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सजायाफ्ता है हम भी, सफ्फाक उस नजर के ।

1 अक्टूबर 2016

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बस चल रही है जिंदगी, उस रब के नाम पर । उम्मीद है सुबह की, भरोसा है शाम पर ।। घर की दर-ओ-दीवार पर, ये मेहरबां है आसमां, कोई छत नहीं है दोस्तो , मेरे मकान पर ।। मुतमईन हूँ मैं, दर्द की दासतां दबी होगी, देखो फूल भी ,मुरझा गये है इस निशान पर ।। वो बेमुराद माज़ी , जब जब भी याद आया, तड़फा मैं बेतहाशा, खुद के अंजाम पर ।। सजायाफ्ता है हम भी, सफ्फाक उस नजर के, मेरी जल रही जमीं , है धुआं आसमान पर ।। कयामत के रोज वर्क से, कोई नहीं बचेगा, कुछ हो चुके मुखातिब , कुछ है निशान पर ।। ------मनीष प्रताप सिंह 'मोहन'
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जो सबका 'अन्नदाता' है, जहर खाते हुये देखा।

12 जून 2016
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मैंने खेतों में उम्मीदों को, पल जाते हुये देखा।उन्हीं खेतों में उम्मीदों को, जल जाते हुये देखा।वो ढलती शाम में खेतों की, मेंढों पर टहल करके,किसी शायर को खेतों की, गजल गाते हुये देखा।जमाने को नजर आया है, मंगल तक गया भारत,जो सबका 'अन्नदाता' है, जहर खाते हुये देखा।थी रुसवा मुफलिसी मेरी, शरीफों के जमाने

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वक़्त वो मुर्शिद है जो , हर इल्म सिखा देता है।

27 जून 2016
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मुफलिस को जिंदगी में , जीना भी बता देता है।गुमां ,गुरूर, अकड़ सब, पल भर में झुका देता है ।हों मजबूरियां या चोचले, थोड़ा सा सब्र कर,वक़्त वो मुर्शिद है जो , हर इल्म सिखा देता है।उजाले की ज़रा कीमत तो, तुम उस शख्स से पूछो,चुन -चुन कर जिंदगी के  , अरमान जला देता है।भरी महफिल में करके इल्म , वो हँसने हँसाने

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सजायाफ्ता है हम भी, सफ्फाक उस नजर के ।

1 अक्टूबर 2016
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बस चल रही है जिंदगी, उस रब के नाम पर । उम्मीद है सुबह की, भरोसा है शाम पर ।। घर की दर-ओ-दीवार पर, ये मेहरबां है आसमां, कोई छत नहीं है दोस्तो , मेरे मकान पर ।। मुतमईन हूँ मैं, दर्द की दासतां दबी होगी, देखो फूल भी ,मुरझा गये है इस निशान पर ।। वो बेमुराद माज़ी , जब जब भी याद आया, तड़फा मै

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अभिव्यक्ति मेरी: ये अस्मिता की बात करते है, वो अस्मत को लुटाने बाले (गज़ल)

9 जनवरी 2017
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कानून इस जहां में, बकवास नजर आता है। हर आस्तीन में छिपा हुआ, एक साँप नजर आता है। महलों में रोशनी है, गलियों में बस अंधेरा, इंसाफ इस जहां का, मुझे साफ नजर आता है। ये अस्मिता की बात करते है, वो अस्मत को लुटाने बाले, बस ढोंग नजर आता है, व्यभिचार नजर आता है। जब भी हलाल होती है, दो बूंद शराफत, मगर

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अभिव्यक्ति मेरी: गज़ल , गीत, कविता कुछ भी समझें

10 जनवरी 2017
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मेरे दोस्त बिल्कुल भी, गद्दार नहीं है।पर ये बात भी सही है, बफ़ादार नहीं है।।हमको तो खुद ही चलना है, तारीक़ राह पर,इन बस्तियों में मेरे, मददगार नहीं है।।महफूज़ है पत्थर, सबूत मेरी सजा के,हकीकत हम जिस सजा के, गुनहगार नहीं हैं।फूँके कदम फिर भी गिरे , एहसास तब हुआ,हम दुनिया की

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अभिव्यक्ति मेरी: शायद मुझसे कुछ कहतीं है।

11 मार्च 2017
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शायद मुझसे कुछ कहतीं है।मुझे लगता है मैं पागल हूँशायद विक्षिप्त ,या घायल हूँ ।क्योंकि मैं बातें करता हूँ,चट्टानों से,पतझड़ से,निर्जन से,रेगिस्तानों से ।मुझे लगता है,कि विशाल पीपल की डालियां,उसकी भूरी शाखाएं,और उन पर बनी धारियां,शायद मुझसे कुछ कहतीं है......... अभिव्यक्ति म

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अभिव्यक्ति मेरी: पर दोस्ती जैसा कोई, रिश्ता नहीं होता

12 मार्च 2017
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अभिव्यक्ति मेरी: पर दोस्ती जैसा कोई, रिश्ता नहीं होता

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अभिव्यक्ति मेरी: किसी के बाप का कर्जा किसानों पर नहीं बाकी,

6 फरवरी 2018
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किसां जो रोटियां देता, जमाने भर को खाने की।उसी के अन्न पर पलकर, करो बातें जमाने की।किसी के बाप का कर्जा किसानों पर नहीं बाकी,तुम्हारी पीढियां कर्जे में है, हर एक दाने की ।। लहू से सींचकर खेतों को, जो जीवन उगाता है,जरा सी रोशनी देदो, उसे भी आशियाने की।।खुदाओं की तरह, मेरी

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अभिव्यक्ति मेरी: गहरे काले अक्षरों से

20 मई 2018
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अभिव्यक्ति मेरी: गहरे काले अक्षरों से

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