आदमी बैठा है! 

[ तभी वसीम    ट्रेन के फर्श पर
बैठ जाता है ]  

साला जब से बैठा है या तो खा रहा है या फोन घसीट रहा है , किसी कंपनी का सेठ लग रहा है लोंडिया से मज़े
ले रहा है बीबी का फोन आता है तो कह देता है नेटवर्क नहीं आ रहा तुम्हारी
आवाज़ नहीं आ रही , गजब है भाई  [ ॰भाई
मजा आ रहा है वैसे तो ज़िंदगी जहनून्म है मगर कसम से अबी तो  जन्नत का मज़ा आ रहा है । 

राजेश्वर:ज़िंदगी
से लड़ना चाहिए ॰ हार मान कर--- खैर ,जब
जन्नत से वापस आ जाओ तो अपनी सीट पर चले जाना टी -टी साहब आ
रहे होंगे ,मेरा वेटिंग शायद  कन्फ़र्म हो जाएगा ॰ फिर
आपको नशा भी  है , ट्रेन
से गिर भी सकते हो ।  

वसीम: हाँ
नशा तो है ,गिरूँगा की नहीं ये नहीं पता..देख तू सीधा आदमी है ॰  

राजेश्वर : वसूल
पर चलता हूँ।जब तक आप सहन कर  सकते हैं सह  लो ...कुछ समय मे ट्रेन  मथुरा पहुँच जाएगी ।  

  

वसीम: फिर
तो ,पूरी रात ,यही इसी टॉइलेट के पास
खड़ा रह जाएगा ,चल तेरी मर्ज़ी चलता रह अपने वसूल पर ! 

राजेश्वर: उम्र बहुत छोटी है पर
बातें बड़ी सुलझी हुई करते हो ॰ 

वसीम: अब्बू
, बताते हें ,देश के दो टुकड़े हुए थे ,जब गोरे हिंदुस्तान छोड़ गए । अब्बू ने सारे रिश्तेदार छोड़ दिये ,वसूल वाले थे तेरी तरह । ज़मीन ,घर ॰दौलत यहाँ तक चलती
दुकान छोड़ कर  हिंदुस्तान चले आए । अब  कुछ नहीं है पास मे , कारीगरी बंद है , कोई नहीं आता झाँकने  ॰ बस जो
यहाँ रिश्ते वाले हैं  ईद पर मिलते हें । मामू को लाने जा रहा हूँ। मामूजान
कोई मोतिया की बीमारी है आँख से कम दिखता है   

राजेश्वर: मामू
मतलब मामा के घर ।  

वसीम :हाँ
अम्मी के भाईजान , अम्मी की तबीयत अब ठीक नहीं रहती, मामू को याद करती है बस बोलती है,मामू को बुला ले  वसीम , कब रुखसत हो जाऊँ
दुनिया से ,मिलने की ख्वाईश है  । अब्बा दूसरे
निकाह के चक्कर मे लगे हें.भेन्चो . चार भाई पैदा कर दिये ॰ अम्मी अब हसीन नहीं दिखती ऊपर से बीमार अब अब्बू के मतलब की नही रह गयी अम्मी ! अब्बू को सेक्स की तलब भोत लगती है ॰ फड-फडाता  रहता है,आँख मे काज़ल  और इतर लगा के ही घर से निकलता है खाने का को
जुगाड़ नहीं, नई अम्मी लाने को सोच रहा है ॰ ॰  

राजेश्वर: पढाई की है तुमने ,नौकरी की कोशिश.. मेरा
मतलब ॰  

वसीम : नवीं
जमात ॰ मे छोड़ दी 

राजेश्वर : पैसे की कमी थी , समझ
सकता हूँ ॰ बहूत लोगो के हालत ही जिम्मेदार होते हैं ।  

वसीम :नहीं ॰ मौलवी साहब की लंबी छड़ी ने छुड़वा दी ॰
पूरी रात सबक याद  करता ॰ लेकिन मौलवी साहब के सामने पड़ी छड़ी देख वो भी लंबी
और तेल पिला कर रखते थे ,हर लोण्डे को पेलते थे ,वो भी बिना गिनती के , बस जैसे ही बुलाते आ जा वसीम
तेरी बारी है , मेरी नज़र छड़ी पर पड़ती ।आँख के आगे अंधेरा और ,दिमाग मे सन्नाटा छा जाता सारा सबक भूल जाता ॰ ॰ भोत कोशिस की ॰ पर खोफ
भेज़े मे बैठ गया मौलवी साहब सबक पूछते और मैं चुप रह जाता वो शुरू हो जाते दनादन-
दनादन   ,गिनते भी नहीं थे  कि किती पेल दी बस ॰ घर से अम्मी के कहने
से निकल जाता ,मदरसे
जाने के लिए , पर पहुँच जाता  खेलने कूदने, बन्द कर दिया मदरसा जाना ।फिर दो
चार दोस्त  और मिल गए ,ज़मील   जावेद,सफ़ीक़ मैं,सफ़ीक़ भाई ,कभी तालाब पर ,कभी
आम के बाग मे ले जाते! सफीक भाई  उम्र
मे बड़े थे हम सब से । सफ़ीक़ भाई ने ही  सीटी
बजानी  सिखा दी ।  

राजेश्वर :वो
कैसे ॰  

वसीम :मैंने नशा चखा था ,
बहोत दूर के रिश्तेदार के निकाह मे गए थे खूब गोस्त खाया और पहली
बार  दारू , वैसे नशा करना हराम है ।सफ़ीक़ भाई ,सकून के लिए गाँजा पीते थे , एक दिन मेरा भेजा बहोत
ख़राब था ,अम्मी और अब्बू  मे टेंशन बाजी हो गई ,अब्बू  ने तलाक़ की धमकी दे दी अम्मी
चिलानी शुरू हो गई ,मेरे बोहत टेंशन हो गई बस सफ़ीक़ भाई की
मोटर गैरज़ पर चला गया , सकून मिलता था ।मुझे सुबह ॰ सुबह
देखकर बोले ॰ टेंशन बाजी फिर हो गयी ,सब स्टोरी जानते थे
।अंदर ले गए ,बस सुलगा दी , बोले ले
खींच ॰ ॰ हाथ काँप रहे थे मेरे ,मैंने कहा हराम है सफ़ीक़ भाई
। झट से बोले , बहोत कीमती है , हर कश
में रूपल्ली लगती है ॰ मैंने खींची , कुछ नहीं हुआ , मे बोला, सफ़ीक़ भाई मुझे नशा नहीं होता ,दारु से भी बस दो मिनट ही  घूमा था
। सफ़ीक़ भाई बोले बस खींच ,ज़रा लम्बी  खींच जैसे ही तेरी साँस
से  सीटी की आवाज निकलने लगे  तब तक खींचता जा , मैं
खींचता गया और सीटी बजने लगी॰ ...... ज़मीन और आसमान सब घूमने
लगा उस दिन पता चला नशा क्या होता है पर सकून ऐसा मिला कई दिन तो होश ही नहीं रहा
। और अब आदत है ... ऊपर से ड्राईवर की ड्यूटि । अब मै कैब
चलाता हूँ ।  

राजेश्वर :और वो
हराम वाली बात दिमाग़  मे नहीं आती।  

वसीम : दुनिया बदल गयी है ,
सब करते हैं ,कौन पूछता ,पड़ने लिखने से कौम मे बहूत बदलाव की हवा है  

  

  

राजेश्वर: सरकार ने सोचा है , अब बच्चो को स्कूल मे टीचर मारते नहीं हें ॰ प्रतिबंध
है ! 

वसीम : सरकार जागती है लेकिन
बहोत देर से ॰  

वसीम :चल जरा अंदर हो के आता
हूँ। दो कश घसीट के आता हूँ [टॉइलेट के अंदर घुस जाता है ] 

राजेश्वर: [चुपचाप
]॰ ॰ यात्री एक बोगी से दूसरे डिब्बे में आ जा रहे हैं। 

[तभी एक आदमी और  एक औरत गाते हुए आते
हैं  ,,हारमोनियम ओर घुंगरू उनके हाथ में है] 

गीत [विरह
संगीत ] 

झूम के बरस बदरा रे ...आज मेरे खेत को खतरा रे।  

पानी बिन कुछ उगता नहीं ... नदिया पानी देयत नहीं ।  

लड़की की गौना होवत नहीं । हमरी अंखिया सोवत नहीं ।  

कह सुन कर हारे रे । अब कहाँ जाए रे ...। 

बरस बरस रे बदरा रे । बरस बरस रे बदरा रे ।  

खेत कभी हरा रहा रे । मेला झूला ।लगा रहा रे ।  

झूम के बरस बदरा रे ...आज मेरे खेत को है खतरा रे।  

सूखी माटी रोवत रे ... बूँद बूँद को तरसे रे  

तू ही हमरी आस है रे । मत करहिए निराश रे ।  

पानी अब है न आँख मे रे । रोटी दे मेरे हाथ मे रे ॰ ॰  

खुद को मारा । और मरेंगे ॰ खेती अगले बरस हम न करेंगे ।  

तू आज ज़ोर से उमड़ा रे । उम्मीद से दिल भर गया रे ।  

झूम के बरस बदरा रे ...आज मेरे खेत को है खतरा रे।  

[दोनों गायक ॥हाथ फेला कर लोगो से पैसे मांगने
का अभिनय करते हैं ] 

राजेश्वर :गेट से
थोड़ा बाहर झाँकता है तभी घीसू आता है ।  

घीसू : अरे अभी तक यहीं खड़े
हो ,सीट नहीं मिली ,उकता गया था बैठे
बैठे ।  

राजेश्वर :और मै
खड़े खड़े ।  

घीसू :अब ट्रेन मे मज़ा नहीं आता
,अंदर से कुछ नहीं दिखता ,न आम के
बगीचे ,न लहलाते खेत बस पूरे सफ़र मे झोपड़े और  गन्दा  बदबूदार पानी ।  

राजेश्वर :कुछ
नहीं बोलता । 

घीसू :झूम के बरस बदरा रे ....
आज मेरे खेत को है ख़तरा रे सुना तुमने  ये गीत नहीं ,सच्चाई है ,सब कुछ ख़त्म  हो रहा है ।कितनी भयभीत
करती है इनकी आवाज़ ,जो
सारा दिन खेत मे खड़े होकर अंपूर्णा देवी की आराधना करते पूरे देश का पेट भरते थे ,आज ख़ुद रोटी मांग रहे हैं । तीन बरस से पानी नहीं बरसा, सूखे पड़े हैं खेत । जहां से मैं इस गाड़ी मै बैठा हूँ यही सोच रहा हूं ,शेर और जंगली जानवर की रक्षा के लिए शिकार परिबंधित है ,क्योंकि ओ प्रजाति विलुप्त हो रही हैं । लेकिन किसान और खेती दोनों
विलुप्त हो चुकीं हैं ,कहीं कोई सोचता ही नहीं ,किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना क़ानूनी किताबों मे जुर्म है ,पिछले कई सालौ मे कितनी आत्महत्या हो चुकी हैं ,पर
किसी को कोई सज़ा नहीं । खुद को मारा । और मरेंगे ॰ खेती अगले बरस हम न करेंगे ।  

