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विषय- आत्मिक बीमारी .

29 अगस्त 2023

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12-यह सुनकर यीशु ने उस से कहा वैध भले चगों के लिए नहीं परंतु बीमारों के लिए आवश्यक है !

12-यह सुनकर यीशु ने उस से कहा वैध भले चगों के लिए नहीं परंतु बीमारों के लिए आवश्यक है !12-यह सुनकर यीशु ने उस से कहा वैध भले चगों के लिए नहीं परंतु बीमारों के लिए आवश्यक है !

13- इसलिए जाकर तुम इसका अर्थ सीख लो मैं बलिदान से नहीं पर दया चाहता हूं क्योंकि मैं धर्मी को नहीं पापियों को बचाने आया हूं!

(मत्ती 9: 12-13)


जी हां मित्रों आज हमारे सामने दो तरह के संसार हैं आत्मिक संसार और भौतिक संसार आत्मिक अदृश्य भौतिक यानी प्रकट रूप में इसी तरह बीमारी भी दो प्रकार की होती हैं आत्मिक अदृश्य शारीरिक प्रकट शारीरिक बीमारी के लिए डॉक्टर है परंतु आत्मिक बीमारियों के लिए परमेश्वर है क्योंकि परमेश्वर आत्मा है शैतान भी आत्मा है परमेश्वर जीवन देने आया था शैतान उस जीवन को नष्ट करने आया इसीलिए शैतान हमारी आत्मा को नष्ट करने के लिए आत्मिक बीमारी देता है इसलिए हमारा मल युद्ध आत्मिक शक्तियों और उसकी प्रधानताओं हैं!


 (इफिसियों 6:12)

शारीरिक बीमारी तो आपको पता चल जाती है परंतु आत्मिक बीमारी कब आपको लग जाए आपको पता ही नहीं चलता आत्मिक बिमारी उन लोगों को ज्यादा होती है जो बहुत ज्यादा धर्मी और ज्ञानवान होते हैं क्योंकि वह शैतान के निशाने पर होते हैं!


1- आत्मिक घाव- यह बीमारी ज्यादातर विशवासियों में पाई जाती है जो कि सीधे आत्मा को घायल करती है मित्रों जब एक संसारिक व्यक्ति यीशु के पास आता है अपनी संसारिक अभिलाषाओं के साथ उनकी पूर्ति के लिए आता है और यीशु पर विश्वास करता है और अपनी आत्मा प्राण और शरीर यीशु को सौपता  है परंतु वह यीशु के वचनों पर नहीं चल पाता अपने मन को नहीं फिरा पाता और शारीरिक अभिलाषाओं को नहीं छोड़ता और उसकी शारीरिक और सांसारिक आवश्यकताओं की पूर्ति यीशु के पास आकर भी नहीं होती तो वह वह व्यक्ति अपनी आत्मा पर कुड़कुड़ाता है!


 जैसे इजराइली मिस्र से जंगल के मार्ग पर कुड़कुड़ाया करते थे और अपनी आत्मा को दोषी ठहरा रहै थें  और मसीह जीवन उसके लिए ठोकर का कारण बन गया था इसीलिए वह कहते थे  इससे अच्छा तो हम मिस्र में थे क्योंकि वह पाप नहीं छोड़ पाए थे वे शरीर रूप से तो जरूर मिस्र छोड़कर निकल आए थे परंतु अपनी आत्मा को मिस्र में ही छोड़ रखा था उनकी आत्मा आज भी शारीरिक अभिलाषा और पाप में डूबी थी और इसीलिए वह दो नांव पर सवार  थे!


और जो व्यक्ति दो नांव पर पैर रखता है उसकी नाव डूबने तय है और आज भी ज्यादातर विश वासियों का जीवन दो नाव पर है उनका शरीर तो यीशु मसीह के पास रहता है पर आत्मा संसार में लिप्त रहती है और इसीलिए उनकी आत्मा आज भी घायल है इसीलिए बहुतों का जीवन निराशा भरा हताशा भरा होता है!



12-यह सुनकर यीशु ने उस से कहा वैध भले चगों के लिए नहीं परंतु बीमारों के लिए आवश्यक है !

12-यह सुनकर यीशु ने उस से कहा वैध भले चगों के लिए नहीं परंतु बीमारों के लिए आवश्यक है !12-यह सुनकर यीशु ने उस से कहा वैध भले चगों के लिए नहीं परंतु बीमारों के लिए आवश्यक है !

13- इसलिए जाकर तुम इसका अर्थ सीख लो मैं बलिदान से नहीं पर दया चाहता हूं क्योंकि मैं धर्मी को नहीं पापियों को बचाने आया हूं!

