सोचा था जिंदगी चलेगी रफ्तार से,जैसे मक्खन पिघलता है गर्म रोटी पे; वक़्त के साथ साथ मायने बदलते गए,जिंदगी फूलों को देख चल दी कांटों पे।हर सिक्के
मेरे प्यारे दोस्तों, या यूँ कहूं कि मेरे दसवीं , बारहवीं और प्रतियोगी परीक्षा के अचयनित दोस्तों। ये लेख विर्निदिष्टतः आपके सब के लिए ही लिख रहा हूँ जो किसी परीक्षा में विफल हो जाने पर आत्महत्या जैसे बेतुके विचारो को अपने मष्तिष्क द्वारा आमंत्रित करते है। और क