राजेश्वर : [सिर्फ
] मूक दर्शक की तरह उसको सुनता है ।  

घीसू :अरे आप को तो घर
पहुँचने की जल्दी है , ये तो चिंतन का विषय है । आप की
खामोशी सब कुछ कह रही है ।  

चाय पियोगे ,मन कर
रहा है [तभी ,रेलवे कर्मचारी ,चाय चाय ] सुन भाई दो चाय दे ] 

[मंच पर अँधेरा  होता है ] 

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

[दृश्य-5] : 

[टीटी का प्रवेश
बोगी मे होता है ,राजेश्वर टॉइलेट के पास खड़ा है ,वो टीटी को उम्मीद से  देखता है ] 

राजेश्वर : टीटी सर , 

टीटी :अच्छा ,
टीटी साहब से सर बन गया , जब तक वेटिंग मे सफर
कर रहे हो तब तक रेलवे का मंत्री तक बना दोगे । 

राजेश्वर : नहीं टीटी साहब ,वैसे ही आदत मे सर बोलना शुमार है , पहले कॉलेज मे ,ओर फिर प्राइवेट नौकरी करते करते ..क्या मेरी .टिकिट कनफर्म हो जाएगी ? चेकिंग से पता चला होगा की सीट खाली है ,सीट मिल
जाती तो मैं  थोड़ा आराम कर लेता ।  

टीटी : अभी
चेकिंग सिर्फ टोईलेट्स की ही की  है ,
सात बोगी मेरे पास हैं , सब मेँ पानी है,
पानी तो इसमे भी था । नल की समस्या थी  [तभी पुसपा दीदी और एक अन्य औरत टॉइलेट की तरफ आ रही है, टीटी की नज़र पड़ती है ] 

टीटी :देखो ,
अगला स्टेशन आने वाला है । अर्जेंट चेकिंग करने पड़ेगी ,हो सकता हो कोई बिना टिकिट उतर जाए [सरपट भागता है] 

राजेश्वर : इस बोगी के टिकिट चैक कर लो पहले ,शायद कोई सीट खाली
मिल जाए , 

टीटी : हर सीट पर आदमी बैठा है [भागते भागते ॰ ] , मुझे  मत बताओ मेरी ड्यूटी [पुष्पा
दीदी ,बिलकुल सामने आ जाती हैं , टीटी
अपनी दिशा बदल कर निकल जाता है । 

पुसपा दीदी :अरे संतोषी , का ..
गलती हो गई ,एक समोशा खाने की इतनी बड़ी सज़ा [पेट पकड़ कर चलती है ] 

संतोषी :अरे दीदी ,तुम भी तो
गपागप खाय ली ,तनी संतोष कर लेती दिल्ली उतर कर खा लेती ,सुबह तक गड़िया  दिल्ली लगा देती है ,पिछली बार
भी तो गए थे योगा दिवस पर , राजपथ पर। 

पुसपा दीदी :अरी हमरी जुबान पर फुल्ल कंट्रोल है ॰ ॰ थोड़ा
दिमाग तेज़ी से  चल गया।  

संतोषी :नहीं पेट चल गया है तुमरा और कहीं गड़बड़ नहीं है
, तकलीफ में अनाप ॰ सनाप बोलत हु । चलो संभाल कर । दो क़दम और
है टॉइलेट ॰ कौनों गड़बड़ इहाँ मत करना ॰  

पुसपा दीदी :जानत हैं ,पेट ही गड़बड़ है
। सच बताये ,पिछली बार योगा दिवस पर , रमाकांत
भैया बोल दिये  थे,खाली पेट पहुँचना है राजपथ पर,
नहीं तो योगा करने में दिक्कत आएगी इसलिए नहीं खाये , समोसा तो उस बार भी ट्रेनवा में  बीकत रहे ।  

संतोषी : ओह तो .. तो ससुर रमाकांत
कहे तुमसे समागम मे समोसा खा के आना । देखो सच बतलाओ ..[झगड़ने
लगती है ] 

पुसपा दीदी :नाही हम टीवी पर ख़ुद ही देखे थे बाबा जी का
समागम।  

संतोषी : ऊ तो हम भी देखे हैं ... रसमी ,छाया ,शांति सभी साथ मे
देखे, कौनों नाही खाई समोसा ।  

पुसपा दीदी :अरे बाबा जी ,अपने भक्तन
से समागम में सवाल पूछते हैं और वही पूछ्तें हैं  जो तुम देख कर भी नहीं खाते  और किरपा अगले समागम तक नहीं मिलती , जैसे की  तुम गली के नुक्कड़ पर गुलगप्पा
खाये ॰ छत में सर्दी पर बिना कंबल के सोये । 

बस ई समोसा देख हमार दिमाग क्लिक कर गया बाबा हमसे पूछेगे जिस
ट्रेन से आए हो उसमे समोसा बिक रहा था तुम ने खाया कि नहीं, हम तपाक से कहेंगे खाया था और पहली बार मे ही
किरपा आनी शुरू हो जाएगी ।  

संतोषी :झटक कर
पुसपा दीदी का हाथ छोड़ देती है ..... अभी आए .... तब तक होल्ड करना ,गीला और पीला  ना हो जाए अगवाडा और पिछवाडा ..दुसर साड़ी नहीं है ।  

पुसपा दीदी : पर अचानक का भया ... 

संतोषी : समोसा
वाले को ढूंढ लु हमे भी पहले राउंड मे बाबा कि किरपा चाहिए ।  

{मंच पर अंधेरा हो ता है , राजेश्वर: [चुपचाप ]॰ ॰ यात्री
एक बोगी से दूसरे डिब्बे में आ जा रहे हैं। 

नेप्थय सेमंच पर ट्रेन चलने का संगीत बजता है ]]  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

  

[दृश्य-6] : 

[बोगी के अंदर के दस -बारह
लोग बैठे हें ,उनके हाथ मे रंग बिरंगे झंडे हैं ,जो कई राजनतिक दलों  के रंगो से मिलते हैं लेकिन किसी भी दल का चुनाव
चिन्ह नहीं है , एक वयक्ति सबके बीच मे खड़ा है ] 

  

वयक्ति: [नारे लगवा रहा है ] 

हर हाल मैं , 

इस साल मैं , 

बड़ी है महंगाई , 

लोगो ने जान गवाई 

सब लिप्त हैं भ्रष्टाचार मे , 

मर गई जनता बेकार मे , 

पलट देंगे अबकी बार , 

लाएगे नई सरकार ॰ 

  

एक यात्री [रामभार
सिंह ]: इतनी कविता पढ़ रहे हो , दुई
लाइन का नारा बनाओ ,अगर ई कांट्रैक्ट हम लिए होते तो चार
लाइन ही लिखते । विधायक जी खुश हो जाते ॰ .... 

वयक्ति [इसका
नाम चालूचचा है ] तुम क्रेयटिविटी नहीं समझते विधायक ज़ी इसी
क्रिएटिविटी के चलते  इस साल ई कॉन्ट्रैक्ट हमे  दिए हैं , तुम पिछले
इलैक्शन मे ज़मानत ज़ब्त  करा दिये थे विधायक जी की । अब हम कैप्टन हैं जैसा
बोलेंगे वैसा ही करना और बोलना  पड़ेगा । जो स्क्रीप्ट दी जाईगी वो ही बोलना
है नो ईंप्रोविजेसन।  

रामभार सिंह :लेकिन
बीस साल मे पहली बार हरवाए थे । तीन पार्टी के लिए नारे लगाए थे पिछली बार ,प्रैक्टिस का  टाइम ठीक से नहीं
मिला था ओनली चांस ऑफ़ मिस्मानाज्मेंट! 

चालुचचा :नो
एक्सकुज़ प्लीज , न्यू टीम ,न्यू
कैप्टेन  

रामभार :अच्छा
तुम्ही कैप्टन हो । पैसा एडवांस मे चाहिए
।  

चालूचचा : देखो
तुम , बूढ़ा गए हो ,आवाज़ मे दम नहीं रहा
, रामभार चाहे तो अगले स्टेशन पर उतर जाओ । तीन लोग गाँव से
ऑलरेडी दिल्ली मे हैं [स्टैंड –बाई/बेंच-स्ट्रेंथ ]उन्ही
से लगवा लेंगे नारा , टोटल छै रैली है ,हो जाएगा मैनेज । पैसा रैली खतम होने के बाद ही मिलेगा । नारा सही और जोश
से बोलेगे तो ही पूरा पैसा मिलेगा ,सुना है इलैक्शन कमिशन
सीसीटीवी कैमरा लगवा दिया है । विधायक जी सब फूटेज़ देखेगे ॰ ..... नारा से पब्लिक मे  जोश आना चाहिए तभी पेमेंट पूरा मिलेगा ॥ बोलो
मंजूर है ।  

रामभार : राम
चंद्र कह  गए सिया से ,आईशा कल युग आयेगा । हंस चुगेगा दाना चोगा ॰ कौआ मोती खाएगा ॰ ॰  

  

चालूचचा :चुप ,आदर्श की बात गाँव जाकर करना ॰ अभी प्रैक्टिस करनी है , कई लोगो की पहली रैली है । 

रामभार :ठीक है
गांडू ..तुम्हार  जूता हमार कापर । मंजूर है । 

  

  

  

चालूचचा: [बोगी
के बीच में खड़ा हो जाता है ] 

चलो अपना अपना नाम लिखवा दो ,साथ मे जो पहली बार रैली मे जा रहा है वो बोलेगा पहली बार ॰ ॰जो पहले केवल
विधान सभा की रैली मे ,वो बोलेगा , केवल
विधान सभा, इसी तरह लोकसभा , पंचायत,
आदि ... किसी को कोई शक । 

  

यात्री दो [सोमू]। पर नारा तो ही लगाना है फिर कौनों इलैक्शन हो चचा।  

चालूचचा ;अब इस
काम मे भी मैनेजमेंट की जरूरत है । बहुत नारा लगाने वाले क्राउड़ सप्लाइ करने वाले
मार्केट मे आ गए है बहुत कंपीटीशन है । हम डेटाबेस तैयार  कर रहे हैं । समझे  

चलो बोलो ... [लैपटाप
निकाल लेता है ] चलो बोलो ॰ 

यात्री तीन : सुभाष
... पंचायत  

यात्री चार :इस्माइल
: पंचायत , और स्कूल टीचर असोशिएशन ॰ 

चालूचचा : ये
स्कूल टीचर असोशिएशन मे किया नारा लगाए थे ॰ ॰  

यात्री चार :हैडमास्टर
को पकड़ा है ,पिटी
टीचर से लफड़ा है स्वीटी को रगड़ा है ... 

चालूचचा : बस
गोट इट ....कै पैसे मिले थे ।कंटैंट मे दम रहा .. 