(मत्ती 9: 12-13)


 मित्रों पिछली बार मैंने आपको आत्मिक घाव के बारे में बताया जब किसी विश्वासी कि आत्मा मन न फिरा पाने परमेश्वर के वचन पर न चल पाने  के कारण घायल होती है उस व्यक्ति का जीवन नरकीय हो जाता है और वह   व्यक्ति किसी काम का नहीं रहता अंधकार उसके जीवन का हिस्सा बन जाता है और वह सदा उदासीनता और अंधकार के साए में जीता रहता है क्योंकि वह अपने उद्धार को देखी नहीं पाता!


 एसाव की तरह जिसने लालच के चक्कर अपने पहलाऊठे होने का अधिकार  खो दिया और फिर जीवन भर रोता रहा!

(उत्पत्ति 25 :27-34)


2- हताशा और निराशा-


मित्रों एक उद्धार प्राप्त व्यक्ति जब मन नहीं फिरा पाता पापों से तौबा नहीं कर पाता और उद्धार पाने के बाद भी पाप में बना रहता है तो उसकी पिछली दशा से भी ज्यादा वर्तमान दशा खराब हो जाती है और जीवन नरकीय बन जाता है! 


(मत्ती 12:4345 )

जब अशुद्ध आत्मा मनुष्य में से निकल जाती है, तो सूखी जगहों में विश्राम ढूंढ़ती फिरती है, और पाती नहीं। तब कहती है, कि मैं अपने उसी घर में जहां से निकली थी, लौट जाऊंगी, और आकर उसे सूना, झाड़ा-बुहारा और सजा सजाया पाती है। तब वह जाकर अपने से और बुरी सात आत्माओं को अपने साथ ले आती है, और वे उस में पैठकर वहां वास करती है, और उस मनुष्य की पिछली दशा पहिले से भी बुरी हो जाती है; इस युग के बुरे लोगों की दशा भी ऐसी ही होगी।


दुष्ट आत्मा रिटर्न यह बड़ी गंभीर बात है मित्रों यदि किसी विश्वासी के जीवन में दुष्ट आत्मा  रिटर्न आ जाएं उस व्यक्ति का जीवन नरकीए हो जाता है उसके मन में चिंता डर भय और  सुसाइड करने के ख्याल आने लगते हैं क्योंकि आत्मा मर चुकी होती है और वह व्यक्ति मरी हुई दशा के सम्मान में जीने लगता है!


उसकी आशीषें जाती रहती है उसका आनंद जाता रहता है उसकी खुशियां जाती रहती हैं वह समाज से अलग होने लगता है और अन्धकार के जाल में  फंसता चला जाता है और अपने आप में अकेलापन महसूस करने लगता है चर्च व कलीसिया से अलग हो जाता है और उसका मन परमेश्वर से अलग होने लगता है!

उसकी सारी बरकतें खत्म होने लगती हैं और वो व्यक्ति कंगाल के समान हो जाता है!


(नीति वचन 18:14) 

छंरोग में मनुष्य अपनी आत्मा से संभालता है परंतु जब आत्मा हार जाती हैं तब कौन सह सकता है

(नीति वचन 14:14)

जिसका मन ईश्वर की ओर से हट जाता है वह अपनी चाल चलन का फल भोगता है!


मरे हुए को जिलाने में और घायल आत्मा को मरहम लगाने का काम एक ही कर सकता है और वह स्वयं परमेश्वर का वचन और परमेश्वर परंतु यह तभी संभव है जब मनुष्य सच्चे हृदय से पश्चाताप करें और अपने पापों को माने और छोड़ दें!


मैं तेरा इलाज करके तेरे घावों को चंगा करूंगा यहोवा कि यह वाणी है क्योंकि तेरा नाम ठुकराई हुई पड़ा है वह तो सिय्योन है उसकी चिंता कौन करता है!

(भजन संहिता 147:3)

वाह खेदित मन वालों को चंगा करता है और उनके शोक पर मरहम पट्टी बन्धता है!




मित्रों पिछली बार मैंने आपको आत्मिक घाव और हताशा और निराशा के बारे में बताया जब किसी विश्वासी कि आत्मा मन न फिरा पाने परमेश्वर के वचन पर न चल पाने  के कारण घायल होती है उस व्यक्ति का जीवन नरकीय हो जाता है और वह   व्यक्ति किसी काम का नहीं रहता अंधकार उसके जीवन का हिस्सा बन जाता है और वह सदा उदासीनता और अंधकार के साए में जीता रहता है क्योंकि वह अपने उद्धार को देखी नहीं पाता!

