मुफलिस को जिंदगी में , जीना भी बता देता है।
गुमां ,गुरूर, अकड़ सब, पल भर में झुका देता है ।
हों मजबूरियां या चोचले, थोड़ा सा सब्र कर,
वक़्त वो मुर्शिद है जो , हर इल्म सिखा देता है।
उजाले की ज़रा कीमत तो, तुम उस शख्स से पूछो,
चुन -चुन कर जिंदगी के , अरमान जला देता है।
भरी महफिल में करके इल्म , वो हँसने हँसाने का,
तिल तिल हुई उस मौत का, हर जख्म छिपा लेता है।
मानू में कैसे स्वर्ग में,कोई भी गम नहीं,
बरसात का पानी मुझे, हर राज बता देता है।
मिला है ये सिला मुझको, मेरी सादा मिजाजी का,
हर शख्स मुझे जीने का, अंदाज बता देता है।
-----मनीष प्रताप सिंह 'मोहन'
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