यात्री चार : पैसे
नहीं मिले  फिसिकल एडुकेशन मे पूरे नंबर दिये थे भोला को  पिटी टीचर  ने  ,वरना भोला फेल
हो जाता । बिज़नस डील ॥ 

चालूचचा : तुम
नारा लगाने मे सबसे आगे रहना , एक दम विधायक की कुर्सी के
सामने ।  

यात्री चार : चाय
पिलवा दो ॰ एनर्जि आ जाएगी  

चालूचचा:[ बिना
कुछ बोले घूरता है ]॰ ... 

यात्री चार :कोई
बात नहीं , अभी रोज़ा रख लेता हूँ ,वो
सकता राजपथ पर रोज़ा दिवस मे भाग लेना का कांट्रैक्ट मिले , बिज़नस
मे फ्युचर पर पैनी नज़र होनी चाहिए  ! 

चालूचचा : नैक्सट 

यात्री पाँच :कैरसिंघ
... आल राउंडर ...विद एक्सट्रा
एक्सपेरियंस ऑफ "सेवा परबन्धक कमेटी चुनाव " 

चालूचचा : तुम
नारे लगवाना ... 

यात्री पाँच : ओके
जी  

चालूचचा : चलो
टी ब्रेक , बाकी प्रैक्टिस बाद मे ॰ ॰  

[ट्रेन स्टाफ केवल चाय लेकर पहुंचता है ]
चाय॰ चाय चाय  

  

यात्री [बबलू ]
:खाली चाय , समोसा नहीं बना है  

ट्रेन स्टाफ :धीमे
बोले ज़रा , समोसा नहीं बन रहा , खाली
स्पेशल ऑर्डर पर तैयार है। दीदी के चक्कर में टीटी ने बेन कर दिया है .. 

यात्री बबलू : चालूचचा
बोलो न , समोसा मे जान अटकी है ,चालूचचा
जिंदाबाद ।  

सभी यात्री :जिंदाबाद
, जिंदाबाद जिंदाबाद ,  

[तभी पुसपा दीदी डिब्बे मे चलती हुई आती हैं ] 

पुसपा दीदी :जरा चाय दे ,कब से तेरी
राह देख रही थी , 

[ट्रेन स्टाफ चाय का कंटेनर वहीं रख कर भाग खड़ा
होता है । ] 

पुसपा दीदी :अरे इसका पेट खराब हो गया ,नहीं रोक पाया प्रैशर को आते हुए ॰ हम से ज्यादा  कौन समझ सकत है । [आगे बड़
जाती हैं ] 

चालूचचा :चलो
प्रैक्टिस शुरू करो । पहली लाइन हम बोलेगे फिर सब रिपीट करेंगे । एनर्जि फुल्ल ,
ओर हाँ बबलू तुम जूता फेकोगे जैसे ही  इशारा होगा ।  

बबलू :जी चाचा , हम गुलेल से प्रैक्टिस किए थे , निशाना नहीं चूकेगा ,लेकिन वो तो केवल
विपक्ष वाली रैली मे ही काम आती है । पर ई कांट्रैक्ट तो विपछ की रैलि मे मिलता है
!कोनो कन्फ़्युशन तो नहीं  

चालूचचा :अबे अब
रुलिंग पार्टी वाले का पैकेज बड़ा होता है ,हम कोई देशभक्त
नहीं है , पापी पेट का सवाल है । पैसा फेक तमाशा देख ...
 

हर हाल मैं , 

सभी एक साथ । [हर हाल मैं ,]  

इस साल मैं , 

इस साल मैं , 

बड़ी है महंगाई , 

बड़ी है महंगाई , 

लोगो ने जान गवाई 

लोगो ने जान गवाई 

सब लिप्त हैं भ्रष्टाचार मे , 

सब लिप्त हैं भ्रष्टाचार मे , 

मर गई जनता बेकार मे , 

मर गई जनता बेकार मे , 

पलट देंगे अबकी बार , 

पलट देंगे अबकी बार , 

लाएगे नई सरकार  

लाएगे नई सरकार  

[बबलू जूता मारता है सीधे चालूचचा के मुह
पर लगता है ] 

चालूचचा : [मुह रगड़ता है ]बहुत
बड़िया ,अब आप लोग रोटी खा सकते हें ! 

बबलू :चाचा , ये तो धोखा है ,धोखा है  

चालूचचा :चुप गांडु  ,ई नारा इस रैलि मे नही
लगेगा ॰  

बबलू :नारा नही आप बोले थे ,
रात मे पूरी और सब्जी मिलेगी , अब कह रहे हैं ,रोटी खा लो । नही ,ई तो बरदाश के बाहर है ,हम अगले स्टेशन पर उतर जाएंगे 

चालूचचा:ब्लैक
मेल नही करो बबलू ॰ पार्टी की इस रैली मे जूता फेकना है , इसलिए
तुम्हारा सेलेक्सन किए थे वरना । 

बबलू :डिमांड
है हमरी ,पूरे पूरे दिन गुलेल से निशाना लगा के प्रैक्टिस
किए , ,कौनों एहसान नही है अप्रोच नहीं लगाए ,टैलंट पर सेलेक्ट हुएँ हें  चचा और बहुत लोग है जो हमे कांटैक्ट कर रहे हैं ,
नेता पर जूता फेकना है "जानभूझ कर खुद पर
फिकवाना बहुत ट्रेंडी है समझे" ।  , फ्लॉप रैली की  भी हर चैनल कवरेज दिखाती
है । पूरी –सब्ज़ी मँगवा दो, वरना अगले स्टेशन पर उतर जाएंगे ।  

चालूचचा : ट्रेन मे पूरी कहाँ से लाऊं ॰ ॰ इंटरनेट
कनैक्शन भी नही आ रहा ॰  

बबलू :चचा हमरे फुनवा मे है ...
पर इंटरनेट से पूरी सब्ज़ी  नही आती ॰ ॰  

चालूचचा :अबे
ट्वीट करना है मंत्री जी को ॰ ॰[फोन पर टाइप करता है ]
पूरी-सब्ज़ी  खानी है बबलू को बोगी नंबर
एस-4 ॰[ट्वीट ] 

[चचा मोबाइल फोन पर ट्वीट करने का अभिनय करते
हैं मंच पर प्रकाश मंद हो जाता है ]  

  

  

[दृश्य-7] :[बोगी एस-4 में  कुछ बच्चो का ग्रुप बैठा है ,इस  ग्रूप में  20 से 24 वर्ष की आयु के लड़के -लड़कियां हैं चार लड़के और चार लड़कियां हैं ॰ ॰ किसी शोध के
छात्र हैं ] 

स्वरा :[हैडफोन कान मे है ]॰ ॰ ॰
[गुनगुनाती है ॰ ॰दुनिया बनाने वाले , किया
तेरे मन मे समाई काहे को दुनिया बनाई  ॰ [तीसरी कसम फिल्म , का ये गाना अब मुकेश की आवाज मे
मंच पर सुनाई देता है] 

मंच पर गाना बज रहा है [श्रीकांत और सबीना ,दो दूसरे छात्र छात्रा आमने सामने
बैठे हैं ] 

स्वरा:[हैड फोन रख के ]॰ ॰ चलो
सब गेट पर चलते हैं [श्रीकांत और सबीना को छोड़ बाकी
छात्रा -छात्र गेट पर जाने का अभिनय करते हैं ] 

श्रीकांत :सबीना ,अब तक अपने घर
वालो की बातों का विचार कर रही हो ।  

सबीना :[चुप रहती है] 

श्रीकांत : देखो
हम बच्चे नहीं है ॰ अगर नहीं मानेगे तो और बहुत से और रास्ते हैं  

सबीना :[चुप रहती है] 

श्रीकांत : दो लोग प्यार करें ,इसमे
बाकी को एतराज क्यो? तुम डरती हो समाज से ॰... हिम्मत नही थी सबीना तो कियों किया प्यार? ॰ इंसान
ने ही मज़हब बनाए है ॰ मैं पंडित   और तुम ख़ान  ,मेरा धर्म  हिन्दू
और तुम्हारा इस्लाम .... न तो भगवान ने मुझे हिन्दू बनाकर
भेज़ा और न तुम्हें मुसलमान ॰ ॰ वो हिन्दू का  घर है  जहां  मै पैदा हो गया जिसने मुझे श्रीकांत
बनाया और तुम्हें  सबीना ख़ान  बनाया
जिस घर मे तुम पैदा हुई  ॰ भगवान को अल्लाह को और विज्ञान को ,जिसको भी मानो सबने एक जिस्म देकर  भेज़ा है वो है हड्डी और रक्त से बना ये मास का
पुतला जिसमे रहता  है एक धड़कने वाला दिल जो
दिमाग के कहने पर एक दूसरे से दोस्ती करवाता है और फिर धर्म के ठेकेदारों  और समाज की भाषा मे उसे प्यार कहतें हैं  जबकि ॰ ॰ प्यार केवल दो लोगो के बीच आपसी समझ है
जब वो  शादी मे बदल जाता है ,तो प्रेम विवाह कहलता है और शादी के बंधन मे नहीं बंधते दो केवल दोस्त
कहलाते हैं दोस्ती में कोई विरोध नहीं लेकिन   , दो धर्मों के बीच
शादी को  समाज को स्वीकार नहीं करता हाँ पर
दो धर्म के लोग आपस मे  दोस्ती निभा सकते हैं दोस्त बना सकते है ॰
हिन्दू मुस्लिम एकता , सर्व धर्म समेल्ल्न हो सकता है और
समाज जिससे तुम डर रही हो खुलेआम एकता का नाम पर छाती ठोकता है ॰ ॰ ॰  

सबीना:[ चुप है ] 

श्रीकांत [चुप हो जाता है ] मंच पर वही गीत तेज बजने लगता है ] 

सबीना और श्रीकांत[एक दूसरे का हाथ पकड़ लेते हैं ओर अब अगल बगल
बैठ जाते हैं ,और केवल एक दूसरे को देखते जाते हैं , ट्रेन अपनी गति से चलती है ] 

सबीना : शायद
तुम सही हो ,[ नेप्थय से मंच पर गीत का लाइन ॥तू भी तो तड़पा होगा दिल को बनाके ] तुम सही रूप से शोध के छात्र हो । 

श्रीकांत :केवल मुस्कराता है ,अच्छा
तुम एक बार और  प्रयास  करो॰ भय सबसे बड़ा दुर्गुड़ है,एक बार मन मे समा गया तो समझ लो इंसान केवल अपने मरने का इंतज़ार करता है ,जीवन जीने के लिए मिला ,मिर्त्यु  के इंतज़ार के लिए नहीं ....  

सबीना :जानती हूँ ,भूल भी  नहीं सकती तुम्हें पर  बेबस भी हूँ  ,अपना भी नहीं सकती । रवीन्द्र दा, गीतांजली कि कविता
हमने एक साथ पढ़ी थी ,तब नहीं समझ पाई थी ,पर आज मेरे मानस पटल पर कोंध रही है ..... 