3-: मनोरोग
मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है? मैं यहोवा मन की खोजता और हृदय को जांचता हूँ ताकि प्रत्येक जन को उसकी चाल-चलन के अनुसार अर्थात उसके कामों का फल दूं।

(यिर्मयाह 17:9-10)
जी हां मित्रों मनोरोग एक भयानक रोग है क्योंकि यह दिखाई नहीं देता है लेकिन यह बहुत गहरा होता है और आपकी आत्मा पर सीधे घायल करता है और आपके मन पर वार करता है और जिसको मनोरोग हो जाए उसे कोई डॉक्टर चंगा नहीं कर पाता!

मनोरोग एक तरह का आत्मिक रोग है जो आपके मन में उठने वाले विचारों में होता है इस तरह के विचार जो हमारे मनों में आते हैं लेकिन हम उन्हें बाहरी रूप से प्रकट नहीं कर पाते या जैसे कि आपके अंदर उठने वाले व्यभिचार के विचार. लालच के विचार. गंदी भावना. है जिनको हम समाज परिवार वाह दोस्तों के सामने प्रकट नहीं कर पाते और उसे अपने मन में ही हम रखते हैं और ऐसे व्यक्ति के मन अशुद्ध हो जाते हैं!

और ज्यादा समय तक मन में  रखने के कारण से यह आपके मन पर आपके दिमाग पर आपके हृदय पर एक बोझ की तरह हो जाते हैं और ऐसे व्यक्ति का नर्वस सिस्टम कमजोर हो जाता है वह मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं और अपने मन मे हीं बातें करते रहते हैं और आपने बहुत से लोगों को देखा होगा बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो अपने होठों को चलाते रहते है अपने मन मे हीं अपने आप से बातें करते रहते लेकिन बहुत सी बातों को बाहर नहीं कह पाते और ऐसे लोगों के लिए हार्ड की समस्याएं बीपी की समस्याएं और मानसिक रूप से कमजोर  जैसे लक्षण दिखाई देते हैं काम में मन लगना और किसी काम को ठीक से ना कर पाना यह एक तरह के मानसिक रोग या मनोरोग या मन का रोग होता है और यह पीढ़ी दर पीढ़ी भी चलता रहता है!

ऐसे लोग ज्यादातर भावनात्मक होते हैं और इनकी मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और पेट में दर्द की जैसी समस्याएं और सीने में दर्द ही समस्याएं हमेशा बनी रहती है यह प्रभु के पास आते भी हैं लेकिन यह चंगे नहीं हो पाते क्योंकि यह हठीले रोग हैं और जब तक आप भावनात्मक रूप से चंगे नहीं होंगे यह बीमारियां कभी नहीं जाएंगी!

ऐसे लोगों के लिए बहुत ज्यादा प्रार्थना की जरूरत होती है और वचन की जरूरत होती है और यह लंबे समय रोग होता है इसलिए इतनी जल्दी नहीं जाता!

और इसीलिए वचन कहते हैं मै यहोवा  मन को जांचता और हृदय को खोजता हूं और उसके कामों के अनुसार उसका बदला देता हूं!

(नीति वचन 4:23)
सबसे ज्यादा अपने मन की रक्षा कर क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है!
जी हां मित्रों सबसे ज्यादा हमें अपने मन की रक्षा करनी है क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है और यदि मन मे हीं असाध्य रोग लग जाए तो हमें जीवन कैसे मिलेगा हमारे आत्मा कैसे बचेगी क्योंकि यह ऐसे रोग होते हैं जो बाहरी रूप से पकड़ में नहीं आते यह डॉक्टरी चिकित्सा में नहीं आते इनके लिए तो परमेश्वर का वचन ही है जो हमे समर्थ देता है और ताकत देता है और छुटकारा देता है!

मनोरोग एक वायरस की तरह होता है जो दिखने में तो छोटा होता है पर यदि लग जाए तो आपके प्राणों को हानि पहुंचा सकता है और कई वायरस तो लाइलाज भी होते हैं !

आपके जीवन में एक कैंसर की तरह काम करते हैं और आपके मन और आत्मा को बर्बाद कर देते हैं और आपके प्राणों को हानि पहुंचा देते हैं इसीलिए प्रभु के वचन में लिखा है कि मन फिराओ और लौट आओ!

(प्रेरितों के काम 3:19)
इसलिए मन फिर आओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाया जाए जिससे प्रभु के सम्मुख से विश्रांति के दिन आए!

मन फिराओं सुसमाचार का सबसे मुख्य भाग है यदि आपका मन नहीं फिरा तो हमारा मसीह में आना व्यर्थ है इसलिए  अपने मनो को देखें अपने मनो को ठीक करें यदि उस में कोढ़ लगा है तो उसे शुद्ध करें ताकि परमेश्वर आपको शांति दे परमेश्वर आप आनं दे और परमेश्वर आपको पूरी रीती से चंगाई दें!

प्रभु आप सबको आशीष दे!
 



 

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