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यमराज की गद्दी इंसान के पास

30 अक्टूबर 2021

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एक हाथी था। वह मर गया तो धर्मराजके यहाँ पहुँचा। धर्मराजने उससे पूछा-'अरे! तुझे इतना बड़ा शरीर दिया, फिर भी तू मनुष्यके वशमें हो गया! तेरे एक पैर जितना था मनुष्य, उसके वशमें तू हो गया!' वह हाथी बोला-'महाराज! यह मनुष्य ऐसा ही है। बड़े-बड़े इसके वशमें हो जाते हैं।' धर्मराजने कहा—'हमारे यहाँ तो अनगिनत आदमी आते हैं।" हाथीने जवाब दिया–‘आपके यहाँ मुर्दे आते हैं, जो जीता आदमी आये तो पता लगे!' धर्मराजने दूतोंसे कहा- 'अरे! एक जीता आदमी ले आओ।' दूतोंने कहा- 'ठीक है'। दूत घूमते ही रहते थे। गर्मीके दिनों में उन्होंने देखा कि छतके ऊपर एक आदमी सोया हुआ है। दूतोंने उसकी खाट उठा ली और ले चले। उस आदमीकी नींद खुली तो देखा कि बात क्या है ! वह कायस्थ था । ग्रन्थ लिखा करता था। ग्रन्थोंमें धर्मराजके दूतोंके लक्षण आते हैं। उसने देखा कि ये तो धर्मराजके दूत उठाये ले जा रहे हैं! उसने जेबसे कागज और कलम निकाली। कागजपर कुछ लिखा और जेबमें रख लिया। उसने सोचा कि हम कुछ चीं-चपड़ करेंगे तो गिर जायँगे, हड्डियाँ बिखर जायँगी! वह बेचारा खाटपर पड़ा रहा कि जो होगा, देखा जायगा । सुबह होते ही दूत पहुँच गये। धर्मराजकी सभा लगी हुई थी। दूतोंने खाट नीचे रखी। उस कायस्थने तुरन्त जेबसे कागज निकाला और दूतोंको दे दिया कि धर्मराजको दे दो। उसपर विष्णु भगवान्‌का नाम लिखा था। दूतोंने वह कागज धर्मराजको दे दिया। धर्मराजने पत्र पढ़ा। उसमें लिखा था'धर्मराजजीसे नारायणकी यथायोग्य यह हमारा मुनीम आपके पास आता है। इसके द्वारा ही सब काम कराना।' दस्तखत - नारायण, वैकुण्ठपुरी। पत्र पढ़कर धर्मराजने अपनी गद्दी छोड़ दी और बोले- 'आइये महाराज ! गद्दीपर बैठो।' धर्मराजने कायस्थको गद्दीपर बैठा दिया कि भगवान्का हुक्म है। अब दूत दूसरे आदमीको लाये । कायस्थ बोला- 'यह कौन है?' दूत–'महाराज! यह डाका डालनेवाला है। बहुतोंको लूट लिया, बहुतोंको मार दिया। इसको क्या दण्ड दिया जाय?' कायस्थ – 'इसको वैकुण्ठमें भेजो।' 'यह कौन है ? " 'महाराज! यह दूध बेचनेवाली है। इसने पानी मिलाकर दूध बेचा, जिससे बच्चोंके पेट बढ़ गये, वे बीमार हो गये। इसका क्या करें?" 'इसको भी वैकुण्ठमें भेजो।' 'यह कौन है?' 'इसने झूठी गवाही देकर बेचारे लोगोंको फँसा दिया। इसका क्या किया जाय?" 'अरे, पूछते क्या हो? वैकुण्ठमें भेजो।' अब व्यभिचारी आये, पापी आये, हिंसा करनेवाला आये, कोई भी आये, उसके लिये एक ही आज्ञा कि 'वैकुण्ठ में भेजो।' अब धर्मराज क्या करें? गद्दीपर बैठा मालिक जो कह रहा है, वही ठीक! वहाँ वैकुण्ठमें जानेवालोंकी कतार लग गयी। भगवान्ने देखा कि अरे! इतने लोग यहाँ कैसे आ रहेदूत बोले-'महाराज! आपने ही तो एक दिन कहा था कि एक जीवित आदमी लाना।' धर्मराज—'तो वह यही है क्या? अरे, परिचय तो कराते !" दूत- 'हम क्या परिचय कराते महाराज ! आपने तो कागज लिया और इसको गद्दीपर बैठा दिया। हमने सोचा कि परिचय होगा, फिर हमारी हिम्मत कैसे होती बोलनेकी?" हाथी वहाँ खड़ा सब देख रहा था, बोला-'जै रामजीकी। आपने कहा था कि तू कैसे आदमीके वशमें हो गया? मैं क्या वशमें हो गया, वशमें तो धर्मराज हो गये और भगवान् हो गये! यह काले माथेवाला आदमी बड़ा विचित्र है। महाराज! यह चाहे तो बड़ी उथल-पुथल कर दे! यह तो खुद ही संसारमें फँस गया!' भगवान्ने कहा—' नीचे चला जा।' अच्छा, जो हुआ हुआ, अब तो कायस्थ बोला—'गीतामें आपने कहा है- 'मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते' (८ | १६) 'मेरेको प्राप्त होकर पुनः जन्म नहीं लेता' तो बतायें, मैं आपको प्राप्त हुआ कि नहीं?" भगवान्-'अच्छा भाई, तू चल मेरे साथ।' कायस्थ–'महाराज! केवल मैं ही चलूँ? हाथी पीछे रहेगा बेचारा? इसकी कृपासे ही तो मैं यहाँ आया। इसको भी तो लो साथमें!" हाथी बोला—‘मेरे बहुत-से भाई यहीं नरकोंमें बैठे हैं, सबको साथ ले लो।"भगवान् बोले- 'चलो भाई, सबको ले लो!' भगवान्‌के आनेसे हाथीका भी कल्याण हो गया, कायस्थका भी कल्याण हो गया और अन्य जीवोंका भी कल्याण हो गया ! यह कहानी तो कल्पित है, पर इसका सिद्धान्त पक्का है कि अपने हाथमें कोई अधिकार आये तो सबका भला करो। जितना कर सको, उतना भला करो। अपनी तरफसे किसीका बुरा मत करो, किसीको दुःख मत दो


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