ऐसी शक्ति कहाँ जो ढो लूँ  

अमित तुम्हारा प्यार , 

इसीलिए दुनिया मे अपने - 

मेरे बीच अपार  

देव ,दयापूर्वक
ही तुमने  

रक्खा है व्यवधान , 

सुख के दुख के जाल घनेरे धन जन वेभव मान ।  

आड़ -ओट से
पलपल जिसकी  

दिखलाते हो झांकी  

सघन श्याम घन बीच सूर्य की रश्मि -रेख बाँकी ।  

ढोने का बल देते जिसको  

अमित प्यार का भार , 

उसके जीवन से सब पर्दा लेते तुरत उतार ।  

घर की छाया तक न छोड़ते  

धन सब लेते छीन , 

बना छोड़ते उसे भिखारी पथ का संबलहीन ।  

फिर न उसे होता लज्जा भय  

मान और अपमान , 

मात्र तुम्ही बन जाते सर्वस जग में एक निदान ।  

एक तुम्ही जिसकी आंखो का  

सपना ,दिल का
ध्यान , 

जो तुमसे ही रखता परिपूरित कर अपने प्राण ।  

सीमा कहाँ लोभ की उसके  

जिसे मिला वह भाग , 

तुम्हे बसा लेने को हिय में देता सर्वस त्याग ।  

[श्रीकांत के कंधे पर अपना सिर रखती है ,सुबकने की आवाज आती है ] 

[नेप्थय से मंच पर गीत का लाइन ॥तू भी तो तड़पा
होगा दिल को बनाके ]  

श्रीकांत :[गीतांजली की कविता पड़ता है ] 

धरे रहो धीरज मत छोड़ो  

होगी जय निश्चय ।  

फटा जा रहा सघन अंधेरा  

अरे न ,अब कुछ भय ।  

होगी जय निश्चय ।  

देख ,उधर
पूरब सुभाल में  

गहन विपिन अंतराल में  

होता शुक्र उदय ।  

अरे ,न अब
कुछ भय ।  

होगी जय निश्चय ।  

ये सारे हैं केवल निशिचर  

अविश्वास सब अपने ऊपर  

ये प्रभात के नहीं ,निराशा  

आलस और संशय ।  

दौड़ निकाल आ घर से बाहर  

देख ,हो रहा
सिर के ऊपर  

अंबर ज्योतिर्मय ।  

अरे ,न अब
कुछ भय  

होगी जय निश्चय ।  

  

[नेप्थय से मंच पर गीत की  लाइन[तू भी तो तड़पा होगा
दिल को बनाके ]बजता है ! 

धीरे -धीरे मंच पर प्रकाश बंद होता है  

  

[दृश्य-8] 

[ट्रेन के टॉइलेट के पास राजेश्वर और स्वरा एवं
अन्य दोस्त खड़े हैं ] 

टीटी :[प्रवेश करते हुए ] पता नहीं ,राहू
केतू का किया बिगाड़ा था ,सारे बुद्धिजीवी  इसी ट्रेन मे बैठे हैं ।  

स्वरा :आपका मेडिकल नहीं हुआ था?हम
खड़े हैं । आंखो का चैकप आखिरी बार कब करवाया था । 

टीटी :अभी टॉइलेट का पानी चैक किया है ,अगर घर पे ठीक ठाक पहुँच गया तो सारे शरीर का चैकप करवा लूँगा ।  

स्वरा :टॉइलेट
का पानी ..... 

राजेश्वर :टीटी साहब, कोई सीट खाली
मिली किया ,अब तो कई यात्री उतर चुके हैं ।  

टीटी :अबे यार ,शनि मत चढ़ा ,
उतरे हैं तो [गुस्से ]चढ़े
भी हैं , लगातार
चेकिंग कर रहा हूँ ,एहसान नहीं मान रहा कि वेटिंग टिकिट पर
भी उतारा नहीं ,अबकी बार पूछा तो अगले स्टेशन पर उतार दूंगा
।  

राजेश्वर :[सहम जाता है ] [तभी चाय वाला बोगी मे परवेश करता है ] 

चायवाला : चाय॰
॰  

टीटी :अबे जा यंहा से , पुसपा
दीदी बैठी हैं ,पूछ ले वरना तेरी नौकरी भी खतरे मे हो जाएगी
। 

चायवाला :चाय का बर्तन छोड़ कर वापस चला [भाग] जाता है ।  

टीटी :अबे सुन ,  

स्वरा : खाली पुसपा कह देते तो चला जाता चाय देने ,आपने दीदी जोड़ दिया ,अभी तो वो जवान है इसीलिए भाग
गया । 

टीटी : ऑन ड्यूटि मैं राजेश खन्ना नहीं बन सकता ।  

स्वरा :आपको कैसे पता ,ये राजेश
खन्ना का कॉपीराइट नाम है "पुसपा " 

टीटी :अमरप्रेम ,पचास बार देखी
है ॰ ॰ ॰ "पुष्पा आई हेट टीयर्स" ,कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम है कहना । 

स्वरा :वाह ,वॉट ए
रोमांटिक टीटी ।लव यू यार ... 

टीटी :घुस गया सारा रोमैन्स इस रेलवे की नौकरी मे .......
आप लोगो के पास टिकिट है या खाली फोकट ? 

स्वरा :कन्फ़र्म टिकिट है , हमारा
दोस्त बैठा है सीट पर देख लेना जाकर  

टीटी :अच्छा ठीक है , यहाँ खड़े
होकर यात्रा करना मना है ..... अगर कोई दुर्घटना हुई तो मेरे
टिएर्स निकाल जाएंगे , ज़िंदगी भर रेलवे की इंकावारी झेलने
पड़ेगी । तू वेटिंग टिकिट, जा टॉइलेट के अंदर घुस जा ,अगले स्टेशन पर दस लोग
चड़ेगे ,दस उतरेगें । धक्का मुक्की होगी । यात्रियो को
असुविधा का सामना न करना पड़े । समझ गया ।  

[तभी पुसपा दीदी एक अन्य औरत के साथ आती हुई
दिखती है ,  टीटी पुसपा
दीदी को देखते ही चिल्लाते  हुए बोलने लगता
है और अगली बोगी मे घुस जाता है टीटी }: सब ठीक है , सब जगह पानी भरा है , समोसे की बिक्री बंद है , टॉइलेट मे पिछवाड़ा धोने के
लिए  डिब्बे चेन से खोल दिये गए  हैं , भारतीय रेल आपकी है ,आपकी सुविधा और सुखद यात्रा हमारी ड्यूटि है ... [बोलता
...बोलता तेज़ी से निकल जाता है ]। 

स्वरा:खोपड़ी
सरकी है टीटी की ,लेकिन भाग क्यों गया । 

राजेश्वर :पुसपा दीदी आ रहीं हैं ,उनकी
तबीयत ख़राब है ।  

स्वरा: तुम
सबके नाम कैसे जानते हो ।  

राजेश्वर :जी काफी देर से यहीं खड़ा हूँ , कई बार आ चुकि हैं ,शायद पेट ख़राब हो गया है ।  

स्वरा: ठीक
है , वैसे अगर चाहो तो हमारे साथ हमारी सीट पर एडजस्ट हो
सकते हो ।हम लोग सब साथ जा रहें हैं ,शोध के छात्र एवं
छात्रा हैं । 

राजेश्वर :धन्यवाद ,अगर जरूरत महसूस
हुई तो , आप लोग कौन सीट पर हैं , 

स्वरा :एक दम लास्ट मे , 60 से  68 ,अमन ,गणेश ,लेट्स गो , चलो यार ठंड
लग रही है सीट पर चलते हैं ,वैसे भी भीड़ हो सकती है ,सुना नहीं टीटी बोल गया है । 

स्वरा:अबे कान से हैडफोन निकालो । 

[अब पुसपा दीदी टॉइलेट के पास पहुँच चुकि है ,
भगवती [महिला सहयात्री उन्हे सहारा देकर ला
रही है , हाथ मे पानी की बोतल है ] 

भगवती :दीदी ,आप इतनी कस्ट मे
हैं हम बहुत दुखी हैं [स्वरा से],ए लड़की ज़रा बगल हटो ,दीदी की तबीयत
ख़राब है ,टॉइलेट जाना है । 

स्वरा:इतना
रास्ता है ,निकल जाएँगी । 

भगवती :का
होगा दीदी इस देश का ,तड़क के जबाब दे रही है । 

पुसपा दीदी :चुपा जा भगवती ,अंदर घुसे
से पहिले टेंशन हो जाती है ,इसको तो हम बाहर निकल कर निपट
लेंगे , न जाने कब दिल्ली पहुंचेगी , ड्राईवर
बहुत धीरे चला रहा है  ट्रेन । 

राजेश्वर :जी ,टेंशन मत लीजिये ,टीटी साहब पानी चैक कर चुके हैं ।  

पुसपा दीदी:जा भगवती हम यहीं खड़े हैं देख के आ पानी आ रहा है की नहीं । 

भगवती :जी दीदी ! 

पुसपा दीदी :अरे कौनों मिस्टेक मत करना ऊपर और नीचे दोनों
नल ठीक से जाँच लेना है । 

राजेश्वर :टीटी साहब ने आपकी सुविधा के लिए निपटने के बाद
धोने वाले डिब्बे को चेन से अलग कर दिया है ।[राजेश्वर
सारी बाते गंभीर होकर ही दे रहा है ] 

भगवती :जो
अपनी आँख से देखो उसी पर बिसवास  करो ,
बाबा जी हरिद्वार वाले गीता समागम मे बोले थे ,सोलह आने सच ॰ ॰ हम तो ... 

पुसपा दीदी :बस अगर और देर करेगी तो सब यहीं हो जाएगा अंदर
चेकिंग की जरूरत नही पड़ेगी ।  

भगवती :[गुस्से मे ]दीदी ,हम नहीं बोले थे , आपकी जुबान ही तड़प रही समोसा खाने
की ,पकड़ो पानी की बोतल ,जाते हैं । [भगवती टॉइलेट मे घुस जाती है ] 

पुसपा दीदी :[मन मे बोलती है ]अगर समोसा खाने राज़ पता चल जाएगा तो ये भी संतोषी की तरह गायब हो जाएगी।  

 [थोड़ा सा असुंतलित होती है ] अरे .....  

स्वरा :[एक
दम तेजी से पुसपा दीदी को पकड़ लेती है] जी माता जी संभल
कर  

पुसपा दीदी :माता तो तू लग रही है ,अभी
20 की भी नहीं है ,पोडर लगा के कोई जवान
नहीं होता ! 

स्वरा :जी
आपके बाल सफ़ेद हैं न इसलिए थोड़ा चूक गई दीदी, [भोलेपन से ]नहीं पुसपा।  

पुसपा दीदी : सुनती नहीं टीवी पर ,बाल सफ़ेद होने  के कारण, एक ही बाबा बताते हैं ,अधिकतर सिर मे लगाने वाले तेल में हानिकारक तत्व पाये जाते हैं [भोलेपन से ]हम सालो से इस्तेमाल किए जा रहे हैं
उसी का असर है ।  

स्वरा : पुसपा
समझ गयी ,आपकी तबीयत ख़राब कैसे हो गई जब आप बालों और
खानेपीने के विज्ञापन देखकर अपडेट रहती हैं  .... 

पुसपा : [धीमे
से ] समोसा खा लिए ,जरा गड़बड़ कर दिया ॰ 

स्वरा :पुसपी, हाँ तेल -घी और आलू  में  मिलावट होती है [अचानक
॰ ॰ नाक नाक बंद कर लेती है ] ये बदबू कहाँ से आ रही है  

पुसपा दीदी :अंदर गोला छूटना शुरू गया है धाँय -धाँय ,उसी से बदबू आ रही है , [चिल्लाती है ]॰ ॰ ॰ भगवती
चेकिंग छोड़ दे अंदर बाहर तुरंत निकल , धाँय -धाँय शुरू हो चुकी है ,फोर्स बार्डर पर आ चुकी है ।  

[अंदर से भगवती की आवाज़ आती है, दीदी तनिक पोस्ट को  होल्ड करो,डटी रहो  ] 

पुसपा दीदी : नहीं कर सकते ,एक -एक सेकंड  मे गोला धाँय-धाँय छूट रहा है आ जाओ भगवती जैसा है जहां है के आधार पर छोड़ दो ...
अरे बाबा जी , अरे बिटिया  उधर वाले टॉइलेट
मे पहुंचा दो । [भोसडिकी "भगवती"
बोलती है ] 

स्वरा :आपने
मुझे बिटिया  कहा यानि मैं आपको मम्मी ,दीदी, माता जी कह सकती हूँ ।  

पुसपा दीदी:अरी तू तो हमरी बिटिया है ,चल चल जल्दी .. 

[राजेश्वर भागकर टोइलेट में घुसकर बाहर आता है ] 

राजेश्वर :जी मैंने टॉइलेट चैक कर लिया है .... 

पूसपा दीदी :हमरे हाथ मे पानी की बोतल है ,बस पहुंचा दो ।  

[ट्रेन अपनी गति से चली जा रही है  

मंच पर ट्रेन के संगीत के साथ प्रकाश धीमा होता है , स्वरा पुसपा दीदी को पकड़ कर टॉइलेट तक ले जाती
है ] 

  

[दृश्य-9] 

[मंच पर कुछ यात्री ,बैग
और पानी की बोतल आदि लेकर ट्रेन के गेट पर खड़े हैं [स्टेशन
आने वाला है ]ये यात्री ट्रेन से उतर जाने के लिए तैयार हैं ,राजेश्वर एक किनारे खड़ा है ,मंच पर प्रकाश परिकल्पना
के सहारे यात्रियों  को ट्रेन से उतरते और
चढ़ते दिखाया जा सकता है , ट्रेन रुकने का संगीत बजता है ,प्लेट- फॉर्म पर हलचल है ] 

राजेश्वर :[उतरते हुए लोगो से ],कौन
सा स्टेशन आया है , आप का सीट नंबर क्या था ।  

यात्री :[हाथ
मे कुछ फोटो हैं ]चलती ट्रेन मे टिकिट चैक नहीं हुई अब किया
करोगे पूछ के , वैसे 22 से 28 तक कन्फ़र्म टिकिट था । और ये स्टेशन मेरे गाँव का है ,35 किलोमीटर और जाना होगा ।  

राजेश्वर :आप लोग छह यात्री हो  

यात्री :टीटी
साहब ,अब उतरने दो । गाँव की आखरी बस 7 बजे के बाद नहीं जाती ,और दूसरा कोई साधन नहीं है ।
आओ ,सब लोग ,समान ठीक से उतार देना ।  

राजेश्वर :[चुपचाप ] 

  

  

  

  

  

  

  

  

  

[स्टेशन पर चाय चाय , पानी,
ठंडा पानी , रेवड़ी लो , मशहूर
रेवड़ी ,चेन चेन बेचने वाले इधर से उधर आते दिखाई देते हैं ,तभी छ :लोग जो केवल एक एक थैला लेकर और पानी कुछ
पुस्तक आदि लेकर डिब्बे मे घुसते हैं ] 

साहित्य यात्री[खैनिशंकर ]: [राजेश्वर से ],ये डिब्बा
एस-4 है ,बाहर यही लिखा है ,फिर भी कन्फ़र्म कर लेना ठीक रहता है ।  

राजेश्वर :जी आप बिलकुल सही बोगी मे प्रवेश कर रहें हैं  

साहित्य यात्री[ रमाशंकर] : अरे
वाह ! आप तो बड़ी अच्छी हिन्दी बोलते हो ,वरना देश मे तो भाषाएँ  दिव्यांग
हो रही है ,खासतौर पर हिन्दी तो लंगड़ी चाल से चल रही है ,हिन्दी दिवस और पखवाड़ा मनाकर ,सरकारी डंडे के ज़ोर पर
जिंदा रखे हैं ।बाकी जो हिन्दी बोले वो अनपढ़ ,अनाजुकटेड!
 

साहित्य यात्री[खैनिशंकर]: पंडित रमाशंकर जी , ट्रेन को दिल्ली पहुँचने मे कई घंटे लगेंगे ,देश और
दुनिया की बातों के लिए काफी समय मिलेगा- पहले अंदर सीट पकड़
लो ,वरना कन्फ़र्म टिकिट के बावजूद खड़े हुए या एडजस्ट होकर
सोना पड़ेगा । पिछली बार दिल्ली का नाश्ता मिस कर गए थे ,ट्रेन
लेट पहुंची थी ।  

साहित्य यात्री[ रमाशंकर] : खड़े
होकर जाने और कन्फ़र्म टिकेट पर सीट पर बैठ कर जाने से ट्रेन का  लेट पहुँचने से कोई तर्क समझ नहीं आता  

साहित्य यात्री [खैनिशंकर] :समालोचक की जब जरूरत होगी तब आप बोलना अभी आप
धकेल कर सीट पकड़ लो ,आदमी को पिछले अनुभव से सीखना चाहिए ,पिछले साल याद है जब पैर पर लगी थी आपके बाल्टीया से , तब आपने कौनों समालोचना नहीं करी ,सीधे गाली "भेंचो"  बकी और लेटे रहे ऊपर फट्टे पर ,मौका मिलेगा आपको
बोलने का, खुजली शांत भी तो करनी है आपकी  । साहित्य ,कविता अब
पुरातत्व विभाग के नियंत्रण मे है ,जिस तरह खंडर का रख रखाव
रखते हैं उसी तरह हिन्दी लेखन की सभी विधाएँ खंडर हो चूकी हैं पिछले दिनों ,मुगलकालीन इमारत का  किसी अमेरिकी ऑफिसर
के आगमन से पता चला वरना तो सिर्फ लालकिला ही मालूम रहे,आपको भी लालकिला ही बुलाया गया है .. 

साहित्य यात्री[ रमाशंकर]:[खाँसने
लगता है और बोलता है ],ठीक है कुछ देर बात मान लेते हैं ,लेकिन
चर्चा जारी रहेगी ब्रेक के बाद [सभी एक एक कर सीट पर जाने का अभिनय करते हैं ]साहित्य
यात्री रमाशंकर[चलते -चलते ] खैनीशंकर सही कह रहें धे आप  ,हिन्दी साहित्य
ओर हिन्दी कविता को अब कोई नहीं पढ़ता ,ये तो भला हो सरकार का
की बरसाती मेंडक की तरह ही सही , हमे साल मे दो बार दिल्ली
बुला ही लेती है ,अब तो  नोबल पुरस्कार सिनेमा के गीतो
की रचनाकारों को भी मिलने लगा है , [भीड़ का झुंड टकराता है ]चलो बड़े चलो आ जाओ दोस्तो ..  

[ट्रेन चल पड़ती है ,संगीत
बजने लगता है सभी साहित्यकार  अपनी अपनी सीट
पर बैठ जाते हैं ] 

राजेश्वर :टीटी साहब सच कह रहे थे ,सीट
खाली नहीं है ।  

[टॉइलेट के अंदर से पुसपा दीदी की  आवाज आती है , ,बिटिया
बाहेर आ रहे हैं ,] 

राजेश्वर :जी वो अपनी सीट पर चली गई हैं , मैं आपको छोड़ आऊँगा आप बाहर आ जाओ ।  

पुसपा दीदी :[बाहर आती हें ,थकी हुईं
लगती हैं] ॰ ई कमीनी भगवती अबेहीन अंदर ही है ,धोकेबाज़ ,मन शुद्ध नहीं है साली का जा रही है बाबा
जी के समागम मे किरपा लेने,मिलेगा घंटा!! ..गिरती है .  [संभाल कनहिया  ]। 

राजेश्वर :[सादगी से ] पर मैं  मथुरा का नहीं हूँ और टिकिट भी वेटिंग का है । 

पुसपा दीदी :जब आँख खुले तभी सवेरा ,[चिल्लाती है ] बंद रहो
भगवती अंदर ही  ,भगवान करे तुम्हारा पेट खराब हो ,भगवती धोकेबाज़ कहीं की ,कुतिया ॰ ॰  

भगवती [टॉइलेट के अंदर से केवल आवाज़ सुनाई देती है ]पुसपा दीदी कुतिया नहीं चूतिया कहो ,तुम छुपाई थी सबसे की समोसा खाई हो , ई तो भला हो संतोसी का जो तुम्हारा राज़ खोल दी , ले
आई दु  समोसा ,तुम
सेलफिश हो ,अकेले बाबा जी किरपा लेने के चक्कर मे थी वो भी
फ़र्स्ट चान्स मे ,रुक जाओ बातचीत से मसला सुलझा लेंगे ,लड़ाई तो आखिरी हथियार है । हम दोनों पुराने दोस्त हैं ,बातचीत हर समस्या और मतभेद सुलझाने का रास्ता है ।  

पुसपा दीदी :अभी बातचीत का माहौल नहीं है ,हम अभी बातचीत नहीं कर
सकते ,पेट मे दोनों तरफ अशांति है , ऐसे
माहौल मे संभव नहीं है समोसा खाई हो रानी ॥ तो आराम से बैठ कर आना ,हर दो मिनट मे वापस आना पड़ेगा । और हाँ नलवा पकड़े रहना वरना ट्रेन जब
स्पीड पकड़ेगी तो ,पैरवा गंदा हो सकता है । [चलो कनहिया ...... प्रकाश बंद होता है ] 

  

 दृश्य-10  

मंच पर  

[डिब्बे के अंदर ]साहित्य
यात्री इतमीनान से चर्चा कर रहें हैं ] 

साहित्यकार खैनिशंकर:  

गोपियों को अपनी लीलाओं से प्रसन करने वाले कृष्ण भगवान ,गोपियों को छोड़ अद्रश्य हो गए ,कृष्ण के अत्यंत प्रेम मे मगन ,कृष्ण को न पाकर
विचलित हो उठीं ,सभी गोपियों की अश्रुधारा बहने लगी ,नेत्रो से कृष्ण की सारी लीलाएं उनके बिना अनुभूत करने लगी उनके साथ सुंदर
वार्तालाप ,उनके आलिंगन व चुंबन को महसूस करने लगी ,कृष्ण के न होने से व्याकुल हो गई गोपियाँ जंगल मे कनहिया को पाने के लिए
हर वृक्ष से ,लताओ से पूछने लगी ।  

“हे वटवृक्ष "क्या तुमने नन्द महाराज के पुत्र को इधर
से जाते ,हँसते और मुरली बजाते देखा है । 

साहित्यकार [देवबंधु ]हम बताते हैं तथाकथित कृष्ण आजकल कारागार मे हैं
, बहुत होली खेली थी
झांसाराम और उनके शिष्यों ने , गोपियाँ ही भिजवाई जेल मे । मेरी कविताओं को  सुनने वाले  सारे श्रोता भाग गए कविता का रस छोड़ ,आश्रम
मे जा के आलिंगन ओर चुंबन की लीला सुनकर मगन हो जाते ।बाबा जी  कहते हैं  कृष्ण की लीलाओं का पाठ होगा । कुकुरमुत्ता भी
बरसात मे अपने आप उग जाता है ,लेकिन केवल बरसात मे ,लेकिन आजकल अम्मा जी ,श्री 420 महाराज ,गीता उपदेश वाचक ,तीनघंटे
मे पूरी रामलीला वाचन एवं भोगशाला मे भरमानन्द सत्संग करने और सुनानने वाले हर रोज़
पैदा हो जाते हैं ।इनहि के चलते अब न कविसम्मेलन होता है  न कोई श्रोता ही  आता है ।  

साहित्यकार खैनिशंकर: देवबंधु छ :महीने
बाद मौका मिला है कविता सुनाने का, लालकिला पर 15 अगस्त को आए रहे पिछली बार और अब 26 जनवरी है । बाकी
समय मे रोटी भी नसीब नहीं होती ,इस देश मे कवि और लेखक की
गति बकरीद के बकरे की तरह होती है , बलि से पहले खूब सजाया
जाता है ,आधी रचना तो रद्दी मे बिका गई है ।देवबंधु आज
कन्फ़र्म टिकिट भेजा है ,आपको आयोजक ने केवल अपनी फटती को !
बड़े आराम से  बैठे हो ,घुसते ही पूछे की ई डिब्बा एस-4 है न  

[व्यंग से]देखो कितना तेज़
चमक रहा है आपके माथे पर ,वरना जब तुम साइकल पर कथा वाचने अगल
-बगल वाले गाँव  मे
जाते हो   वो भी केवल पूर्णवासी को तो ,रेल के फाटक के नीचे से सईक्यिला छाती पर रखकर सर्प की भांति निकाल जाते
हो ,कहीं जजमान दूसरा पंडित न बुलाले ,समझे
ई पंडताई बहुत दिन दाल-रोटी नहीं चलाएगी ,ऑनलाइन पंडित ऑनलाइन बुक हो जाएगा । लेखन का धंधा बंद करो ,देश बदल रहा है ,तुम भी धंधा  बदल लो ।  

साहित्यकार [देवबंधु ] निकालो अपनी भड़ास,लेकिन सही कह रहे हो ,भूखे मरने से अच्छा है ,लिखना छोड़ दो सच में ,रोटी तो शिवानंद जी आरती गवा
के ही खा रहे हैं [कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति घर आवे [गाने लगता है] ,कलम के सिपाही प्रेमचंद फटे जूते
मे फोटो खिचवाए थे आपकी वाचन एवं पाठन शैली और ई नया रूप वैसे भी धर्मगुरू की तरह
है ।लालकिले पर चर्चा या कविता केवल नियम के आधार पर ही बोलनी पड़ेगी अगर मन के
मुताबिक बोलने के आज़ादी मिल जाए तो हम भी आज़ादी से पहले वाले लेख और कविता लिखने
कि योग्यता रखते हैं । अगर हम जोश मे आकार देश के हालत पर कुछ पढ़  दिये तो ....  

साहित्यकार खैनिशंकर[बीच मे ही काटते हुए ]:अगली बार अपने शहर मे टीवी पर प्रसारण  देखोगे ,नाम कट हो जाएगा
तुम्हारा ,जो दाल रोटी चल रही है चलने दो और साहित्यकार का चोला
त्याग दो , आज तक तुम्हें कोई नहीं पूछा आगे भी नहीं पूछेगा
,। लीला आगे सुनाये  

साहित्यकार [देवबंधु ] :सुनाओ आगे ,हम आपसे
सहमत हैं ,दो तिहाई बहुमत , 

साहित्यकार खैनिशंकर पूरे जोश से ]कृष्ण के संकेतो को
समझते हुए ,भीम ने जरासंध के शरीर को दो टुकड़ो मे विभाजित कर
दिया ,ज़मीन पर एक पैर ,एक जांघ ,एक अँड ,एक वक्ष ,एक भुजा [अब सीट से खड़ा हो जाता है ]एक कान और आधा चेहरा था ,जैसे ही जरासंध की मरने की
घोषणा हुई ,श्री कृष्ण, भीम को बधाई
देने के लिए आलिंगन करने लगे [हाथ फैलाकर साहित्यकार
देवबंधु  को आलिंगन करने लगता है । 

[तभी पुसपा दीदी और राजेश्वर वहाँ दिखाई पड़ती है

पुसपा दीदी :कौन किस का आलिंगन कर रहा है , अरे शर्म नहीं आती , चलती ट्रेन मे चिपक रहे हो ,वो भी दो मर्द , गे हो क्या या ऐल्जिबीटी ? जाओ भगवती टॉइलेट से निकाल गई होगी ,वहीं  करो चिपकाना और चुंबन ,।
चल रे कनहिया ,वैसे अच्छा ही हुआ हो सकता है दरबार मे बाबा
जी यही सवाल पूछ ले । कभी गे या ऐल्जिबीटी को ट्रेन मे चिपकते देखा है , झट से कह देंगे हाँ , बस कृपा शुरू ॥  

[प्रकाश बंद होता है ] 

[दृश्य-11] 

साहित्यकार [देवबंधु ] :सिर पकड़े बैठा है [ 

साहित्यकार खैनिशंकर:महाभारत मे पढ़ा था
शकुनी सम्लेंगिक था ,उसके हाव भाव
गतिविधियां भी समलेंगिक जैसी थी ,आज तक किसी ने विवाद नहीं
किया न ही विरोध बल्कि उसे कुटिल नीतीयज्ञ कहा गया! धर्म राज
युधिस्टर भी द्रोपदी को दांव पर  लगा बैठे
।  

साहित्यकार [देवबंधु ]:अरे
चुपा जाओ महाराज ,तुम्हरे चक्कर मे हर आदमी भदे इशारे कर रहा
है पूरी ट्रेन मे ख़बर फैल गयी चले थे कृष्ण की लीला का वाचन करने "न्यू स्टार्टअप " ,उ अम्मा जी तो तीन बार घूर
के जा चुकी हैं । 

साहित्यकार खैनिशंकर:चादर मुंह पर लपेट लेता है ।  

साहित्यकार दिवेदी: आप देशबंधु जी समालोचक हैं ,अब आपके पास जवलंत विषय भी है और आप इसके ख़ुद शिकार हुए हैं हम लोग आप को
सुनना चाहते हैं  और बोलने कि पूरी आज़ादी
भी है ।  

साहित्यकार देशबंधु:विषय विकार मिटाऔ ,पाप
हरो देवा , ॐ जय जगदीश हरे ,स्वामी पाप
हरो देवा ...  

[पुसपा दीदी कि आवाज़ ] वाह
कौन डिब्बे मे बाबा आए हैं चलो देखो तो सही ,आ जाओ बहनों
सत्संग हो रहा है ] 

साहित्यकार देशबंधु :[एकदम चुप हो जाता है ]ज़रा दिवेदी जी हटो ,
शौच के लिए जा रहा हूँ।[भागता है ]उसके पीछे खैनिशंकर भी भागता है ] 

[ मंच पर अंधेरा होता है ] 

 दृश्य-12][साहित्यकार
देशबंधु , साहित्यकार खैनिशंकर टॉइलेट के पास खड़े हैं जैसे
कोई चोर छुपे हुए हों ,राजेश्वर खड़ा है टीटी उससे बात कर रहा
है ] 

टीटी : कैसे हो ,अभी तक ,नहीं बनी बात ,वैसे मैं आदमी बुरा नहीं हूँ ,समझ सकता हूँ तुम्हारी परेशानी ,मेरी इस बोगी मे एक
सीट है जो टीटी के लिए रहती है पैंट्री कार के पास ,मेरे
सोने के लिए या कह सकते हो रात को जब सारी बोगी के पैसेंजर सो जाते हैं तो मैं उस
पर बैठ कर अपने शरीर को थोड़ा आराम दे सकता हूँ । तुम सीधे साधे  लगते हो , परेशानी क्या है ? मैं नहीं जनता लेकिन यकीन से कह सकता हूँ बहुत सच्चे इंसान हो । हो सकता
है ,तुमने अब तक ना जाने मेरे बारे मे कितने अनुमान लगा लिए
होंगे ,मैं भ्रष्ट
कर्मचारी हूँ , ज्यादा पैसे लेकर औरों को टिकिट दे रहा हुंगा
,सरकारी लोग ....  

राजेश्वर :[उसकी बात को काटते हुए ] मैंने
कुछ नहीं सोचा ,बस मथुरा पहुँचना है यही सोच रहा हूँ ।मुझे यहीं
बैठ कर ,ज़मीन पर ,बस इसी ट्रेन मे जाने
दीजिएगा [पानी की बोतल से पानी पीता है ]। 

टीटी :नहीं
सोचा कुछ भी नहीं सोचा  ,बड़े अदभूत  दमी हो। तुम चाहो तो
बैठ सकते हो ।  

राजेश्वर :आप थक गए होगें ,जाइए जब
तक अगला स्टेशन आता है तब तक ,आप आराम कर लीजिये । मैं पुसपा
दीदी को संभाल लूँगा उनकी तबीयत अब ठीक लगती है ।  

टीटी :नहीं
पुसपा जी का कोई कसूर नहीं है ,आदमी आज के दौर मे परेशानी के
सिवा कुछ नहीं पाता । दो जून की रोटी ,रहने को एक घोसला और
बच्चों की खुशी ,बस इसी के लिए भागम- भाग
है । जीवन जब अत्यंत मुश्किल हो जाता है तो इंसान बुत तो नहीं बना रह सकता,
मूर्ति हमेशा खामोश रहती है क्योकि पत्थर की होती है न उसके अंदर
मस्तिक होता है जो परेशान हो सके ,दिल भी  नहीं होता  जो धड़कता हो ,रक्त भी नहीं
जो बहता हो दरअसल पत्थर से बनी चीज़ को आग केवल बदरंग कर सकती है ,हवा के थपेड़े उसे हिला नहीं सकते , नभ से पानी कितना
भी बसर जाए पत्थर ही  केवल खामोश रहकर सब
सह सकता है जीवित इंसान नहीं !! पुसपा जी की का  गुस्सा, मुझे ज़रा भी बुरा
नहीं लगा,इस टीटी की नौकरी ने ज़िंदगी से लड़ना सीखा दिया ,अब लोगो के गुस्से को सहज ही लेता हूँ । जानते हो ,इस
ट्रेन की हर बोगी के कंपार्ट्मेंट मे खिडिकियाँ हैं ,सालों
से लोग इसमे बैठते हैं ,कन्फ़र्म टिकिट और वेटिंग टिकिट कई
बार बिना टिकिट भी ,हर रोज़ अलग -अलग
शहरों से गाँव से ,यात्री यात्रा करते हैं ,बिलकुल एक दूसरे से अंजान ,लेकिन चंद मिंटो मे ऐसे
बाते करने लगते हैं जैसे बरसो से एक दूसरे को जानते हैं । लेकिन बात केवल एक ही होती
है और विषय होता है परेशानी ,चाहे उनकी  परेशानी का कारण अलग हो पर कारण मानवीय ही होता
है ,जिजीविषा ,बस लड़ना सिखाती है । कभी
कभार मस्त स्कूली बच्चे टोली मे आते हैं बस तब लगता है जीवन मे आनंद ही आनंद है ।
उनकी मासूम मुस्कान ,एक दूसरे को परेशान करना ,फिर परेशानी देखकर हँसना कभी ऊपर कूदना कभी खिड़की से बाहर देखकर ज़ोर -ज़ोर से चिल्लाना । तभी उनकी टीचर जी का डांटना ,बच्चे
कुछ पल के लिए एकदम चुप ,फिर फुसफुसाहट और ज़ोर से विद्रोह
करना ,बस छुक छुक चलती ट्रेन का मज़ा लेना ,इस ट्रेन की हर बोगी के कंपार्ट्मेंट मे खिडिकियाँ हैं,वो ऐसी हैं जो सबकी परेशानी  सुनती
हैं और आर -पार बहने वाली बयार के साथ उड़ा देती है सफर में
तो सुकून दिलाती है ,कभी मस्तों का झुंड और कभी गमगीन चेहरे
।  

राजेश्वर :आप पानी पिएंगे ।  

टीटी : नहीं , तुम चाहो तो  

[देशबंधु , खैनिशंकर अब
थोड़ा सहज लग रहे हैं ,बातों मे रुचि ले रहे हैं केवल
भावभंगिमा से अभिनय कर रहे हैं ] 

देशबंधु , खैनिशंकर एक साथ : टीटी साहब , अबकी बार भर्ती कब होगी ।  

टीटी : जी आपकी उम्र के लोग
टीटी की भर्ती के लिए शायद एलीजीबल न हों ,फिर भी आप
विज्ञापन देखते रहिएगा ।  

साहित्यकार देशबंधु: आजकल तो अखबारों मे
केवल नूर बाबा बंगाली ,मिले हर रविवार ,आपकी हर समस्या का समाधान ,भूतप्रेत ,गृह कलेश ,शौतन ,वशीकरण ,प्यार मे धोखा सबका एक इलाज़ ,मिले , खटिया पुल के नीचे ।  

साहित्यकार खैनिशंकर:जी ,हर पन्ने पर एक ही बात स्वामी जोपुरी आश्रम मे
निशुल्क योग परशिक्षन ,सवेरे 4.00 बजे ,कठोरनिषद पर सत्संग प्रवचन ,अखंड रामायण , टीटी साहब हमारे जमाने मे केवल लेख छपते थे अब  हर पृष्ठ पर एक ख़बर होती है और तीन विज्ञापन वो
भी आपतिजनक चित्रो के साथ ,जवानी मे जोश भरे कैप्सुल का विज्ञापन । अब बताओ घोड़े के चित्र के साथ ,कैप्सुल के नीचे लिखा जाना ,जवानी और जोश ताकत के
लिए प्रयोग करें ,सोने से एक घंटा पहले ,रात को शांति से सोना चाहता है थका हारा मानुष फिर जोश की क्या जरूरत है
रात को । ये सरासर दिव्यर्थी है एवं समाज को पतन के लिए प्रेरित करता है, उकसाता है । 

साहित्यकार देशबंधु  :बस महाराज-बस बंद करो
सेक्सप्रेरित संगोस्ठी आप और मैं सही होते हुए भी गलत साबित हुए । हमने जरासंध की
मिर्त्यु की सूचना मिलते ही [खैनिशंकर आलिंगन करने लगता है ]भीम और कृष्ण बनकर का आलिंगन किया ,और तबसे पूरी
बोगी घूर रही है कोई गे कोई एल्जिबीटी  बेंचों
सूर्पनखा बनाई डाले केहत रहे सोच बदलो ,धंधा बदलो ।
सकारात्मक सोच ही विकास ला सकता है बदलाव जरूरी है । 

टीटी :जी हाँ ,ये केवल अब राजनीतिक पार्टी और नेताओं के पास है ,यदि
बाढ़  के पानी से लोग बेहाल सरकार से भोजन
की गुहार लगाते हैं तो नेता जी भोजन तो नहीं देते पर लोगो को यही समझाते हैं तुम
लोग बुड्बक हो गंगा जी तुमहरे घर ख़ुद चल के आई हैं ,कितने
भाग्यशाली हो ,उपवास रखो और स्वागत करो बाढ़  का । ये सकारात्मक सोच है लोग भी बरसो से सहमत
हैं । 

[ तभी पुसपा जी आती दिखाई देती हैं ,साहित्यकार देशबंधु,साहित्यकार खैनिशंकर दोनों मुह
पर हाथ रख भाग जाते हैं ,टीटी तुरंत पानी की बोतल हाथ मे ले
लेता है ,राजेश्वर के चेहरे पर हल्की मुस्कान है ,धीरे -धीरे ज़मीन पर बैठ जाता है , मंच पर अंधेरा होता है ] 

  

  

  

  

  

दृश्य -13 

[ट्रेन मे यात्री सो चुके हैं ,कुछ के हाथ मे समान है और गेट पर खड़े हैं ,अचानक
ट्रेन रुकने लगती है ,[संगीत के माध्यम से ट्रेन रुकने की
आवाज़ आती है ] 

राजेश्वर :खड़ा होता है [खड़े यात्री जल्दी जल्दी उतर जाते हैं ] 

राजेश्वर :आप लोग ,क्यों
उतर रहे हैं ये तो कोई स्टेशन नहीं है ,शायद आगे सिग्नल नहीं
,मिला है ,अभी स्टेशन दो घंटे दूर है [टीटी का प्रवेश ] 

टीटी :चैन पुलिंग हुई है ,हर
रोज़  होती है ,ये लोग 60 किलोमीटर
दूर रहते हैं ,पास मे ही गाँव है इन लोगो का अगले स्टेशन पर
उतर के आने मे सात घंटे वापस आने मे लगेंगे । कुछ देर मे यह अपने घर पंहुंच
जायेंगे ।  

[तभी दो तीन जवान टॉर्च लेकर आते हैं ] 

जवान :, टीटी साहब शायद चेन पुलिंग हुई है ,फिर भी ड्यूटि करनी पड़ेगी "इटारसी"
स्टेशन है अगला ,गार्ड साहब को इतला देनी पड़ेगी ट्रेन रुकी है ,अगले
स्टेशन पर सूचना भेजनी पड़ेगी ,वरना दुर्घटना हो सकती है ।  

टीटी :हाँ .[..राजेश्वर से ]20 मिनट लग सकते हैं ...तभी [साहित्य कारो की टोली भी आ जाती है ] 

साहित्यकारखैनीकर:क्या हुआ  

टीटी :चेन
पुलिंग  , 20 मिनट लग सकते हैं ।  

साहित्यकार देशबंधु और साहित्यकार दिवेदी :नाश्ता
फिर गया इस साल ,किया हम लोग नीचे उतर
कर थोड़ा खड़े हो जाए ,अंधेरा है पर चाँद की रोशनी मे धरा नहाई
हुई है ,आ जाओ कवि महाराज थोड़ा दम भर लें ।  

[तीनों
नीचे उतर जाते हैं ] 

साहित्यकार खेनिशंकर :बस टाईन टाइन फिस :नसता गइल  

साहित्यकार दिवेदी :किसी तरह लंच तक पनहुच जाये दिल्ली ,कम से कम सूप तो मिलेगा पीने को ,बड़ा मज़ा आता है ,
दाल मखनी, रोटी नान ।  

साहित्यकारदेशबंधु :लेकिन पिछली बार बहुत तमाशा किए थे आप ,कवि लोग तो शांत थे पर सरकारी अधिकारी और आयोजक बहुत घूरे थे आपको ,प्लेट मे एक बार मे सब भर लिए थे आप ,और फिर चम्मच
और कांटा अइसे चलाये जैसे ,पानीपत का युद्ध , किसी का कोट ख़राब किया किसी का पतलून और संचालक का तो सिल्क का कुर्ता ,चारो तरफ चावल ही चावल फैला दिये ,चावल के दाने अइसे
पड़े थे जैसे ,सैनिक सीमा पर शहीद हो रहे हो ,और कौनों पूछने वाला नहीं ।  

साहित्यकारदिवेदी :[शरमा के ] पहली बार ,शामिल हुए थे ,बर्तन
और खाना देख काबू नहीं कर पाये ,इसलिए तैश मे आ गए थे ।
गपागप भरते गए "जो चावल के दाने शहादत प्राप्त किए "उनको हम देश के किसानों की ओर  से
और अपनी तरफ से श्र्द्धांजली तुरंत दिये ,हम एक भी चावल से नहीं पूछे के तुम बासमती हो की परमल ,सबको एक ही सम्मान
दिये ! किए कौनों राजनीति, ,हाँ जो आयोजन मे शामिल
होने के लिए पैसा [मानदेय ]मिला था वो नहीं मिले ,संचालक कुर्ता ड्राईक्लीन की खर्चा के नाम पेमेंट मे से काट
लिया था ,खाली स्मृति चिन्ह घर लाये ।यही शहीदों के परिवार के साथ होता
है , केवल स्मृति चिन्ह और पैसा ठन -ठन गोपाल !! 

साहित्यकारदेशबंधु :अबकी तेजी मत दिखाना ,और
भीड़ से अलग होकर खाना ,खासतौर पर आयोजक और संचालक से ,वरना आखिरी समारोह समझो ।अगर मै सही सोच रहा हूँ तो ये आखरी तो हम सबका है
, अगली बार उम्मीद नहीं है की आयोजन भी होगा ।होगा तो कवि और
साहित्यकार नहीं होंगे -होंगे नेताजी और अभिनेता जी ! 

साहित्यकारखैनिशंकर :दिल मत बैठाओ ,ई निष्कर्ष
कैसे निकाल लिए , अभी तो हम खर्चा करके नया जबड़ा बनवाए हैं ,ताकी हर समारोह मे नान चबाने मे दिक्कत न हो , पिछले
आयोजित भोज मे बट्टर नान बहुत स्वादिस्ट था पर चबा नहीं पाये थे । जबड़ा जेब से
निकालकर दिखाता है पूरे बतीश दाँत हैं । तुम अच्छे समालोचक नहीं हो । दहशतगरदी
फैलाना जुर्म है हमारी एकता को खतरा है ।  

साहित्यकारदेशबंधु :देखो खैनी ,अख़बार वालो का
भट्टा टीवी चैनल ने बैठा दिया है ,सुबह जब अखबार पर नज़र पड़ती
है तो ,सारी खबर बासी लगती है ,समझ गए ,पूरी रात चौबीस घंटे रिपोर्टर पल पल की खबर दिखाते हैं ,सब कुछ रात ही को पता रहता है ,वो भी सचित्र बोलते
हुए ।अखबार का बाकी पन्ना खून खराबा ,राशिफल ,योगनिदान ,खेल के गली मोहले की खबर से भरे रहते हैं
। रविवार को एक पेज पर कुछ कविता और लेख पड़ने को मिलते थे  वो भी अब हेरोइन की जन्मदिन की पार्टी ,खान साहब के बालों का नया स्टाइल के चित्रो से भरा रेहता है । 100 खबरें ,100 सेकंड मे , चैनल
दिखाता है ,मार पिटाई ,चाकू चोरी ,छेड़छाड़ थाना कोतवाली ,लगता है देश नहीं चंबल के डाकू
सब जगह फैल गए हैं। रात मे पंडित जी आपकी कुंडली पढ़ने  लगते हैं वो भी लैपटाप लेकर । बाकी बचे समय मे
कॉमेडी शो वो  भी नेशनल न्यूज़ का हिस्सा
होता है , जबल शर्मा का शो , चुम्मा
लेती अम्मा, दादी माँ का प्यार, वासना
से भरपूर भावभंगिमा , ,हर कार्यकर्म मे लोंडा नाच होता है ,उसे लोग देखकर हंस हंस कार पगला जाते हैं ।यही है आज के नवयुवक और बदलते
समाज की मांग । प्रेमचंद की कहानियाँ ,मधुशाला ,मैयाला आंचल, जयशंकर प्रसाद , महाश्वेता
देवी ,कृषणा सोबती ,मोहन राकेश ,
मैथलीशरण जी ,हरीशंकर परसाई ,शरद जोशी ,आज़ादी के तराने लिखने वाले लेखक ,अब सिर्फ पुस्तकलय की शोभा बढ़ाते  हैं । भगवत गीता का अलग -अलग
तरह से पाठ करके बाबा लोग दुकान खोल दिये ,जबकि गीता का
उपदेश साशवत सच है और उसके साथ कोई प्रयोग नहीं किया जा सकता ,फिर भी रोज़ नया वाचक पैदा होता है ।  

साहित्यकारखैनिशंकरसाहित्यकारदेशबंधु
,कोई और रास्ता है बचा है क्या ।  

देशबंधु :नहीं
लुप्त प्रजाति की लिस्ट मे लेखक का नाम शामिल करवा लो शायद पेंशन मिलने लगेगी । 

[तभी ट्रेन की सीटी बजती है ] तीनों ट्रेन मे वापस चड़ जाते हैं ,ट्रेन चलने लगती
है ]  

[तीनों वही गेट पर खड़े
रहते हैं ,टीटी और राजेश्वर भी
वहीं है ] 

टीटी :राजेश्वर तुम काफी देर से खड़े हो अगला स्टेशन छोटा है ,ट्रेन दो  मिनट रुकेगी ,उसके बाद मथुरा रुकेगी ,तुम्हें वहीं उतरना है न । 

राजेश्वर :जी  

टीटी :तुम सब सुन रहे हो ,कोई अपने विचार नहीं
हैं ,थोड़ा टाइम पास हो जाता ,वहीं के रहने वाले हो । 

राजेश्वर :जी नहीं , 

टीटी :तो फिर गोवेर्धन जी
दर्शन और परिक्रमा  के लिए जा रहे हो ,वो तो तुम टिकिट
कन्फ़र्म करा कर इतमीनान से जा सकते थे फिर वेटिंग टिकिट सारी रात आंखो मे निकाल दी
,बड़े कृषण भक्त लगते हो ।  

राजेश्वर :जी आप बिलकुल गलत सोच
रहे हैं ।  

टीटी :भाई ,तुम ही बता दो ,बस थोड़ी देर  मे मथुरा जंक्शन पर ट्रेन रुकेगी ,उसके बाद दिल्ली ।  

राजेश्वर :मैं आपका शुक्रयादा
करना चाहता हूँ आपने मुझे वेटिंग टिकिट पर यात्रा करने की अनुमति दी ।  

टीटी :अबे दोस्त ,अब तो स्टेशन आने ही
वाला है ,बता तो जा! न तू
मथुरा का है ,न कृष्ण जी का भक्त ,हाथ मे थैला और पानी की बोतल ,इसीलिए शादी मे भी नहीं जा रहा ,
मथुरा मे कोई सरकारी नौकरी की गुंजाइस
भी नहीं है ,..... 

राजेश्वर :मत करिए इतना आकलन ,
दरअसल अपनी बुआ जी के घर जा रहा हूँ ,कल खबर मिली थी ,सीमा पर बुआ जी लड़का
केवल तेईस  वर्ष का
था ,दुश्मन की गोली से मारा गया है ,आज सुबह उसकी लाश गाँव
पहुंचेगी ,गाँव वाले इकक्ठे होंगें , बुआ जी के परिवार मे सब सेना मे ही नौकरी करते थे  ,
क्योंकि दादा जी ने आज़ादी की लड़ाई मे
भाग लिया था ,उनही ने घर मे आज़ादी के संघर्ष की गुमनाम कहानियाँ  सुनाई जो इतिहास के पन्नो मे कहीं दर्ज़ नहीं है,जो नाम किताबों मे हैं
ओ सभी आज़ादी की लड़ाई के अगुआ थे उनकी कुर्बानी सब जानते हैं लेकिन ऐसे कई नाम है
जिनकी कुर्बानी के बिना आज़ादी संभव ही नहीं थी वो और उनके परिवार अब भी गुमनाम हैं
न ही किसी को जानने की फुर्सत और दिलचस्पी है ,चंद लोग इस आज़ादी का आनंद मना रहें ,गोरी सरकार का शासन
खत्म हो गया। हमने बेखोफ अँग्रेजी सरकार से लड़ाई लड़ी ,इसलिए क्योंकि वो अपने
बंधु बांधव  नहीं थे ,अब लड़ना मुश्किल है क्योंकि सब अब अपने बंधु
बांधव हैं , जब अपने
हक़ के लिए अर्जुन को महाभारत मे अपनों से युद्ध करना पड़ा तो उनका गाँडीव भी नहीं उठा ,वो धनुर्धर पर्तंचाया
नहीं चड़ा पाया ,पर उस महाभारत के युद्ध मे कृषण जैसे सारथी थे जिन्होंने अन्याय
के विरुद्ध  लड़ाई का धर्मज्ञान  दिया स्वयम से लड़ना बड़ा कठिन है ,हम किस्से लड़े सब अपने
हैं नहीं है तो सारथी ॰ 

आज सिर्फ तंत्र बदला है देश चलाने वाले अब अंग्रेज़ नहीं भारतीय
हैं दादा जी बताते हैं उस जामने मे गुलामी थी पर खेत लहलाते थे ,चरखा और कपड़ा बुनेने
की खड्डी चलती थी ,मिट्टी मे सुंगंध थी बगीचे फूलों से भरे थे आम के पेड़ पर बौर
आते ही कोयल कुंकती भी थी पपीहा गाता था ,होली भी थी और ईद भी ,दिवाली भी थी और मोहरम भी था देश के आज़ाद होते ही ,दो टुकड़े हो गए भारत
की आज़ादी मे लड़ने वाले हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी हो गए ,नदिया बंट गई पर्वत बंट
गए लेकिन दोनों तरफ रगों मे दोड्ने वाला
रक्त अब भी लाल है । दादा जी जब हालत पर विचार करते तो हमे यही सिखाते जीवन मे जो
जैसा  करेगा वो उसका खुद जिम्मेदार होगा
तुम लोग आदर्शों व वसूल  पर चलना,अनुशासन ही सफलता और
शांति का रास्ता है ,इसलिए वसूल हमारी परिवार की धरोवर है, ,इसलिए मै वेटिंग टिकिट
पर खड़े -खड़े ही सफर करता रहा ,नई पीड़ी का हूँ सब
समझता और जानता हूँ । हमने बदलने का फैसला
कर लिया और इस देश की संस्कृति ,साहित्य और इतिहास को दर किनार कर दिया तो ,हम मानचित्र से गायब
हो जाएंगे । बदलाव जरूरी है ,नई तकनीक विकास मे सहायक जरूर है लेकिन परंपरा को और इतिहास के
भूलने की कीमत पर नहीं ।लड़ाई अब भी जारी है "मानसिक गुलामी से पश्चिमी नकल से " ,जब तक ये मानसिक
गुलामी नहीं टूटेगी तब तक आज़ादी के कोई मायेने नहीं है ,रात लंबी कभी नहीं
होती ,सूरज उदय सुबह ज़रूर होता है । लंबी होती है अज्ञानता ,भोर का अंधेरा कभी
भयभीत नहीं करता क्योंकि उम्मीद होती है कुछ ही पल मे उजाला हो जाएगा ।एक दीपक
जलता है तो प्रकाश देता है ,ज्ञान की एक रोशनी जीवन को बदल  देती है । भौतिक वस्तु और नशा कुछ पल सकुन दे
सकते हैं ,किन्तु संतोष जीवन के अंत तक  खुशी देते हैं ,मंजिल और इक्छाऔ का अंत तभी संभव है जब वयक्ति एक पड़ाव के बाद
अगली महत्वकांछा का त्याग  कर दे । मैं ये
जानता हूँ ,मेरे पहुँचने तक ,पंचायत ,सरकारी अधिकारी ,विधायक फूलमाला लेकर  वादों
ओर जलूस की तैयारी कर रहे होंगे ,मरने वाला शहीद की श्रेणी मे आएगा या नहीं इस पर बहस  होगी ,और नारे लगाने  और
घड़ियाली आँसू बहाने वाले ज्यादा होंगे । जबकि सच्चाई ये है बुआ जी एक टूटे हुए घर
मे पिछले आठ बरस से अकेली रह रहीं हैं फूफा जी की मौत भी सेना मे रहकर आतंकवादियों
से लड़ते हुई थी ! उनका ये आखिरी लड़का था ,मैं उनका भतीजा हूँ ,दाह संस्कार मै ही करूंगा ,वापसी में  मैं कन्फ़र्म
टिकिट लेकर ट्रेन मे बैठूँगा क्योंकि बुआ जी को साथ अपने घर ले जाऊंगा ...ट्रेन की गति धीरे हो
रही है । जी मथुरा स्टेशन आ रहा है [राजेश्वर गेट पर उतरने के लिए खड़ा है ] 

प्रकाश मंद होता जाता है ,ट्रेन
रुकने की आवाज़ आने लगती है ] 

[नाटक समाप्त होता है ] 

  

  

  

  

  

  

  

  

  

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